कम्प्यूटर तंत्र - Computer System


कम्प्यूटर तन्त्र
( Computer System )
KKR Education



प्रस्तावना ( Introduction )
          किसी एक या एक से अधिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यरत इकाइयों के समूह को तन्त्र ( System ) कहते हैं । उदाहरण के रूप में विद्यालय एक तन्त्र है , जिसकी इकाइयाँ हैं- विद्यार्थी , शिक्षक , प्रधानाचार्य , कक्षा - कक्ष , पुस्तकालय , प्रयोगशाला आदि । इसका लक्ष्य है शिक्षा प्रदान करना ।
          इसी प्रकार कम्प्यूटर भी एक तन्त्र ( System ) के रूप में कार्य करता है । कम्प्यूटर तन्त्र ( Computer System ) से अभिप्राय कम्प्यूटर के भौतिक भागों ( Physical Units ) से है ।


कम्प्यूटर तन्त्र की इकाइयाँ ( Units of Computer System )
          कम्प्यूटर तन्त्र मुख्यतः तीन इकाइयों से मिलकर बना होता है ।
1. सिस्टम यूनिट ( System Unit ) ,
2. इनपुट यूनिट ( Input Unit )
3. आउटपुट यूनिट ( Output Unit ) :

1. सिस्टम यूनिट ( System Unit ) : - यह कम्प्यूटर का मुख्य भाग है , जिसमें केन्द्रीय संसाधन इकाई ( Central Processing Unit ) अथवा सी.पी.यू. होता है । सिस्टम यूनिट एक बॉक्स होता है , जिसमें सी.पी.यू. के अलावा कम्प्यूटर की कई अन्य युक्तियाँ ( devices ) तथा परिपथ ( Circuit ) लगे होते हैं , जो एक मुख्य परिपथ बोर्ड या मदर बोर्ड ( Mother Board ) पर संयोजित रहते है । इस प्रकार कम्प्यूटर का अधिकतर परिपथ सिस्टम यूनिट में ही होता है ।
2. इनपुट यूनिट ( Input Unit ) : - कम्प्यूटर ( सिस्टम यूनिट ) में डाटा तथा प्रोग्राम विवरणों की प्रविष्टि के लिए प्रयुक्त की जाने वाली युक्तियाँ ( Devices ) इनपुट यूनिट ( आगम इकाई ) कहलाती हैं । की - बोर्ड , माउस , फ्लॉपी डिस्क आदि इनपुट डिवाइस के कुछ उदाहरण हैं । इनकी आगे विस्तृत चर्चा की जाएगी ।
3. निर्गम इकाई ( Output Unit ) : - कम्प्यूटर ( सिस्टम यूनिट ) से प्राप्त निष्कर्षों को लिखने तथा उन निष्कर्षों को मानवीय भाषा में प्रस्तुत करने वाली युक्तियाँ आउटपुट यूनिट ( निर्गम इकाई ) कहलाती हैं । मॉनीटर , प्रिन्टर आदि कुछ सामान्य निर्गम युक्तियाँ ( Output Devices ) हैं । इनकी चर्चा भी आगे की जाएगी





केन्द्रीय संसाधन इकाई ( Central Processing Unit ) अथवा सी.पी. यू . ( C.P.U. )

          यह कम्प्यूटर का दिमाग होता है । यह निर्देशों का क्रियान्वयन ( Execution ) करने के लिए उन्हें पढ़ता है , व्याख्या करता है , नियन्त्रण ( Control ) करता है और संगणना ( Calculation ) करता है । वास्तव में हम कम्प्यूटर को जो भी निर्देश देते हैं वो पहले सी.पी.यू. में जाते हैं और सी.पी.यू. हमारे निर्देशानुसार निष्कर्ष मॉनीटर पर दिखाता है । यह कहना गलत नहीं होगा कि कम्प्यूटर में यदि सी.पी.यू. नहीं है तो कम्प्यूटर कुछ भी नहीं कर सकता ।
          जिस तरह हमारा दिमाग हमारे समस्त शरीर पर नियन्त्रण रखता है , ठीक उसी प्रकार सी.पी.यू. कम्प्यूटर के शेष सभी भागों जैसे- मैमोरी , इनपुट व आउटपुट डिवाइसेज आदि के कार्यों पर नियन्त्रण रखता है और उनसे कार्य करवाता है । प्रोग्राम और डाटा , इसके नियन्त्रण में मैमोरी में संग्रहित होते हैं । इसी के नियन्त्रण में आउटपुट मॉनीटर के स्क्रीन ( Screen ) पर दिखाई देता है अथवा प्रिन्टर के द्वारा कागज पर छपता हैं । सी.पी.यू. लाखों - करोड़ों गणनाएँ व निर्णय सैकण्डों में कर सकता है ।

सी.पी.यू. को तीन भागों में बाँटा जा सकता है :
1. नियन्त्रण इकाई ( Control Unit ) अथवा सी.यू. ( C.U. )
2. अंकगणितीय व तार्किक इकाई ( Arithmetic Logic Unit ) अथवा ए.एल.यू. ( A.L.U. )
3. मैमोरी ( Memory ) अथवा संग्रहण इकाई ( Storage Unit )

माइक्रोकम्प्यूटर में सी.पी.यू. ( C.P.U. ) एक छोटा सा माइक्रोप्रोसेसर होता है । अन्य बड़े कम्प्यूटरों में एक से अधिक माइक्रोप्रोसेसर हो सकते है । माइक्रोप्रोसेसर से ही कम्प्यूटर के कई कार्य संचालित होते हमाइक्रोप्रोसेसर की आन्तरिक संरचना में निम्न मुख्य भाग होते है -
सी.यू. ( C.U. ) , ए.एल.यू. ( A.L.U. ) , रजिस्टर ( Register ) , आन्तरिक बस ( Internal Bus ) |

          माइक्रोप्रोसेसर के आविष्कार से पहले कम्प्यूटर का परिपथ कई ट्रांजिस्टरों ( Transistors ) को संयोजित कर बनाया जाता था । कम्प्यूटर को अधिक दक्ष , कार्य - कुशल एवं उपयोगी बनाने के लिए इसके प्रोसेसर के परिपथ में ट्रांजिस्टरों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती गई । इससे ट्रांजिस्टरों का परिपथ जटिल होता गया और परिपथ में अधिक ताप उत्पन्न होने से इनके खराब होने की समस्या उत्पन्न होने लगी । अतः एक ऐसे पुर्जे की आवश्यकता हुई जिसमें अनेक ट्रांजिस्टरों के तुल्य परिपथ हो । ऐसा पुर्जा ही माइक्रोप्रोसेसर कहलाता है ।





चित्र- माइक्रोप्रोसेसर

          सबसे पहला माइक्रोप्रोसेसर सन् 1970 में इंटेल कार्पोरेशन ( Intel Corporation ) ने Intel 4004 के नाम से तैयार किया , जिसमें लगभग 2300 ट्रांजिस्टरों के बराबर क्षमता थी । माइक्रोप्रोसेसर लगभग आधे इंच का सिलिकॉन धातु से निर्मित आयताकार टुकड़ा होता है , जो एक खोल में छोटे - छोटे कनैक्टर्स ( Connectors ) के साथ व्यवस्थित रहता है । चपटा होने के कारण इसे चिप ( Chip ) भी कहते हैं । इंटेल 4004 चिप के बाद माइक्रोप्रोसेसर की तकनीक निरन्तर विकसित होती गई और इनकी क्षमता व गति बढ़ती गई । वर्तमान में विभिन्न गति एवं गणन क्षमता वाले माइक्रोप्रोसेसर उपलब्ध हैं , जिनमें इन्टेल पेन्टियम -4 , ए.एम.डी. ( AMD ) , साइरिक्स आदि माइक्रोप्रोसेसरों के नाम उल्लेखनीय है ।

नियन्त्रण इकाई ( Control Unit ) अथवा सी.यू - ( C.U. ) –
          सी.पी.यू. में कन्ट्रोल यूनिट की बहुत अहम् भूमिका है । नाम के अनुरूप यह कम्प्यूटर की सूचनाओं के आदान - प्रदान पर व कम्प्यूटर के अन्य उपकरणों पर पूरा नियन्त्रण रखती है । कन्ट्रोल यूनिट के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
( 1 ) यह कम्प्यूटर की समस्त आन्तरिक क्रियाओं का संचालन करती है ।
( II ) यह इनपुट - आउटपुट क्रिआयों को नियन्त्रित करती है ।
( III ) यह मैमोरी से प्रोग्राम पढ़ती है , उनकी व्याख्या करती है तथा एएल.यू. व मैमोरी में वांछित क्रिया सम्पन्न करने के लिए तदानुसार निर्देश देती है ।
( IV ) यह ए.एल.यू. को यह बताती है कि डाटा मैमोरी में कहाँ स्थित है , क्या क्रिया करनी है तथा प्रक्रिया के पश्चात निष्कर्ष / परिणाम ( Result ) कहाँ संग्रहित होना है ।
         
          ये सभी निर्देश विद्युत संकेतों के रूप में सिस्टम बस ( System Bus ) की नियन्त्रक बस ( Control Bus ) के माध्यम से कम्प्यूटर के विभिन्न भागो तक संचरित होते हैं । ( अनेक तारों का समूह बस कहलाती है । )

अंकगणितीय तार्किक इकाई ( Arithmetic Logic Unit ) , ए.एल.यू. ( A.LU. )
          यह यूनिट अंकगणितीय क्रियाएँ तथा तार्किक क्रियाएँ ( Logical Operations ) करती है । अंक गणितीय क्रियाओं में जोड़ , बाकी , गुणा , भाग सम्मिलित है । ALU में एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक परिपथ होता है जो अंक गणितीय गणनाएँ करने में सक्षम होता है ।
          तार्किक क्रियाओं में एएल.यू. दो संख्याओं या डाटा की तुलना कर , निर्णय लेने का कार्य करता है । तुलना के परिणाम हो अथवा नहीं में होते है , जिससे निर्णय लेने में सहायता मिलती है ।
          ए.एल.यू. कन्ट्रोल यूनिट ( सी यू . ) की निगरानी में कार्य करता है । यह मैमोरी से डाटा प्राप्त करता है , उस पर गणनाएँ करता है और परिणाम पुनः मैमोरी को ही लौटा देता है । ए.एल.यू. के कार्य करने की गति अति तीव्र होती है । यह लगभग दस लाख गणन्यएँ प्रति सैकण्ड की गति से करता है । ए.एल. यू में अनेक रजिस्टर ( Register ) और एक्युमूलेटर ( Aceomulators ) होते हैं जो गणनाओ के दौरान क्षणिक संग्रह हेतु मैमोरी का कार्य करते हैं ।
          ए.एल.यू. में डाटा प्रोसेस होने के बाद परिणाम को या तो प्रदर्शन के लिए आउटपुट उपकरणो में रोज दिया जाता है या उन्हें मैमोरी में संग्रहित कर लिया जाता है ।

मैमोरी ( Memory )
          मनुष्य के दिमाग में याद रखने की क्षमता होती है जिसे स्मृति ( Memory ) कहते हैं । इसी प्रकार कम्यूटर में डाटा तथा निर्देशों को संग्रह करने की क्षमता होती है , जो कम्प्यूटर की मैमोरी कहलाती है । कम्प्यूटर की मैमोरी वह इलेक्ट्रॉनिक स्थान है जहाँ डाटा , सूचना और प्रोग्राम संग्रहित रहते हैं और आवश्यकता होने पर तत्काल उपलब्ध हो सकते हैं । मैमोरी प्रत्येक कम्प्यूटर का एक महत्वपूर्ण भाग है । बिना मैमोरी के कम्प्यूटर कार्य नहीं कर सकता ।
          मैमोरी में संग्रह के लिए अनेक स्थान ( Location ) होते हैं , जिनकी संख्या निश्चित होती है । मैमोरी की क्षमता ( Memory Capacity ) अथवा मैमोरी का आकार ( Memory Size ) इन स्थानों की संख्या पर निर्भर करता है । मेमारी में प्रत्येक स्थान की एक पहचान संख्या होती है , जिसे एड्रेस ( Address ) कहते है ।
मैमोरी को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :
( I )    मुख्य मैमोरी ( Main Memory )
( II )   बाह्य मैमोरी ( External Memory )
          जब मैमोरी शब्द का उपयोग किया जाता है तो उसका आशय मुख्य मैमोरी ( Main Memory ) ही होता है । इसे प्राथमिक मैमोरी ( Primary Memory ) अथवा आन्तरिक मैमोरी ( Internal Memory ) भी कहा जाता है । यह सी.पी.यू. का ही भाग होती है । मुख्य मैमोरी तीव्र गति वाली होती है तथा प्राथमिक तथ्यों की संगणना , प्रोग्राम में लिखित निर्देशों के अनुसार करती है । यह मध्यवर्ती तथा अन्तिम दोनों निष्कर्षों ( Results ) को संग्रहित करने के लिए भी प्रयुक्त होती है । मैमोरी एक अर्द्धचालक चिप ( Semiconductor Chip ) होती है ।

          मुख्य मैमारी को सामान्यतः दो भागों में बाँटा जाता है :-
(I) अस्थायी मैमोरी अथवा रेन्डम एक्सेस मैमोरी ( Random Access Memory - RAM ) -
यह सबसे ज्यादा प्रयोग में आने वाली मैमोरी है । की - बोर्ड अथवा अन्य किसी इनपुट डिवाइस से इनपुट किया डाटा प्रक्रिया से पहले RAM में ही संग्रहित होता है और सी.पी.यू. द्वारा वहाँ से आवश्यकतानुसार प्राप्त कर लिया जाता है । RAM में संग्रहित डाटा या निर्देश कभी भी एक्सेस ( Access ) किया जा सकता है तथा कभी भी पढ़ा एवं पुनः लिखा जा सकता है | RAM में संचित सूचनाओं को हम माइक्रोसैकण्ड के दसवें हिस्से में पुनः ग्रहण कर सकते हैं ।


चित्र- रेम चिप

          RAM में डाटा या प्रोग्राम अस्थाई रूप से संग्रहित रहते हैं । कम्प्यूटर को बन्द ( Switch Off ) करने अथवा विधुत आपूर्ति बन्द हो जाने पर RAM में संग्रहित डाटा मिट जाता है । इसलिए RAM को अस्थायी या अस्थिर ( Volatile ) मैमोरी कहते हैं ।

( II ) स्थायी मैमोरी अथवा रीड ऑनली मैमोरी ( Read Only Memory - ROM )
          इस मैमोरी में संग्रहित प्रोग्राम परिवर्तित अथवा नष्ट नहीं किए जा सकते है , उन्हें केवल पढ़ा जा सकता है । यह मैमोरी स्थायी या स्थिर ( Non - Volatile ) होती है । अतः कम्प्यूटर को बन्द ( Switch off ) करने अथवा विद्युत आपूर्ति बन्द हो जाने पर यह नष्ट नहीं होती । इस मैमोरी का उपयोग मूलभूत निर्देशों ( Basic Instructions ) के संग्रहण के लिए किया जाता है । ROM के उपयोग का सबसे अच्छा उदाहरण BIOS ( Basic Input Output System ) है . जिसमें कम्प्यूटर का Booting प्रोग्राम संग्रहित होता है । जब कम्प्यूटर चालू ( Tum on ) होता है तो वह इससे स्वतः ही सूचना ग्रहण कर Boot हो जाता है । ROM का उपयोग स्वचालित मशीनों , खिलौनों आदि में भी होता है ।


चित्र- रोम


          ROM तीन प्रकार की होती हैं :
( a ) पीरोम ( PROM- Programmable Read Only Memory ) : - इस मैमोरी में केवल एक ही बार लिखा जा सकता है । किन्तु बार - बार पढ़ा जा सकता है ।
( b ) ईपीरोम ( EPROM- Erasable Programmable Read Only Memory ) : - इस मैमोरी में आवश्यकता होने पर प्रोग्राम मिटाया जा सकता है , और नया प्रोग्राम डाला जा सकता है । इस मैमोरी को मिटाने के लिए पराबैंगनी किरणों का उपयोग किया जाता है ।
( e ) ईईपीरोम ( EEPROM- Electrically Erasable Programmable Read Only Memory ) : - इस मैमोरी में प्रोग्राम को आवश्यकता होने पर विद्युत तरंगों द्वारा मिटाया जाता हैं और नया प्रोग्राम डाला जा सकता है ।

          डाटा को स्थायी रूप से संग्रहित करने के लिए बाह्य मैमोरी ( External Memory ) की आवश्यकता होती है । इसे द्वितीयक मैमोरी ( Secondary Memory ) भी कहते है । यह मैमोरी चुम्बकीय ( Magnetic ) अथवा प्रकाशीय ( Optical ) होती है । इसमें संग्रहित डाटा हमेशा सुरक्षित रहता है तथा कम्प्यूटर को बन्द करने पर भी नष्ट नहीं होता है । हार्ड डिस्क , फ्लॉपी डिस्क , मैगनेटिक टेप आदि द्वितीयक मैमोरी के उदाहरण है । इन्हें द्वितीयक संग्रहण युक्तियाँ ( Secondary Storage Devices ) भी कहते हैं ।


मैमोरी की इकाइयाँ ( Units of Memory )
          मैमोरी में सूचना बिट ( Bit ) के रूप में संग्रह की जाती है । Bit बाइनरी डिजिट ( Binary Digit ) से मिलकर बना शब्द है । कम्प्यूटर की पूरी आन्तरिक क्रिया बाइनरी अंक प्रणाली ( Binary Nuumber System ) पर ही आधारित है । बाइनरी अंक प्रणाली में केवल दो ही अंक ' 0 ' व ' 1 ' होते हैं । एक बिट का मान 0 अथवा 1 ( शून्य अथवा एक ) ही हो सकता है । किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ पर यदि निर्गम ( Output ) के रूप में कुछ विभव हो तो उसे एक तथा विभव कुछ भी न हो तो शून्य से निरूपित किया जाता है । कम्प्यूटर के इलेक्ट्रॉनिक परिपथ में 1 का अर्थ ' पल्स ( Pulse ) उपस्थित है , जबकि 0 का अर्थ ' पल्स ( Pulse ) अनुपस्थित है ।
          कम्प्यूटर में सभी डाटा 0 अथवा 1 में ही संग्रहित होता है । किन्तु मानव द्वारा कम्प्यूटर को सारी सूचनाएँ अथवा 1 विट के रूप में देना दुष्कर कार्य है । अतः उपयोगकर्ता कम्प्यूटर को समस्त इनपुट अपनी ही भाषा में देता है और कम्प्यूटर स्वयं उसे अपनी भाषा ( Bit रूप ) में परिवर्तित कर लेता है । उदाहरण के रूप में की - बोर्ड पर जब A की ' को दबाया जाता है तो कम्प्यूटर की मैमोरी में 1000001 अंकित हो जाता है ।
          यद्यपि Bit मैमोरी की प्राथमिक इकाई है किन्तु यह अत्यधिक छोटी होने के कारण प्रायः इसका उपयोग मैमोरी के मापन में नहीं किया जाता । सामान्यतः मैमोरी मापन में बाइट ( Byte ) इकाई का उपयोग किया जाता है । आठ बिट से मिलकर एक बाइट का निर्माण होता है । बिट और बाइट के बीच की एक और इकाई निब्बल ( Nibble ) है । एक निब्बल में चार बाइनरी अंक होते है । अतः यह बाइट की आधी होती है ।

मैमोरी की विभिन्न इकाइयों निम्न प्रकार से व्यक्त की जा सकती हैं :
1 . बिट ( Bit ) - मैमोरी की सबसे छोटी इकाई ( बाइनरी अंक प्रणाली में इसका मान 0 अथवा 1 होता है । )
2. निब्बल ( Nibble ) –
          4 बिट के समूह को निब्बल कहते हैं । अतः 1 निब्बल = 4 बिट
3 . बाइट ( Byte ) –
          8 बिट के समूह को बाइट कहते है । सामान्यतः एक करेक्टर ( अंक या अक्षर ) को एक बाइट से व्यक्त किया जाता है । अतः अतः 1 बाइट = 8 बिट
4. किलोबाइट ( Kilobyte- KB ) –
          1024 बाइट को 1 किलोबाइट कहा जाता है । अतः 1 किलोबाइट = 1024 बाइट
5. मेगाबाइट ( Megabyte- MB ) –
          1024 किलोबाइट को 1 मेगाबाइट कहा जाता है । अतः 1 मेगाबाइट = 1024 किलोबाइट = 1024x1024 बाइट
6 . गीगाबाइट ( Gegabyte- GB ) –
          1024 मेगाबाइट को 1 गीगाबाइट कहा जाता है । अतः 1 गीगाबाइट = 1024 मेगाबाइट = 1024x1024 किलोबाइट
7. टेराबाइट ( Terabyte - TB ) –
          1024 गीगाबाइट को 1 टेराबाइट कहा जाता है ।
          अतः 1 टेराबाइट = 1024 गीगाबाइट
          = 1024 X 1024 X 1024 बाइट
          = 1024x1024 मेगाबाइट
          = 1024 X 1024 X 1024 किलोबाइट
          = 1024 X 1024 X 1024 X 1024 बाइट



Kkr Kishan Regar

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