शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

शिक्षण प्रविधियाँ : अर्थ, परिभाषाएँ, प्रश्नोत्तर प्रविधि, विवरण प्रविधि, वर्णन प्रविधि, व्याख्यान प्रविधि, स्पष्टीकरण प्रविधि | शिक्षणविधियाँ

शिक्षण प्रविधियाँ

  1. प्रश्नोत्तर प्रविधि
  2. विवरण प्रविधि
  3. वर्णन प्रविधि
  4. व्याख्यान प्रविधि
  5. स्पष्टीकरण प्रविधि
  6. कहानी कथन प्रविधि
  7. निरीक्षण एवं अवलोकन प्रविधि
  8. उदाहरण प्रविधि
  9. खेल/गतिविधि प्रविधि
  10. प्रयोगात्मक कार्य प्रविधि
  11. वाद-विवाद प्रविधि
  12. कार्यशाला प्रविधि
  13. भ्रमण प्रविधि
  14. समूह चर्चा प्रविधि

शिक्षण प्रविधियाँ : अर्थ, परिभाषाएँ, प्रश्नोत्तर प्रविधि, विवरण प्रविधि, वर्णन प्रविधि, व्याख्यान प्रविधि, स्पष्टीकरण प्रविधि | शिक्षणविधियाँ
शिक्षण प्रविधियाँ : अर्थ, परिभाषाएँ

शिक्षण प्रविधियाँ:

हम सभी के विद्यालय- महाविद्यालय स्तरों पर पढ़ाई करते समय कुछ पसन्दीदा अध्यापक रहे होंगे। उनकी पढ़ाई गयी विषयवस्तु हमें आज तक याद है। जानते हैं ऐसा क्यों? क्योंकि उनके पढ़ाने का तरीका, समझाने का ढंग इतना अच्छा तथा सरल था कि उन पाठों को हम आज अपने छोटों को आसानी से समझा लेते हैं। ये पढ़ाने का तरीका ही शिक्षण विधि है।
शिक्षण विधि वास्तव में शिक्षण प्रक्रिया की शुरूआत है। शिक्षण कैसे हो इसका उत्तर शिक्षण विधि द्वारा ही प्राप्त होता है। पाठ्यवस्तु कितनी समझ में आयी और कितनी और अच्छी तरीकों से समझायी जा सकती है, इसका निर्धारण शिक्षण विधि द्वारा किया जाता है।

परिभाषाएँ:
थिं्रग के अनुसार - ‘‘शिक्षक शिक्षण प्रविधियों के द्वारा अपने छात्रों को कार्य करने के योग्य बनाता है और स्वयं यह दर्शाने में लगा रहता है कि इस कार्य को कैसे किया जायेगा साथ ही इस बात के लिए सतर्क रहता है कि वे इसे करें।’’
एम0पी0माॅफेट- ‘‘शिक्षण प्रविधियों का प्रयोग शिक्षक द्वारा अध्ययन करने के लिए दिये गये निर्देशात्मक तरीकों में होता है।’’

उपर्युक्त चर्चा से हमने जाना कि शिक्षण विधियाँ/शिक्षण कैसे हो? शिक्षण विधियाँ/शिक्षण कितना प्रभावी था? और शिक्षण विधियाँ/शिक्षण और कैसे सुधारा जाय का समाधान बताती हैं।


प्रश्नोत्तर प्रविधि:
जिज्ञासा मानव स्वभाव की पहचान है। सदियों से मानव ने अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए नित नये प्रयोग किए और आविष्कारों से ज्ञान जगत को समृद्ध किया। जिज्ञासा ही प्रश्न पूछने का मूल रूप है। शिक्षण कार्य की शुरूआत प्रश्नविधि से किया जाये तो शिक्षक अपनी समस्त शिक्षण योजना को नियोजित स्वरूप दे सकता है।
वास्तव में इस प्रविधि का जन्मदाता सुकरात को कहा जाता है। उन्होंने इसके तीन सोपान बताये-

  1. निरीक्षण
  2. अनुभव
  3. परीक्षण

प्रश्न विधि का महत्व:

  • जिज्ञासा
  • रुचि व एकाग्रता
  • चिन्तन
  • पाठ विस्तार
  • समस्या समाधान की क्षमता
  • शिक्षण मूल्यांकन
  • नवीन ज्ञान से सम्बद्धीकरण
  • सक्रियता
  • कक्षा अनुशासन

प्रश्न प्रविधि शिक्षण को सहज व क्रमबद्ध करती है। इसके लिए कुछ बातें जानना जरूरी हैं-

  • प्रश्न सरल तथा स्पष्ट हो।
  • प्रश्न पाठ्यवस्तु से सम्बद्ध हो।
  • प्रश्न सम्पूर्ण कक्षा से किए जाएं।
  • प्रश्न पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए पाठ का विस्तार करने वाले हो।
  • प्रश्न शिक्षण स्तर के अनुकूल हो।
  • प्रश्नों में क्रमबद्धता हो।

शिक्षक को विषय का पूर्ण ज्ञान हो।
प्रश्नों के माध्यम से चलने वाला शिक्षण प्रभावशाली होता है या यूँ कहे कि प्रश्न शिक्षक के लिए अच्छे साथी के रूप में सहयोग देते हैं।
काउलर- ‘‘शिक्षण मुख्य रूप से प्रश्नों के द्वारा होना चाहिए।’’

प्रश्न पूछने के बाद उत्तर की अपेक्षा होती है। उत्तर प्राप्त/निकलवाना भी एक कला है। उत्तर देते समय निम्नलिखित तथ्यों का पालन होना जरूरी है-

  • उत्तर देते समय छात्रों को सीधे खड़ा होकर उचित स्वर में बोलना चाहिए।
  • एक समय में एक ही छात्र उत्तर दें।
  • उत्तर देने के लिए प्रतिभाशाली कमजोर दोनों छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।
  • अशुद्ध व अस्पष्ट उत्तर पर उत्तेजक प्रतिक्रियाएं न हों। उनके गलत होने के कारणों को शिक्षक अवश्य स्पष्ट करें।
  • सही उत्तरों की प्रशंसा करनी चाहिए ताकि अन्य छात्र भी प्रेरित हो सकें।
  • जटिल प्रश्नों के उत्तर को शिक्षक स्वयं पाठ्य सहसामग्री से स्पष्ट करें।
  • उत्तर खोजने का अवसर दिया जाय।

स्पष्ट है उत्तर विधि भी अधिगम प्रक्रिया की दिशा बोधक है।
पशु एवं उनके उपयोग के बारे में शिक्षण करना है तो प्रश्नोतर विधि की रूपरेखा पर विचार करें।
छात्रों की उत्तर रूपी आधार शिला पर शिक्षक अपनी पाठ रूपी इमारत खड़ी करता है और अपना अभीष्ट सिद्ध करता है- एस0के0 अग्रवाल


विवरण विधि:

शिक्षण की ऐसी विधि जिसमें पाठ्यवस्तु, प्रसंग, घटना, स्थान का सरल भाषा में कथन किया जाता है इसलिए इसे कथन विधि भी कहते हैं। इसमें अज्ञात से ज्ञात की स्थिति की ओर अग्रसर होते हैं।
उदाहरण: विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बताना - कुतुबमीनार, बुलन्द दरवाजा, ताजमहल आदि के बारे में बताना कि वे कहाँ स्थित हैं, किसने बनवाया, किस लिये प्रसिद्ध हैं, यह विवरण हैं।

विवरण की उपयोगिता:

  • अनुभवों को मूर्तरूप
  • बोध विस्तार
  • तथ्यात्मक ज्ञान
  • मानसिक क्षमता
  • ध्यान केन्द्रीकरण

विवरण विधि से शिक्षण करते समय कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  • विवरण विषयवस्तु से सम्बद्ध हो।
  • विवरण सरल, स्पष्ट हो।
  • विवरण, चित्र, माॅडल, श्यामपट्ट के द्वारा प्रस्तुत किया जाय।
  • विवरण अत्यधिक रूप से बड़ा न हो। खण्डों में प्रस्तुत हो।
  • विवरण छात्र स्तर के अनुकूल हो।
  • विवरण के अन्त में एक दो प्रश्न पूछकर छात्रों के अधिगम स्तर का पता लगाया जाना चाहिए।

वर्णन विधि:

शिक्षण की इस प्रविधि में विषय वस्तु का विस्तार से कथन किया जाता है ताकि छात्रों को पाठ अच्छी तरह से समझ में आ जाय। इस विधि में हालांकि शिक्षक ही ज्यादा सक्रिय रहता है किन्तु यदि रुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाय तो छात्र भी सक्रियता से भाग लेते हैं और सम्प्रेषण प्रभावी हो जाता है।
वर्णन विधि को प्रस्तुत करने के तरीके:

  • चित्र
  • माॅडलों द्वारा भ्रमण करके/प्रयोग द्वारा

वर्णन और विवरण विधि एक समान नहीं है। विवरण सतही होता है, वर्णन में विषयवस्तु व्यापक ढंग से प्रस्तुत की जाती है यानी वर्णन में सांगोपांग चित्रण होता है। यह मौखिक-लिखित दोनों तरह से किया जाता है। विवरण के आगे की स्थिति वर्णन होती है। इसका स्वरूप संश्लेषणात्मक होता है।

इस विधि से शिक्षण करते समय शिक्षक को कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए:

  • वर्णन विषयवस्तु से सम्बद्ध हो।
  • वर्णन की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट हो।
  • वर्णन समग्र रूप में किया जाय।
  • वर्णन क्रमबद्ध और आवश्यकतानुसार हो।
  • वर्णन स्तरानुकूल हो।

व्याख्या विधि:

किसी भी विषयवस्तु का गहन ढंग से विश्लेषण करना व्याख्या कहलाता है। इस विधि का प्रयोग ज्यादातर जटिल विषयों को समझाने के लिए तथा उच्च स्तर पर किया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘समास’ को लें, इसे समझाना हो तो समास दो शब्दों से मिलकर बना है- सम + अस, सम का अर्थ होता है- समीप/पास और अस् का अर्थ बैठना। जिस क्रिया में संक्षेपीकरण किया जाय या दो या अधिक शब्दों को मिलाकर लिखा जाय उसे समासिक पद कहते हैं।
रामलक्ष्मण, माता-पिता, शास्त्रकुशल
फिर इन पदों का विग्रह करके बतायेंगे-
राम और लक्ष्मण, माता और पिता, शास्त्रों में कुशल

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि व्याख्यान विधि में किसी भी प्रसंग को विस्तार से समझाया जाता है।

व्याख्यान विधि से लाभ:

  • जटिल व दुरूह विषय का ज्ञान
  • विषय का सरलीकरण
  • स्वाध्याय की भावना
  • पाठ के हर पहलू का ज्ञान
  • अधिकतम सूचना एवं तथ्यों का ज्ञान

स्पष्टीकरण प्रविधि:

किसी वस्तु, विषय, घटना को अच्छी तरह समझाना स्पष्टीकरण कहलाता है, इस विधि को उद्घाटन विधि भी कहा जाता है। यह विधि ज्यादातर जटिल विषयों को सरल रूप से बोधगम्य बनाने के काम आती है। शिक्षक को चाहिए कि पाठ्यवस्तु के प्रमुख पक्षों का चयन कर लें और उसके बारे में प्रत्येक बातों को प्रकाशित करे। इसके लिए चित्रों, माॅडलों, श्यामपट्ट लेखन को माध्यम बनाया जाना चाहिए।

स्पष्टीकरण विधि से शिक्षण की सफलता इस बात में निहित है कि शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान हो एवं वह पाठ्यवस्तु के बारे में अपने विवेचनाओं के द्वारा छात्रों को नवीन दृष्टि दे सके।

स्पष्टीकरण विधि का महत्व:

  • प्रत्येक संकल्पना का सही विवरण
  • कठोर, जटिल शब्दों की व्याख्या
  • विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण
  • उच्च-स्तरीय ज्ञान

स्पष्टीकरण विधि में कुछ विशेष सावधानियाँ:

  • स्पष्टीकरण सरल, स्पष्ट हो।
  • अपने विचारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करें।
  • विद्यार्थियों से प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करें।
  • केवल शब्दों के माध्यम से न करें, दृश्यों के माध्यम से व्याख्या अधिक प्रभावी होती है।

कहानी कथन प्रविधि

एक राजा था, एक राजकुमारी थी, एक परी थी, जैसे वाक्यों से शुरू होने वाली कहानियाँ हम सभी ने अपनी दादी-नानी से सुनी होगी, और उसमें बताई गईं बातें हम सभी को याद भी हैं। यही विधा कहानी कथन कहलाती है। इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि यदि शिक्षण का स्थायी प्रभाव डालना हो तो शिक्षण को कल्पना द्वारा, आकर्षक तरीके से कथा का रूप देकर प्रस्तुत किया जाए तो बच्चे जल्दी सीखेंगे। कक्षागत अनुशासन भी बना रहेगा और उनमें जिज्ञासा जागृत होगी। यह विधि मुख्यतः मौखिक ही होती है।

कहानी विधि का महत्व

  • एकाग्रता
  • कल्पनाशक्ति का विकास
  • अधिगम की तीव्रता

कहानी विधि मनोवैज्ञानिक होने के कारण शिक्षण क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय है। इसे और भी प्रभावी बनाया जा सकता है यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए।

  • कहानी कथन स्तरानुकूल हो।
  • कहानी कथन की भाषा स्पष्ट सरल हो।
  • कहानी कथन में प्रसंगानुसार हाव-भाव, आरोह-अवरोह हो।
  • कहानी कथन के साथ पाठ्यसह सामग्री का उचित प्रयोग होना चाहिए।
  • कहानी कथन के बाद अधिगमकर्ता से बोधगम्यता के प्रश्न अवश्य पूछें जाएं।

निरीक्षण एवं अवलोकन प्रविधि

यह तथ्य पूरी तरह स्थापित है कि देखी हुई घटना, वस्तु भूलती नहीं है। इसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर स्थायी होता है। शिक्षण करते समय यदि छात्र को पाठ्य विषय में शामिल वस्तुओं, घटनाओं के अवलोकन एवं निरीक्षण का अवसर दिया जाए तो शिक्षण अधिगम प्रभावशाली होगा।

वास्तव में किसी वस्तु, स्थान, कार्य का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना ही अवलोकन है। सभी विषयों में विशेषकर विज्ञान, कृषि तथा समाज विज्ञान के लिए यह अधिक उपयोगी है। समझना- परखना ही इस विधि का मूल तत्व है। समूह शिक्षण एवं उच्च स्तरों पर शोध कार्यों में इस विधि का प्रयोग प्रभावी होता है। इस विधि से शिक्षण करते समय ध्यातव्य बिंदु इस प्रकार हैं-

  • अवलोकन निरीक्षण की प्रक्रिया क्रमबद्ध हो।
  • कब, कहाँ, किसका, क्या और कैसे अवलोकन करना है यह छात्रों को पता होना चाहिए।
  • उद्देश्य का पूर्व निर्धारण जरूरी है।
  • छात्रों को शिक्षक के मार्गदर्शन में ही अवलोकन निरीक्षण करना चाहिए।
  • अवलोकन निरीक्षण के बाद उसकी आख्या लेखन आवश्यक है।

उदाहरण विधि

किसी कठिन और गूढ़ तथ्य, घटना, वस्तु को, सामग्री, प्रसंगों, अनुभवों के प्रयोग द्वारा व्यक्त करना उदाहरण है। जैसे- सरदार भगत सिंह की वीरता, साहस, बलिदान का उदाहरण देकर बच्चों में राष्ट्रीय भावना का विकास किया जा सकता है।

एस.के. कोचर के अनुसार- ‘‘उदाहरण का अभिप्राय प्रतिमान, चित्र तथा चार्ट आदि वस्तुओं से है, जो क्लिष्ट विचारों का वर्णन करते हैं और उसकी प्रक्रिया में उन पर विशेष प्रकाश डालकर उन्हें आसान बनाते हैं। ये सीखने वालों की भावनाओं, कल्पनाओं को प्रेरित करते हैं, जिससे उनके विचार स्पष्ट होते हैं और वह सही ज्ञान ग्रहण करने योग्य बनते हैं।’’

उदाहरण की सहजता उसका सबसे बड़ा गुण है, शिक्षण कार्य जितने ज्यादा उदाहरणों, दृष्टान्तों से समझाया जाएगा वह सम्प्रत्यय छात्रों को पूर्णतया स्पष्ट हो जाएगा व गलतियों की संभावना कम रहेगी। स्वर संधियों में दीर्घ संधि के अर्थ को हम जितने उदाहरण- रामायण, विद्यालय, सदाचार, रामाज्ञा, देवालय, मुख्यालय, आज्ञानुसार आदि से स्पष्ट करेंगे, दीर्घ संधि का अर्थ उतना ही ग्राह्य बनेगा।

उदाहरण विधि का प्रयोग कैसे करें

  • उदाहरण सरल व स्पष्ट भाषा में हो।
  • उदाहरणों में विविधता हो।
  • उदाहरण स्तरानुकूल हो।
  • पूर्वज्ञान से संबंधित व रुचिकर हो।
  • सरल से कठिन, ज्ञात से अज्ञात की ओर उन्मुख हो।

खेल विधि

खेल एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसी के द्वारा बालक अपने को मूल रूप में व्यक्त करता है। हयूजेज एवं हयूजेज- वह विधि जो बालकों को उसी उत्साह से सीखने की क्षमता देती है जो उनमें स्वाभाविक रूप में पाई जाती है, प्रायः क्रीड़ा विधि कहलाती है।

"खेल-खेल में सीखो" यह कथन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को संकेत करता है। इस विधि ने परंपरागत शिक्षण को नवीन दिशा दी है, जिससे शिक्षण ज्यादा रुचिपूर्ण हो गया है। रायबर्न ने इसके महत्व को बताते हुए कहा भी है-
यह विधि बालक की रचनात्मक शक्तियों को प्रोत्साहित करती है, सामाजिक गुणों को विकसित करके समूह प्रवृत्ति का विकास करती है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक शक्तियों का विकास कर व्यक्तित्व को संतुलित करती हैं।

खेल विधि से शिक्षण करते समय हम परिवेश में उपलब्ध सामग्री प्रयोग करें और अभिनय को शामिल कर दें तो शिक्षण जीवन से सहसंबंधित होगा और रुचिकर हो जाएगा। शिक्षण में इसके महत्व को फ्रीबेल ने सबसे पहले रेखांकित किया-
गिनती का ज्ञान कराना हो या अक्षर ज्ञान देना हो तो बच्चों की पंक्तियां बनवाएं। उसका नाम क, ख, ग आदि रख दें, फिर दौड़ लगवाएं। दौड़ में उनके स्थानों की गणना में 0, 1, 2, 3 का ज्ञान दिया जा सकता है।

समूह चर्चा विधि

किसी विषय पर एक से अधिक लोगों द्वारा चिन्तन और वार्तालाप करने को समूह चर्चा विधि कहते हैं। इस विधि से शिक्षण करने से सुनने, समझने का कौशल विकसित होता है।

इन्हें भी जानें (महत्व)

  • सामाजिकता
  • लोकतांत्रिक
  • ज्ञानवर्द्धन
  • स्वतंत्रता

यह विधि अधिगम पर ज्यादा जोर देती है। समूह में चर्चा करने से एक ओर जहाँ खुलकर अभिव्यक्ति का अवसर होता है वहीं दूसरी ओर विषय भी स्पष्ट होता चलता है। इस विधि में शिक्षक-शिक्षार्थी दोनों की समान रूप से सहभागिता एवं सक्रियता रहती है। कक्षागत अनुशासन बना रहता है और तर्क आदि मानसिक संक्रियाओं का बार-बार अभ्यास भी हो जाता है।

ध्यान देने योग्य बिंदु

  • चर्चा का विषय स्पष्ट होना चाहिए।
  • चर्चा का माध्यम एक भाषा ही होनी चाहिए।
  • चर्चा में छात्रों को छोटे-छोटे समूहों में बांट देना चाहिए।
  • अनावश्यक विवाद न हो, शिक्षक इस बात के प्रति जागरूक रहें।
  • चर्चा के अंत में प्रश्न पूछकर बोधगम्यता का पता लगाना चाहिए।

प्रयोगात्मक विधि

नाम से ही स्पष्ट है, जिस विधि में प्रयोग करके सिखाया जाए वह शिक्षण की प्रयोगात्मक विधि कहलाती है। इस विधि का आधार वैज्ञानिकता एवं तार्किकता है। प्रयोग द्वारा शिक्षण करने से छात्र सक्रिय एवं एकाग्र रहते हैं और स्वयं करके सीखने का अवसर होने से अधिगम स्थायी होता है।

इस विधि में बालक की समस्त इंद्रियां सक्रिय होती हैं, इसलिए सीखना सरल व सहज होता है।
स्वयं करें और देखें

  • लाल और हरा रंग मिलाने से कौन सा रंग बनता है?

प्रयोग विधि का उपयोग
किसी वस्तु के बारे में जानना हो तो क्या-क्या करेंगे-

  • वस्तु देखने में कैसी है?
  • वस्तु का रंग कैसा है?
  • वस्तु का आकार कैसा है?
  • छूने पर वस्तु कैसी लगती है?
  • पटकने पर कैसी आवाज होती है?
  • वस्तु हल्की है या भारी है?

इन्हें भी जानें

  • प्रयोग विधि से क्रियाशीलता बनी रहती है।
  • ज्ञान प्रक्रिया दो तरफा होती है।
  • कल्पना व यथार्थ का अंतर पता चलता है।
  • जिज्ञासा पूर्ति में सहायक है।

वाद-विवाद प्रविधि

महिलाओं की व्यवसाय में आवश्यकता इस विषय पर एक पक्ष है- महिलाओं का व्यवसाय करना जरूरी है, दूसरा पक्ष नहीं जरूरी है। जब किसी विषय पर चर्चा के लिए दो पक्ष होते हैं, उनके अलग-अलग मत होते हैं और दोनों की चर्चा के बाद निष्कर्ष निकाला जाता है। इसी विधि को वाद-विवाद विधि कहते हैं।

महत्व

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रहती है।
  • प्रसंग/तथ्य को स्पष्ट करने में सहायता मिलती है।
  • जिज्ञासाएं शांत होती हैं, नवीन ज्ञान में वृद्धि होती है।
  • मानसिक विकास के लिए उपयोगी है।
  • माध्यमिक कक्षा से उच्च कक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सुनने, बोलने का कौशल विकसित होता है।

चर्चा करें
"कक्षा में अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदारी" पक्ष- विपक्ष में विचार व्यक्त करके सीखें।

कार्यशाला प्रविधि

कार्यशाला एक निश्चित विषय पर परिचर्चा का प्रायोगिक कार्य होता है जिसमें सभी प्रतिभागी सदस्य अपने ज्ञान, अनुभवों व कौशलों के पारस्परिक आदान-प्रदान के द्वारा विषय के बारे में सीखते हैं। शिक्षक अपने शिक्षण में सफलता पाने के लिए विविध विधियों/प्रविधियों का प्रयोग करता है। कार्यशाला प्रविधि ऐसी ही एक प्रविधि है। इसकी सहायता से छात्रों में क्रियात्मक पक्षीय उच्च अधिगम को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किया जाता है। कार्यशाला शब्द का प्रयोग अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अधिक किया जाता है, जैसे- रेल वर्कशॉप, सड़क परिवहन कार्यशाला आदि, जहाँ पर रेल इंजन व बसों को निर्मित करने व उनकी मरम्मत की व्यवस्था होती है। कार्य करते हुए ही यहाँ पर कुछ सीखा जा सकता है। अतः इस प्रविधि में श्रम आधारित स्वयं सक्रिय रहते हुए व्यावहारिक क्रियाकलापों के अधिगम को महत्व दिया जाता है।

कार्यशाला का अर्थ
कार्यशाला वह प्रविधि है जिसमें छात्र वास्तविक रूप से सक्रिय रहकर कार्य करते हुए अपने व समूह के सदस्यों के अनुभवों के पारस्परिक आदान-प्रदान के द्वारा किसी विषय की जानकारी प्राप्त करता है। चूँकि छात्र इसमें सक्रिय प्रतिभाग करते हैं अतः प्राप्त ज्ञान स्थायी, विश्वसनीय व उपयोगी होता है। इस प्रविधि का प्रयोग छात्रों के क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिए किया जाता है। इसमें प्रायोगिक कार्य द्वारा ज्ञानार्जन को अधिक महत्व दिया जाता है।

चर्चा के बिंदु

  • छात्रों में क्रियात्मक पक्ष के विकास हेतु कार्यशाला के अतिरिक्त शिक्षक और कौन-कौन से क्रियाकलाप करा सकता है?
  • कार्यशाला का आयोजन क्यों किया जाता है?

कार्यशाला की परिभाषा
डॉ. प्रीतम सिंह के अनुसार- "कार्यशाला आमने-सामने का ऐसा प्राथमिक समूह है जिसमें सामाजिक अंतरक्रिया अधिक नजदीक तथा प्रत्यक्ष होती है और यह सदस्यों पर अधिक सामाजिक नियंत्रण रखती है।"
शिक्षा शब्दकोष के अनुसार- "कार्यशाला एक शैक्षणिक प्रविधि है, जिसमें समान रुचियों और समस्याओं से युक्त व्यक्ति उपयुक्त विशेषज्ञों के साथ प्रायः आवासिक और कई दिनों की अवधि में आवश्यक सूचनाएं प्राप्त करने और समूह अध्ययन के माध्यम से समाधान निकालने के लिए मिलते हैं।"

उपर्युक्त आधार पर निष्कर्ष
कार्यशाला/कार्यगोष्ठी पारंपरिक क्रियाकलापों से परे सर्वथा नवीन, रोचक व आनंददायी माहौल प्रस्तुत करती है। ऐसे माहौल में छात्र-छात्राएं स्वतंत्र होकर अपनी रुचि से कार्य करते हैं। फलतः उनकी अंतर्निहित क्षमताएं व मानसिक चिंतन अपने वास्तविक रूप में हमारे सामने आते हैं।

कार्यशाला प्रविधि के उद्देश्य
ज्ञानात्मक उद्देश्य

  • शिक्षण संबंधी समस्याओं का समाधान खोजना।
  • किसी प्रकरण के व्यावहारिक पक्ष को समझना।
  • शिक्षण उद्देश्यों एवं विधियों का निर्धारण करना तथा उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।

क्रियात्मक उद्देश्य

  • शिक्षण की विशिष्ट क्षमताओं का विकास करना।
  • समूह में कार्य करने व सहयोग की भावना का विकास करना।
  • शिक्षण की प्रभावी विधियों/प्रविधियों का निर्धारण करना।
  • शिक्षा व शिक्षण के नवीन उपागमों का प्रशिक्षण देना।
  • शिक्षण कौशल का विकास व सुधार करना।

कार्यशाला का क्षेत्र
शिक्षा के क्षेत्र में कार्यशाला प्रविधि बेहद उपयोगी है। इसका उपयोग शिक्षण में व्यापक रूप में किया जा सकता है। इसके क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य सम्मिलित हैं-

  • पाठ योजना के नवीन प्रारूप बनाने हेतु
  • क्रियात्मक शोध के प्रयोग हेतु
  • पाठयोजना में प्राप्त उद्देश्यों को व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करने हेतु
  • पाठयोजना में नवाचारों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन


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