भारतीय शिक्षा आयोग 1882-83 || हण्टर कमीशन

भारतीय शिक्षा आयोग 1882-83 (हण्टर कमीशन)

हण्टर कमीशन
आयोग की नियुक्ति का कारण-1854 के घोषणा-पत्र के अनुसार आशाजनक प्रगति न हुई। प्राथमिक शिक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया गया। माध्यमिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति अवश्य हुई।

इसी बीच 1857 के क्रान्ति के स्वरूप भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता समाप्त कर दी गई तथा भारत की राजसत्ता ब्रिटिश सराकर ने अपने हाथ में ले ली।
हण्टर कमीशन
    1882 में लार्ड रिपन भारत का वाइसराय नियुक्त होकर भारत आया और सर विलियम हंटर की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति की जिसे हंटर कमीशन भी कहा जाता है।

आयोग के उद्देश्य 

हंटर कमीशन को निम्नलिखित बातों की जाँच करने के लिए कहा गया

1. भारत में प्राथमिक शिक्षा की दशा देखना तथा उसके विकास में सहयोग देना। 
2. उच्च व माध्यमिक शिक्षा के प्रोत्साहन से प्राथमिक शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा। 
3.माध्यमिक शिक्षा का प्रसार किन साधनों से किया जाए। 
4.सहायता अनुदान प्रणाली के सम्बन्ध में सरकार की नीति क्या होनी चाहिए।
5. भारतीय शिक्षा व्यवस्था में व्यक्तिगत प्रयासों के प्रति सरकार की नीति क्या हो। 
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हण्टर आयोग की सिफारिशें तथा सुझाव 

1. प्राथमिक शिक्षा

1. प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य जन साधारण में शिक्षा का प्रसार करना निर्धारित किया जाए। 
2. इस शिक्षा का प्रसार पिछड़ी हुई जातियों और आदिवासियों में विशेष रूप में किया जाए। 
3. इस शिक्षा का प्रशासन तथा संचालन भार जिला परिषदों और नगर पालिकाओं को दे दिया जाए।
4. इस शिक्षा में जीवन उपयोगी विषयों जैसे गणित, कृषि आदि को स्थान दिया जाए। 
5. इस शिक्षा के स्तर को उच्च बनाने के लिए प्रत्येक निरीक्षक के क्षेत्र में कम से कम एक नार्मल स्कूल की स्थापना की जाए। 
6. प्राथमिक शिक्षा को देश की शिक्षा प्रणाली का अंग घोषित किया जाए। 
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2. माध्यमिक शिक्षा

1. इसके लिए 'सहायता अनुदान प्रणाली' का प्रयोग किया जाए। 
2. हर जिले में एक विद्यालय का निर्माण किया जाए और उसके संचालन का भार वहाँ के निवासियों को दे दिया जाए। 
3. माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार के पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाए 'ए' तथा 'बी' कोर्स। 
4. माध्यमिक शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना की जाए। 
5. इस शिक्षा का माध्यम 'मातृभाषा' हो पर छात्रों को अंग्रेजी का कुछ ज्ञान अवश्य दिया जाए। 
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3. उच्च शिक्षा

1. कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति करते समय यूरोपीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीयों को प्राथमिकता दी जाए।
2. कॉलेजों के शिक्षकों की संख्या, व्यय, फर्नीचर, पुस्तकालय और भवन निर्माण की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सहायता अनुदान दिया जाय।
3. कॉलेजों के पाठ्यक्रमों को छात्रों की रुचि के अनुसार विस्तृत करके उन्हें चयन करने का अवसर दिया जाये। 
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4.सहायता अनुदान प्रणाली 

1. प्राथमिक स्कूलों के लिए परीक्ष फल के अनुसार वेतन प्रणाली' (Payment by Result System) का प्रयोग किया जाए।
2. सहायता अनुदान देते समय विद्यालयों की आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाए। 
3.. विद्यालयों को पुस्तकालय, शिक्षण सामग्री फर्नीचर आदि के लिए विशेष सहायता अनुदान दिया जाए। 
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5. धार्मिक शिक्षा

1. सरकारी स्कूलों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा न दी जाए।
2. गैर सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है परन्तु सरकार द्वारा उसकी ओर कोई ध्यान न दिया जए। 
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6. मुसलमानों की शिक्षा 

1. प्राचीन ढंग से शिक्षा देने वाले मुल्लिम स्कूलों को प्रोत्साहित किया जाए। 
2. जिन प्राथमिक स्कूलों में मुसलमानों की संख्या अधिक है, उनमें फारसी की शिक्षा दी जाए। 
3. मुसलमानों में शिक्षा के प्रसार के लिए छात्रवृत्तियाँ दी जाएँ।
4. मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में उचित अनुपात में रखा जाय।
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7. स्त्री शिक्षा

1. बालिकाओं के विद्यालयों को अधिक सहायता अनुदान दिया जाए। 
2. बालिकाओं में शिक्षा का प्रसार करने के लिए छात्रवृत्तियाँ और नि:शुल्क शिक्षा देने की योजनाएँ बनाई जाएँ।
3. पर्दे में रहने वाली बालिकाओं के लिए अध्यापिकाओं को नियुक्त किया जाय जो उनके घरों में जाकर शिक्षा दें। 
4. बालिकाओं के विद्यालयों का निरीक्षण करने के लिए निरीक्षिकाओं की नियुक्ति की जाए। 
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आयोग का मूल्यांकन

हण्टर कमीशन का भारतीय शिक्षा के इतिहास में अद्वितीय स्थान है। कमीशन की जाँच के परिणामस्वरूप भारत में महान शैक्षिक जागृति हुई तथा एक निश्चित नीति का  सूत्रपात हुआ । देश में प्राथमिक विद्यालयों का जाल - सा बिछ गया । अंग्रेजी स्कूलों तथा कॉलेजों का आश्चर्यजनक विस्तार हुआ । आयोग की सिफारिशों में निम्नलिखित दोष थे 
1. आर्थिक एवं औद्योगिक विकास का अभाव था । 
2. जन साधारण की शिक्षा की मांग की पूर्ति न हो सकी । 
3. समाज को इस शिक्षा प्रणाली ने दो स्पष्ट वर्गों में बाँट दिया । 
4. पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल था ।

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