दलित शिक्षा का विकास

1882 से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक दलितों की शिक्षा के विकास 

दलित शिक्षा के मुद्दे (स्वतन्त्रता प्राप्ति तक) 


अंग्रेजों के शासन काल में 1882 से लेकर 1902 तक की अवधि में हरिजनों एवं पिछड़ी जातियों की शिक्षा में आशातीत वृद्धि हुई। भारतीय शिक्षा आयोग के अनुसार राजकीय विद्यालयों में हरिजनों एवं पिछड़ी जाति के छात्रों को प्रवेश दिया जाने लगा। परन्तु सवर्ण हिन्दुओं ने सरकार की इस नीति का घोर विरोध किया। अत: सरकार के आयोग के सुझाव को स्वीकार करके हरिजनों के लिए एवं पिछड़ी जातियों के लिए विशेष विद्यालय प्राथमिक स्तर के खोले गए। गाँव-गाँव में स्कूल खोले गए। हरिजन व पिछड़ी जाति के बालकों ने प्रवेश लिया और शिक्षा ग्रहण की।

शिक्षा विभाग ने पुन: अपना सुझाव दिया कि सरकारी स्कूलों में सभी बालको को बिना भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार है। जनता ने सरकार की दृढ़ता का रूख देखकर विरोध करना बन्द कर दिया था क्योंकि सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी और नौकरी की दृष्टि से अंग्रेजी पढ़ना आवश्यक था।

समाज सुधारक आर्य समाजी, ब्रह्मसमाजी,ज्योतिरावफूले आदि अस्पर्शता को जड़ से नष्ट करने का संकल्प ले रखा था। वे समाज से छूआछूत को दूर करने का पूरा प्रयास कर रहे थे। इसका प्रभाव यह पड़ा कि विद्यालयों में सवर्णों द्वारा अछूतों का विरोध करना कम होने लगा।

समाज में अब हरिजनों में भी जागृति आने लगी थी। कुछ प्रान्तीय सरकारों ने भी हरिजनों दलितों के प्रति उदारता का भाव रखा तथा उन्होंने अनेक नियम बनाकर प्रत्येक सम्भव रीति से प्रोत्साहित किया।

    1893 में मद्रास की सरकार ने हरिजनों के लए एक विस्तृत प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव को 'पंचम शिक्षा का महाअधिकार पत्र' माना गया। इस प्रस्ताव की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं

1. प्रशिक्षण महाविद्यालय में पढ़ने वाले प्रत्येक पंचम छात्र को 2 रुपए मासिक कृतिका (Slipend) दी जावेगी।

2. गैर सरकारी प्रशिक्षण विद्यालयों में पंचम छात्र प्रवेश ले, उन्हें अधिक सहायता अनुदान दिया जायेगा।

3. नगर पालिकाएँ बड़े ग्रामों तथा नगरों में पंचम छात्रों के लिए स्कूल खोले। 

4. सरकारी बंजर भूमि को पंचम विद्यालयों के निर्माण के लिए दे दिया जाए। 

5. पंचम वर्ग के लिए रात्रि पाठशालाएँ स्थपित की जावें।

इस प्रकार तत्कालीन व्यवस्था में हरिजनों एवं पिछड़ी जाति के छात्रों को, छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गई। हरिजन अध्यापकों के लिए मद्रास में प्रशिक्षण विद्यालय खोला गया। मद्रास की तरह मुम्बई तथा अन्य प्रान्तों में भी हरिजनों व दलितों की शिक्षा के लिए प्रयास किए गए परन्तु ज्यादा सफल नहीं हुए। उत्तरी भारत में हरिजनों की शिक्षा की व्यवस्था सरकारी स्तर पर तो ठीक थी, परन्तु फिर भी पिछड़ी ही रही। मिशनरियों ने भी हरिजनों की शिक्षा का प्रयास किया था। 

हरिजन (दलित वर्ग)की शिक्षा (1905 से 1921)


- इस अवधि में हरिजनों की शिक्षा में काफी प्रगति हुई। अब हरिजन छात्र माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने लगे थे। हरिजनों की शिक्षा के लिए सरकारी व व्यक्तिगत रूप से निम्न प्रयास किए जा रहे थे

1. सरकारी प्रयास— 

हरिजनों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए।

1.निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था 
2. छात्रवृत्ति व आर्थिक सहयोग 
3. छात्रावासों का प्रबंध 
4. विद्यालयों को अनुदान 
5. हरिजन शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था ।

2. व्यक्तिगत प्रयास- 

अब हिन्दू सवर्ण भी समाज से अस्पृश्यता के कलंक को धो लेना चाहते थे। आर्य समाज, ब्रह्मसमाज और प्रार्थना समाज अछूतो के लिए कार्य कर रहे थे। गोपाल कृष्ण गोखले ने अस्पृश्यता को दूर करने तथासम्पूर्ण नष्ट करने के लिए भारत सेवक समाज की स्थापना की । 1914 में श्री अमृत लात ठक्कर ने, जीवनभर हरिजनों के लिए काम किया। 1906 में विट्ठल राम जी शिंधे ने दलित वर्ग उद्धार सभा' की स्थापना की। महात्मा गांधी ने हरिजनों के उद्धार के लिए महान कार्य किए। उन्होंने दलित वर्ग को हरिजन नाम दिया। डॉ. अम्बेडकर ने हरिजनों की उन्नति के लिए कार्य किया। बड़ौदा और कोल्हापुर के नरेशों ने हरिजनों के उद्धार के लिए भागीरथ कार्य किया। कई विशेष विद्यालय खोले गए। छात्रावास खोले तथा छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की गई। 

हरिजन (दलित वर्ग) की शिक्षा (1921 से 1934)


    सन् 1921 में प्रान्तीय शिक्षा का संचालन भारतीय मन्त्रियों के हाथों में आ जाने से हरिजन शिक्षा की प्रगति में तेजी आई। विभिन्न प्रान्तों में हरिजन शिक्षा का विस्तार करने के लिए अनेक कार्यक्रम बनाए गए। अब हरिजनों के लिए बनाए गए विशेष विद्यालय बन्द किए जाने लगे। 1937 तक हरिजन बालक बिना किसी कठिनाई के सभी सरकारी विद्यालयों में अध्ययन करने लग गए थे।

महात्मा गांधी ने हरिजनों की शिक्षा तथा उनके उद्धार व समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयास किया। उन्होंने कहा कि हरिजनों को समाज में स्थान दिए बिना 'स्वराज्य' की कल्पना निरर्थक है। परन्तु समाज में भी हरिजनों के साथ, समानता का व्यवहार नहीं किया जा रहा था। 1933 में महात्मा गांधी ने 'हरिजन' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया। ___
    डॉ. अम्बेडकर ने हरिजनों को राजनीतिक-सामाजिक एवं आर्थिक अधिकार दिलाने के लिए सरकार के साथ मिलकर कार्य किया। 

हरिजनों की शिक्षा (1934 से 1947)


1937 में विभिन्न प्रान्तों में कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के पास प्रशासकीय शक्तियों आ जाने से हरिजनों की शिक्षा को बढ़ाने का अवसर अधिक मिला। सभी प्रान्तों में अस्पृश्यता का अन्त करने के लिए अधिनियम बनाए गए। हरिजनों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के अवसर प्रदान किए गए। हरिजनों के लिए स्थापित विशेष विद्यालयों को समाप्त कर दिया गया। सभी के लिए सरकारी विद्यालयों के द्वार खोल दिए गए। इनके लिए निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्तियाँ, पुस्तकें, छात्रावास खोले गए। मेडीकल व इंजिनियरीग की शिक्षा में भी हरिजनों को विशेष सुविधा दी जाने लगी। उनके लिए व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की गई।

1942 में डॉ. अम्बेडकर गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य बने। उनके प्रयास से केन्द्रीय सरकार के हरिजनों तथा पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए छात्रवृत्तियाँ देने की स्वीकृति दी।

    कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल ने हरिजनों की तरह आदिवासियों तथा पिछड़ी जातियों के छात्रों के लिए भी छात्रवृत्तियाँ देना शुरू कर दिया। इस प्रकार समाज में दलित वर्गों का उत्थान होने लगा।

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