माध्यमिक शिक्षा आयोग

माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिश
माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रमुख गुण 
माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रमुख दोष

माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिश


आयोग का प्रतिवेदन प्राप्त करने के बाद केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने इस पर पुनःविचार करने के लिए एक समिति का गठन किया। इस समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद बोर्ड ने अपने 21 वें अधिवेशन में 7 जनवरी,1954 को ये दोनों रिपोर्ट प्रस्तुत की। लम्बे विचार-विमर्श के बाद आयोग की मूल सिफारिशों को स्वीकार किया गया
माध्यमिक शिक्षा आयोग
माध्यमिक शिक्षा आयोग


1. माध्यमिक शिक्षा भारत के अधिकांश छात्रों के लिए अपने में पूर्ण शिक्षा हो। 
2. यह कक्षा 6 से कक्षा 11 तक ही हो। 
3. इस स्तर पर विविध पाठ्यक्रम हो। 
4. इस स्तर पर कोई हस्तशिल्प अनिवार्य हो।
5. हाई स्कूल और इण्टरमीडिएट कॉलेजों को बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बदल दिया जाएं।
6. छात्रों के लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था की जाएं।
7. सम्पूर्ण भारत में माध्यमिक शिक्षा के संबंध में समान नीति एवं समान योजना बनाने हेतु केन्द्र में "अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा सलाहकार बोर्ड" का गठन किया जाएं और केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के इस निर्णय पर केन्द्र सरकार ने अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी।

ये सुझाव एवं प्रस्ताव प्रान्तीय सरकारों और योजना आयोग को भेजे गए। कई प्रान्तों में 5+6+3 की योजना लागू की गई और 10 वर्षों के अन्दर 2115 माध्यमिक विद्यालयों को बहुउद्देशीय माध्यमिक विद्यालयों में परिवर्तित कर दिया गया। आयोग की उपरोक्त सिफारिशों को लागू कर देने से कुछ लाभ तो कुछ हानियाँ भी हुई।

माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रमुख गुण 


1. शिक्षा के उपयुक्त उद्देश्य- 

इस आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के जो उद्देश्य निश्चित किए हैं वे अति व्यापक है। छात्रों के व्यक्तित्व विकास से उसका तात्पर्य छात्रों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक और चारित्रिक विकास से है। शिक्षा द्वारा लोकतंत्रीय सिद्धान्तों के ज्ञान और लोकतंत्रीय जीवन शैली से प्रशिक्षित करने से है। नेतृत्व शक्ति और व्यावसायिक कुशलता का विकास तो लोकतंत्र की सफलता का आधार है।

2. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा-

आयोग ने माध्यमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को बनाने पर बल दिया। यह किसी भी स्वतंत्र देश के लिए हितकर है, हमारे देश भारत के लिए भी।

3. शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन पर बल- 

आयोग ने बहुउद्देशीय माध्यमिक विद्यालय खोलने पर बल दिया। ये तभी सफल हो सकते थे जब बच्चों को विद्यार्थियों में शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श दिया जाता। अतः उसने प्रत्येक विद्यालय में इसकी व्यवस्था पर बल दिया।

4. स्त्री शिक्षा के संबंध में ठोस सुझाव - 

आयोग ने बालक-बालिकाओं की शिक्षा में किसी प्रकार का भेद न करने की सिफारिश की। आयोग की दृष्टि से बालिकाओं की भांति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।

5. व्यवस्थित प्रशासनिक ढाँचा - 

आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था में केन्द्र सरकार की भागीदारी पर बल दिया, केन्द्र की भाँति प्रान्तों में भी प्रान्तीय शिक्षा सलाहकार बोडों की स्थापना का सुझाव दिया प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के गठन का सुझाव दिया और विद्यालयों के नियमित निरीक्षण पर बल दिया।

6. चरित्र निर्माण और अनुशासन पर बल- 

आयोग ने चरित्र निर्माण और अनुशासन पर विशेष बल दिया और इनकी प्राप्ति के लिए ठोस सुझाव दिए। आज भारत में चरित्र निर्माण और अनुशासन की बड़ी आवश्यकता है। इनके अभाव में हम क्या, कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता।

7. पाठ्यचर्या निर्माण के उपयुक्त सिद्धान्त- 

आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या को चार आधारों-वास्तविकता, व्यापकता, उपयोगिता और सहसंबंध पर विकसित करने का सुझाव दिया। ये आज पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्त माने जाते हैं। आयोग ने माध्यमिक स्तर की पाठ्यचर्या में सहपाठ्यचारी क्रियाओं को अनिवार्य करने का सुझाव भी दिया।

8. परीक्षा प्रणाली में सुधार- 

आयोग ने निबंधात्मक परीक्षा को दूर करने के लिए ठोस सुझाव दिए। उन सुझावों में दो सुझाव बड़े महत्त्वपूर्ण है। पहला यह है कि निबंधात्मक प्रश्नों की रचना सावधानी से की जाएं और विचार प्रधान प्रश्न पूछे जाएं और दूसरा यह है कि निबंधात्मक परीक्षाओं के साथ-साथ वस्तुनिष्ठ परीक्षा की भी व्यवस्था की जाएं। आज इन सुझावों को स्वीकार करने से परीक्षा प्रणाली में सुधार हुआ है, वह कुछ वस्तुनिष्ठ और विश्वसनीय हुई है।

9. शिक्षकों की दशा में सुधार - 
आयोग ने सर्वप्रथम शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बल दिया और शिक्षक-प्रशिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए ठोस सुझाव दिए। उसने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियम बनाने पर भी बल दिया। पर साथ ही उनके वेतनमान बढ़ाने और उनकी सेवा शर्तों में सुधार करने की सिफारिश भी की। इससे योग्य व्यक्तियों का शिक्षण कार्य की और आकर्षित होना स्वाभाविक है।

माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रमुख दोष


    ऐसा नहीं है कि माध्यमिक शिक्षा आयोग के सभी सुझाव अपने आप में उपयुक्त थे। आज की दृष्टि से उसके कुछ सुझाव तो एकदम अनुपयुक्त थे। उन्हें ही हम उसके दोष कहते हैं। ये दोष निम्न प्रकार हैं

1.बोझिल पाठ्यचर्या- 

माध्यमिक स्तर पर तीन भाषाएँ और कुल मिलाकर आठ विषयों का अध्ययन लगता है। आयोग बच्चों को माध्यमिक स्तर पर ही सब कुछ पढ़ा लिखा देना चाहता था।

2. व्यय साध्य बहुउद्देशीय स्कूल- 

आयोग ने माध्यमिक विद्यालयों को बहुउद्देशीय माध्यमिक विद्यालयों में बदलने का सुझाव दिया, सभी स्कूलों में एक साथ अनेक हस्तकौशलों और व्यवसायों की शिक्षा की व्यवस्था का सुझाव दिया। आयोग ने संभवत:इस पर होने वाले व्यय का अनुमान नही लगाया जाता था। यदि यह व्यय और लाभ का अनुमान लगाता तो शायद यह सुझाव नहीं देता।

3. माध्यमिक शिक्षा का अस्पष्ट संगठन - 

आयोग ने एक ओर 7 वर्षीय माध्यमिक शिक्षा की बात की और दूसरी ओर कक्षा 6,7, तथा 8 को निम्न माध्यमिक और कक्षा 9,10 तथा 11 को उच्च माध्यमिक और इस प्रकार कुल 6 वर्षीय माध्यमिक शिक्षा की बात की,यह अपने में अस्पष्ट है। इण्टरमीडिएट की कक्षा-11 को माध्यमिक शिक्षा और कक्षा-12 को स्नातक शिक्षा में जोड़ने संबंधी सुझाव के पीछे भी कोई ओचित्य नजर नहीं आता। इन सबसे परेशानियों के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगा और हमें पुन: 10+2 की ओर लौटना पड़ा।

4. धार्मिक और नैतिक शिक्षा के संबंध में अनुपयुक्त सुझाव- 

आयोग का यह सुझाव कि स्कूलों में धामिक एवं नैतिक शिक्षा की व्यवस्था तभी की जाएं जब अभिभावक चाहें और वह भी स्कूल समय से पहले या बाद में, एक उलझा हुआ एवं अव्यावहारिक सुझाव है।

5. अंग्रेजी के बारे में अस्पष्ट सुझाव- 

आयोग ने अंग्रेजी के अध्ययन के विषय में कुछ उलझे हुए सुझाव दिए हैं। एक तरफ उसे अनिवार्य विषयों की सूची में रखा है और वह भी विभिन्न रूपों में और दूसरी ओर दो वर्गों में ऐच्छिक विषयों की सूची में रखा है और वह भी विभिन्न रूपों में।

6.विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम-

आयोग ने माध्यमिक स्तर पर 7 वर्गों का निर्माण किया और सातों वर्गों के लिए कुछ विषय समान रखे और भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न रखें। कुछ ऐच्छिक विषयों को दो या दो से अधिक वर्गों में भी रखा जाता है। इन सबके पीछे कोई ठोस तर्क नहीं थे। अब जब पूरे देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू हो गई है, यह वर्ग विभाजन अर्थहीन हो गया है।

7.गैर सरकारी स्कूलों के संदर्भ में हवाई सझाव- 

आयोग ने गैर सरकारी माध्यमिक स्कूलों में सुधार के लिए जो सुझाव दिए हैं वे अपने में उपयुक्त होते हुए भी हवाई सुझाव हैं। जिस देश की राजधानी में तम्बुओं में विद्यालय चल रहे हों और ग्रामों में खुले आकाश के नीचे चल रहे हों, उस देश के विद्यालयों में बिना सरकारी सहायता के सब सुविधाएँ उपलब्ध कराना हवाई सुझाव नहीं तो और क्या है।
Kkr Kishan Regar

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