पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एवं उद्देश्य

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एवं उद्देश्य

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एवं  उद्देश्य
पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एवं  उद्देश्य 


पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा


हमारे चारों ओर व्यास जैविक एवं अजैविक संसाधन ही पर्यावरण की रचना करते हैं। मानव स्वयं इसका एक अभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं। मानव अपने उद्भव से ही अपनी क्रियाकलापों द्वारा पर्यावरण को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता आया है। अपनी बुद्धि और विवेक से उपभोक्ता बनकर प्रकृति के विविध संसाधनों का उपभोग प्रारम्भ किया तथा आज यह सीमा चरम स्तर पर पहुँच गई है जिससे प्रकृति में पर्यावरण असंतुलित स्थिति में पहुंच गया है। वह प्रकृति का अभिन्न अंग र रह कर उसका प्रतिद्वन्दी बन गया है और अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अविवेकपूर्ण संसाधनों का दोहन कर रहा है। मानव ने अपनी क्रियाओं से पृथ्वी के पर्यावरण को संकट वाली स्थिति में ला दिया है तथा स्वयं के अस्तित्त्व को भी संकट में डाल दिया है।

'पर्यावरण बचाओं' को गूंज हर ओर से आने लगी है। संसाधनों का अभाव न्यूनता ने हमें विचार करने को मजबूर कर दिया है। विश्व में पर्यावरण संकट से उबरने -

के लिए पर्यावरण जागरूकता की आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है। जन साधारण को पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से ही जागरूक किया जा सकता है।

साना पर्यावरण शिक्षा जन-चेतना जाग्रत करने का एक सशक्त माध्यम है। पर्यावरण से सीखना एवं इसके अद्भुत घटकों को जानना एवं इस सीख से पर्यावरण को सम्बद्धित एवं सुरक्षित करने की चेतना जागृत करना ही पर्यावरण शिक्षा है।

पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा-"पर्यावरण शिक्षा विश्व समुदाय को प्रदान की जाने वाली वह शिक्षा है जिससे वे पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं से अवगत होकर उनका समाधान खोज सके एवं भविष्य में आने वाली समस्याओं के प्रति अवरोध बना सके।"

"पर्यावरण शिक्षा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में पर्यावरण को अवबोध, संरक्षण, रखरखाव एवं उसके सुधार के बारे में अवसर प्रदान करने वाली शिक्षा है, जो मानव अस्तित्व की पर्यावरण संकट से सुरक्षा कर सकती है।"

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ- 

पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान का अध्ययन पर्यावरण शिक्षा कहलाता है। इसमें पर्यावरण के संगठन, समस्याओं, संरक्षण आदि का ज्ञान कराया जाता। यूनेस्को 1976 के जम्मी सेमीनार में पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा को इस तरह निर्धारित किया पर्यावरण शिक्षा एक तरीका है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य प्राप किये जाये। यह पृथक से विज्ञान की कोई शाखा नहीं अपितू जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया संयुक्त राज्य अमेरिका के पर्यावरण शिक्षा एक्ट ने पर्यावरण शिक्षा के बारे में निम्न धारणा व्यक्त की --

पर्यावरण एक अविभाज्य प्रक्रिया है जो प्राकृतिक एवं मानवकृत परिवेश के साथ मानव के अन्तः सम्बन्धों को स्पष्ट करती हैं। इसके साथ जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधन क्षरण, तकनीकी एवं नियोजन के सम्बन्ध की भी जानकारी कराती है।

इस तरह पर्यावरण शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है। इसमें पर्यावरण के भौतिक संगठन के साथ जैव अन्त: क्रिया, समस्याओं, संरक्षण, प्रबन्धन एवं सन्तुलन की पर्याप्त जानकारी कराई जाती है।

"पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण के संगठन, रख रखाव, सुधार एवं संरक्षण की शिक्षा का विज्ञान है।"

- चेपमेन टेलर के अनुसार पर्यावरण शिक्षा का अभिप्राय सद्नागरिकता का विकास करने के लिए पाठ्यक्रम को पर्यावरणीय मूल्यों एवं समस्याओं पर केन्द्रित करना।

- न्यूजीलैण्ड के संयुक्त पर्यावरणीय अध्ययन केन्द्र के अनुसार - "पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य इस प्रकार के समाज का निर्माण करना है जो पर्यावरण एवं उसकी समस्याओं से ज्ञान सम्पन्न हो, उन्हें हल करने के लिए प्रेरित हो सके।"

- लक्ष्मीधर के अनुसार- "पर्यावरण शिक्षा एक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा मानव समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता, ज्ञान, कौशल, अभिवृत्तियों एवं मूल्यों का विकास किया जाता हैं, जो पर्यावरण सुधार एवं संरक्षण में सहायक हो सके।"

पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य 


पर्यावरण शिक्षा के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित है -

(i) पर्यावरण के महत्त्व को जन सामान्य तक पहुँचाना जिससे उनमें इसकी जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा उत्पन्न हो सके।

(ii) पर्यावरण के प्रकृति प्रदत्त उपहारों की जानकारी कराना। 
(iii) पर्यावरण समस्याओं की जानकारी देना। 
(iv) पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबन्धन की शिक्षा देना। 
(v) पर्यावरण के घटकों का अन्त:सम्बन्ध स्पष्ट करना। 
(vi) पर्यावरण सन्तुलन को विचलित करने वाले कारकों की जानकारी देना। 
(vii) पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना। 
(viii) पर्यावरण को समझने का कौशल एवं अभिवृत्ति का विकास करना। 
(ix) पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाये रखने की समझ का विकास करना। 
(x) व्यवहारिक कार्यों के लिए जन समुदाय को आगे लाना।

युनेस्कों में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन जो 1977 में तिबल्सी में हुआ। इसमें भी पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों को निश्चित किया गया। इनका सम्बन्ध औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षा से है तथा सभी आयुवर्ग को सम्मिलित किया गया।

प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार है 

(i) पर्यावरण सचेतना को जागृत करना। 
(ii) पर्यावरण संरचना का ज्ञान प्रदान कराना। 
(ii) पर्यावरण की समस्याओं से परिचित कराना। 
(iv) पर्यावरण घटकों की अन्त:निर्भरता को स्पष्ट करना।
(v) पर्यावरण के महत्त्व को स्पष्ट करना तथा इसके प्रति संवेदनशीलता का विकास करना। 
(vi) पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबन्धन तकनीक की जानकारी देना। 
(vii) पर्यावरण के प्रति रूचि, भावना, अभिवृत्ति एवं मूल्यों को विकास करना। 
(viii) पर्यावरण संतुलन के लिए नवीन जानकारी प्रदान करना। 
(ix) पर्यावरण समस्या को पहचानना एवं उसके समाधान करने का कौशल विकसित करना। 
(x) पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करना एवं इसके संरक्षण के लिए स्वयं को भागीदार बनाना। 
(xi) पर्यावरण मापक एवं शैक्षिक कार्यों का मूल्यांकन करना। 

बेलग्रेड घोषणा पत्र (1975) में पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य निम्न प्रकार से निर्धारित किये -


(i) संचेतना- पर्यावरण शिक्षा द्वारा व्यक्तिगत एवं सामाजिक समूह को पर्यावरण के प्रति जागृत एवं संवेदनशील बनाना।

(i) ज्ञान - पर्यावरण शिक्षा द्वारा व्यक्ति अथवा सामाजिक समूह को पर्यावरण संगठन का ज्ञान कराने के साथ इससे जुड़ी समस्याओं में मानव की भागीदारी स्पष्ट करना।

(iii) अभिवृत्ति - पर्यावरण समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाना तथा समस्याओं के समाधान एवं सुधार के लिए प्रेरित करना।

(iv) कौशल - पर्यावरण शिक्षा द्वारा पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के समाधान के कौशल का विकास करना।

(v) भागीदारी - पर्यावरण शिक्षा द्वारा जन-जन में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराना तथा समय-समय पर समस्या समाधान के लिए उचित कदम उठा कर भागीदार बनने को प्रेरित करना।

पर्यावरण शिक्षा के माध्यमिक स्तर पर उद्देश्य 


    पर्यावरण शिक्षा के माध्यमिक स्तर पर उद्देश्य - प्रत्येक विषय का शिक्षण कराने से पूर्व उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है जिससे शिक्षण के माध्यम से उनकी पूर्ति की जा सके। इन उद्देश्य का निर्धारण करते समय बालक के स्तर का ध्यान अवश्य रखा जाना है। यही कारण है कि प्राथमिक, उच्च प्राथमिक माध्यमिक तथा उच्च स्तर पर अलग-अलग उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है।

    पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रम निर्धारण में माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को अधिक महत्त्व देते हैं। इस स्तर पर पर्यावरण संगठन पर्यावरण समस्याओं को पहचानना तथा इनके कौशल के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है। पाठ्यवस्तु का आधार विज्ञान तथा इसके तथ्य होते हैं। बालकों को सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ क्रियात्मक ज्ञान भी कराया जाता है। इसके लिए छोटे-छोटे प्रयोग की व्यवस्था होती है। कक्षा सीमाओं से बाहर ले जाकर क्षेत्र के पर्यावरण औद्योगिक क्षेत्र, वन, जल साधनों तक भ्रमण एवं जानकारी प्राप्त करने पर भी विशेष बल दिया जाता है।

कोठारी शिक्षा आयोग (1966) एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण कर विद्यालय के अध्ययन विषयों के साथ पर्यावरण शिक्षा विषय को भी सम्मिलित करने की अभिषशा की गई है।

प्रमुख उद्देश्य -- 

(1) पर्यावरण संगठन की जानकारी प्रदान करना।

(2) पर्यावरण के घटकों एवं समस्याओं का ज्ञान प्रदान कर उनके विवेकपूर्ण उपयोग की चेतना जागृत करना।

(3) पर्यावरण सम्बन्धित समस्याओं की स्थिति का बोध करना। हानिकारक स्थितियों का बोध करना।

(4) पर्यावरणीय घटकों की अन्योन्यश्रयता का बोध कराना।

(5) पर्यावरणीय समस्या समाधान की कौशल एवं क्षमता का विकास करना।

(6) पर्यावरण समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाकर सकारात्मक सोच विकसित करना।

(7) पर्यावरण के सम्बन्ध में अभिकृती एवं मूल्यों का विकास करना। 

(8) पर्यावरण घटकों की प्रभावशीलता का आंकलन एवं मूल्यांकन करने की क्षमता का विकास करना।

(9) जन सामान्य की भागीदारी सुनिश्चित करना। 

(10) पर्यावरण से स्वयं को जोड़ना तथा स्वयं को इसका अभिन्न अंग मानना।

इस तरह माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण घटकों, समस्याओं एवं इनकी जीवन में सार्थकता का ज्ञान कराया जाता हैं।
Kkr Kishan Regar

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