NEP 2020 में हुआ नया Curriculum बदलाव: छात्रों पर क्या असर पड़ेगा?
परिचय: एक नए शैक्षिक सूर्योदय की पहली किरण
29 जुलाई 2020, यह तारीख भारतीय शिक्षा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित हो चुकी है। यह वह दिन था जब भारत ने 34 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को अपनाया। यह महज़ एक नीतिगत दस्तावेज़ का अद्यतन नहीं था, बल्कि यह भारत के भविष्य, यानी हमारे करोड़ों छात्रों के सीखने और विकसित होने के तरीके को जड़ से बदलने का एक साहसिक और दूरदर्शी संकल्प था। 1986 की शिक्षा नीति, जिसने एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित किया, अब 21वीं सदी की चुनौतियों और अवसरों के सामने अपर्याप्त लगने लगी थी। दुनिया बदल चुकी थी, और अब समय था कि भारत की शिक्षा प्रणाली भी बदले।

इस व्यापक बदलाव के केंद्र में है इसका नया पाठ्यक्रम (Curriculum) और शैक्षणिक संरचना में किया गया क्रांतिकारी परिवर्तन। पुरानी 10+2 की रटी-रटाई व्यवस्था को अलविदा कहकर, एनईपी 2020 ने 5+3+3+4 की एक नई, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक रूप से अधिक सुसंगत प्रणाली की नींव रखी है। यह बदलाव केवल कक्षाओं के नाम या वर्षों की गिनती का फेरबदल नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि हम शिक्षा को किस नज़रिए से देखते हैं—रटने की फैक्ट्री से निकालकर, सोचने, खोजने और रचने की एक प्रयोगशाला के रूप में।
लेकिन सबसे बड़ा और प्रासंगिक प्रश्न यह है कि इन कागज़ी बदलावों का ज़मीनी हक़ीक़त पर, यानी हमारे छात्रों के जीवन पर, क्या और कैसा असर पड़ेगा? क्या यह नया पाठ्यक्रम वास्तव में उन्हें भविष्य के लिए तैयार करेगा? क्या यह उन्हें सिर्फ एक नौकरी पाने वाला नहीं, बल्कि एक विचारक, एक नवप्रवर्तक और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनाएगा? इस लेख में, हम एनईपी 2020 के तहत हुए नए पाठ्यक्रम बदलावों की गहराई से पड़ताल करेंगे, इसके ऐतिहासिक संदर्भ को समझेंगे, वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे और भविष्य की संभावनाओं पर एक समग्र दृष्टि डालने का प्रयास करेंगे।
बदलाव की ज़मीन: क्यों पड़ी एक नई शिक्षा नीति की ज़रूरत?
किसी भी नई इमारत की मज़बूती उसकी नींव पर निर्भर करती है, और एनईपी 2020 की नींव को समझने के लिए हमें भारतीय शिक्षा नीति के इतिहास की परतों को खोलना होगा। स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में शिक्षा को राष्ट्र-निर्माण का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना गया है। 1968 में कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई, जिसका लक्ष्य शिक्षा का समान अवसर प्रदान करना था। फिर आया साल 1986, जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में दूसरी शिक्षा नीति लागू की गई। इस नीति ने देश में शिक्षा के विस्तार में, विशेषकर 10+2 प्रणाली को मानकीकृत करने और नवोदय विद्यालयों जैसे संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1992 में इसमें कुछ संशोधन भी किए गए।
लेकिन 1990 के दशक के बाद की दुनिया ने अभूतपूर्व गति से करवट ली। वैश्वीकरण, उदारीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति ने ज्ञान की परिभाषा ही बदल दी। अब सफलता का पैमाना केवल यह नहीं था कि आपको कितना याद है, बल्कि यह था कि आप अपनी जानकारी का उपयोग समस्याओं को सुलझाने और कुछ नया बनाने के लिए कैसे करते हैं।
पुरानी शिक्षा प्रणाली की कुछ अंतर्निहित सीमाएँ स्पष्ट होने लगी थीं:
रट्टाफिकेशन की संस्कृति: शिक्षा का बड़ा हिस्सा रटने और परीक्षा में उसे जस का तस लिख देने तक सीमित हो गया था। छात्रों की मौलिक सोच और रचनात्मकता को हतोत्साहित किया जाता था।
कठोर विषय-विभाजन: विज्ञान, कला और वाणिज्य की धाराओं के बीच इतनी मोटी दीवारें थीं कि एक छात्र के लिए अपनी विविध रुचियों को एक साथ आगे बढ़ाना लगभग असंभव था। यदि किसी को भौतिकी के साथ इतिहास पसंद है, तो व्यवस्था इसकी अनुमति नहीं देती थी। यह छात्रों को संकीर्ण खानों में बांटने जैसा था।
व्यावहारिक कौशल का अभाव: हमारी शिक्षा प्रणाली छात्रों को डिग्री तो दे रही थी, लेकिन उन्हें जीवन और रोज़गार के लिए आवश्यक व्यावहारिक कौशल नहीं दे पा रही थी। शिक्षा और उद्योग की दुनिया में एक बड़ी खाई थी।
परीक्षा का अत्यधिक दबाव: बोर्ड परीक्षाओं का हौवा छात्रों और अभिभावकों पर इतना हावी था कि सीखने का आनंद कहीं खो गया था। मूल्यांकन का एकमात्र पैमाना साल के अंत में होने वाली एक परीक्षा बन गई थी, जो छात्रों की वास्तविक क्षमता का सही आकलन नहीं करती थी।
इन्हीं कमियों को दूर करने और भारतीय शिक्षा को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए एक नई, समग्र और लचीली शिक्षा नीति की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। एनईपी 2020 इसी आवश्यकता और आकांक्षा की अभिव्यक्ति है।
पुरानी इमारत की जगह नया ढाँचा: 5+3+3+4 पाठ्यचर्या संरचना का विस्तृत विश्लेषण
एनईपी 2020 का सबसे प्रत्यक्ष और संरचनात्मक बदलाव 10+2 प्रणाली को 5+3+3+4 प्रणाली से बदलना है। यह केवल एक संख्यात्मक पुनर्व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह बच्चों के संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास के विभिन्न चरणों पर आधारित एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। आइए, इस नए ढाँचे के हर चरण को बारीकी से समझें और देखें कि यह छात्रों के लिए क्या मायने रखता है।
1. बुनियादी चरण (Foundational Stage): 5 वर्ष (आयु 3-8 वर्ष)
संरचना: 3 साल प्री-स्कूल/आंगनवाड़ी/बालवाटिका + 2 साल कक्षा 1 और 2।
अवधारणा: यह चरण शिक्षा रूपी इमारत की नींव है। नीति मानती है कि बच्चे के मस्तिष्क का 85% से अधिक विकास 6 वर्ष की आयु से पहले हो जाता है। इसलिए, इस चरण का मुख्य उद्देश्य रटाना नहीं, बल्कि खेल-आधारित, गतिविधि-आधारित और खोज-आधारित शिक्षा के माध्यम से बच्चों में जिज्ञासा जगाना है। यहाँ कोई औपचारिक परीक्षा नहीं होगी। फोकस भाषा कौशल, नैतिकता, सामाजिक व्यवहार और बुनियादी संख्या ज्ञान पर होगा।
छात्रों पर असर:
तनाव-मुक्त शुरुआत: बच्चों के लिए स्कूल एक डरावनी जगह नहीं, बल्कि एक आनंददायक खेल का मैदान होगा, जिससे सीखने के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा।
मज़बूत नींव: प्रारंभिक वर्षों में सीखने की कमियों (learning gaps) को दूर किया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कक्षा 3 तक हर बच्चा बुनियादी पढ़ने-लिखने और गणित में सक्षम हो। यह भविष्य की सारी शिक्षा का आधार बनेगा।
2. प्रारंभिक चरण (Preparatory Stage): 3 वर्ष (आयु 8-11 वर्ष)
संरचना: कक्षा 3 से 5।
अवधारणा: इस चरण में खेल और गतिविधियों के साथ-साथ कुछ हद तक औपचारिक शिक्षा, जैसे पाठ्यपुस्तकों का परिचय होगा। लेकिन शिक्षण का तरीका अभी भी संवादात्मक और खोज-उन्मुख रहेगा। छात्रों को पढ़ने, लिखने, बोलने, शारीरिक शिक्षा, कला, भाषा, विज्ञान और गणित जैसे विषयों से परिचित कराया जाएगा।
छात्रों पर असर:
विषयों से सहज परिचय: छात्रों को रटने के बजाय विषयों की अवधारणाओं को समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। कक्षा में चर्चा और समूह गतिविधियों से उनके संचार कौशल का विकास होगा।
जिज्ञासा को प्रोत्साहन: उन्हें "क्यों" और "कैसे" जैसे प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया जाएगा, जिससे उनकी विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित होगी।
3. मध्य चरण (Middle Stage): 3 वर्ष (आयु 11-14 वर्ष)
संरचना: कक्षा 6 से 8।
अवधारणा: यह वह चरण है जहाँ छात्र विभिन्न विषयों—गणित, विज्ञान, कला, सामाजिक विज्ञान और मानविकी—के अधिक अमूर्त सिद्धांतों से परिचित होंगे। यहाँ अनुभवात्मक शिक्षा (experiential learning) पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा। सबसे क्रांतिकारी बदलाव यह है कि इसी चरण से छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा (vocational education) और कोडिंग जैसे समकालीन विषयों से भी परिचित कराया जाएगा।
छात्रों पर असर:
व्यावहारिक ज्ञान: छात्र अब केवल सिद्धांतों को पढ़ेंगे नहीं, बल्कि उन्हें करके सीखेंगे। विज्ञान के प्रयोग, गणित के मॉडल और सामाजिक विज्ञान के प्रोजेक्ट्स उनकी समझ को गहरा करेंगे।
कौशल विकास की शुरुआत: बढ़ईगीरी, मिट्टी के बर्तन बनाना, बागवानी या बेसिक कोडिंग जैसे कौशल सीखने से छात्रों को "हाथ से काम करने" का सम्मान समझ आएगा। वे अपनी छिपी हुई प्रतिभाओं को खोज पाएंगे और यह अकादमिक और व्यावसायिक शिक्षा के बीच की दीवार को तोड़ेगा।
4. माध्यमिक चरण (Secondary Stage): 4 वर्ष (आयु 14-18 वर्ष)
संरचना: कक्षा 9 से 12 (इसे दो भागों, 9-10 और 11-12, में देखा जा सकता है)।
अवधारणा: यह चरण गहरी विषय-वस्तु, महत्वपूर्ण सोच (critical thinking) और जीवन के लक्ष्यों के प्रति अधिक लचीलेपन पर केंद्रित है। यहाँ सबसे बड़ा बदलाव है—कला, विज्ञान और वाणिज्य जैसी धाराओं (streams) की समाप्ति। छात्र अब अपनी पसंद के विषयों का चुनाव कर सकेंगे।
छात्रों पर असर:
विषय चयन की स्वतंत्रता: एक छात्र भौतिकी और गणित के साथ संगीत या फैशन डिजाइनिंग भी पढ़ सकता है। यह "पैशन" और "प्रोफेशन" के बीच की दूरी को कम करेगा। इससे छात्रों को अपनी सच्ची क्षमता और रुचि का पता लगाने का अवसर मिलेगा।
बहु-विषयक दृष्टिकोण का विकास: जब एक छात्र विभिन्न क्षेत्रों के विषयों का अध्ययन करता है, तो उसकी सोचने की क्षमता बहुआयामी हो जाती है। वह समस्याओं को एक से अधिक दृष्टिकोण से देखना सीखता है, जो आज की जटिल दुनिया के लिए एक अनिवार्य कौशल है।
मानसिक तनाव में कमी: "सही स्ट्रीम" चुनने के सामाजिक दबाव से छात्रों को मुक्ति मिलेगी, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होगा।
सिर्फ ढाँचा नहीं, सोच में बदलाव: पाठ्यक्रम के मूल तत्व और छात्रों पर उनका असर
5+3+3+4 की नई संरचना तो केवल बाहरी ढाँचा है। असली बदलाव पाठ्यक्रम की आत्मा में, यानी उसकी सामग्री और पढ़ाने के तरीकों में है। आइए, इन महत्वपूर्ण बदलावों और छात्रों पर उनके प्रभावों को समझते हैं।
1. पाठ्यक्रम के बोझ में कमी और "मूल अवधारणाओं" पर ध्यान
एनईपी 2020 का मानना है कि ज्ञान का मतलब जानकारी का ढेर नहीं है। इसलिए, यह प्रत्येक विषय में पाठ्यक्रम को उसकी "मूल अनिवार्यताओं" और "महत्वपूर्ण अवधारणाओं" तक सीमित करने का प्रस्ताव करती है। इसका उद्देश्य रटने की संस्कृति को समाप्त कर विश्लेषण, चर्चा और अनुप्रयोग-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना है।
छात्रों पर असर: भारी-भरकम किताबों के बोझ तले दबे रहने के बजाय, छात्रों को सोचने और विषयों को गहराई से समझने का समय मिलेगा। वे "क्या" के साथ-साथ "क्यों" और "कैसे" पर भी ध्यान केंद्रित कर पाएंगे, जो वास्तविक सीखने की निशानी है। इससे सीखने की प्रक्रिया अधिक आनंददायक और सार्थक बनेगी।
2. मूल्यांकन में क्रांति: 360-डिग्री समग्र प्रगति कार्ड
शायद सबसे दूरगामी प्रभावों में से एक मूल्यांकन प्रणाली में सुधार है। पारंपरिक रिपोर्ट कार्ड, जो केवल अंकों का एक लेखा-जोखा होता था, अब अतीत की बात हो जाएगा। उसकी जगह लेगा एक 360-डिग्री समग्र प्रगति कार्ड।
यह क्या है?: यह एक विस्तृत दस्तावेज़ होगा जो छात्र के संज्ञानात्मक (शैक्षणिक), भावनात्मक (emotional) और साइकोमोटर (physical) विकास का आकलन करेगा। इसमें केवल शिक्षक का मूल्यांकन नहीं होगा, बल्कि छात्र का स्व-मूल्यांकन और उसके सहपाठियों द्वारा मूल्यांकन भी शामिल होगा।
छात्रों पर असर:
परीक्षा का डर खत्म: मूल्यांकन अब साल के अंत की एक घटना न होकर एक सतत प्रक्रिया होगी। इसका उद्देश्य छात्रों को "फेल" या "पास" का ठप्पा लगाना नहीं, बल्कि उनकी ताकत और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करना होगा।
समग्र विकास पर प्रतिक्रिया: छात्रों को यह पता चलेगा कि वे टीम में कैसे काम करते हैं, उनका संचार कौशल कैसा है, और उनकी रचनात्मक क्षमता क्या है। यह उन्हें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करेगा।
आत्म-जागरूकता में वृद्धि: स्व-मूल्यांकन से छात्र अपनी सीखने की प्रक्रिया के प्रति अधिक ज़िम्मेदार और जागरूक बनेंगे।
3. भाषा नीति: अपनी जड़ों से जुड़ाव
एनईपी 2020 कम से कम कक्षा 5 तक, और संभव हो तो कक्षा 8 तक, शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा में रखने पर बल देती है। त्रि-भाषा सूत्र को भी अधिक लचीलेपन के साथ लागू किया जाएगा, जिसमें संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं के अध्ययन के विकल्प भी शामिल होंगे।
छात्रों पर असर: शोध से यह सिद्ध हो चुका है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में सबसे अच्छी तरह सीखते और समझते हैं। इससे उनकी वैचारिक स्पष्टता बढ़ेगी और रटने की प्रवृत्ति कम होगी। साथ ही, अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ाव उन्हें अपनी जड़ों में मज़बूती से स्थापित करेगा।
4. भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) का समावेश
पाठ्यक्रम में प्राचीन से लेकर आधुनिक भारत तक के ज्ञान, विज्ञान, कला और दर्शन को एकीकृत किया जाएगा। चरक और सुश्रुत के चिकित्सा ज्ञान से लेकर आर्यभट्ट और भास्कर के गणितीय योगदान तक, छात्रों को अपनी समृद्ध विरासत से परिचित कराया जाएगा।
छात्रों पर असर: इससे छात्रों में अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति गौरव और आत्मविश्वास की भावना पैदा होगी। वे समझेंगे कि ज्ञान केवल पश्चिम से नहीं आया है, बल्कि उनकी अपनी भूमि भी ज्ञान का एक विशाल भंडार रही है।
कागज़ से कक्षा तक का सफर: कार्यान्वयन की चुनौतियाँ और भविष्य की राह
एनईपी 2020 का दृष्टिकोण निःसंदेह सराहनीय और भविष्योन्मुखी है, लेकिन इसकी सफलता पूरी तरह से इसके प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। इस महान दृष्टि को वास्तविकता में बदलने की राह चुनौतियों से भरी है:
शिक्षकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: इस नई प्रणाली की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी शिक्षक हैं। उन्हें नई शिक्षाशास्त्र (pedagogy), मूल्यांकन तकनीकों और प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षण के लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी। रटने पर आधारित प्रणाली में पढ़ाने के आदी शिक्षकों के लिए यह एक बड़ा मानसिक और पेशेवर बदलाव होगा।
बुनियादी ढाँचे का विकास: व्यावसायिक शिक्षा के लिए कार्यशालाएं, अनुभवात्मक शिक्षा के लिए प्रयोगशालाएं, और डिजिटल शिक्षा के लिए स्मार्ट क्लासरूम और इंटरनेट कनेक्टिविटी की आवश्यकता होगी। देश के हर कोने, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के स्कूलों में यह ढाँचा उपलब्ध कराना एक बड़ी वित्तीय और लॉजिस्टिक चुनौती है।
मूल्यांकन प्रणाली को ज़मीन पर उतारना: 360-डिग्री मूल्यांकन का विचार बहुत अच्छा है, लेकिन इसे लाखों स्कूलों और करोड़ों छात्रों के लिए मानकीकृत और निष्पक्ष तरीके से लागू करना बेहद जटिल है। स्व-मूल्यांकन और सहकर्मी-मूल्यांकन को वस्तुनिष्ठ कैसे बनाया जाए, यह एक बड़ा प्रश्न है।
अभिभावकों और समाज की मानसिकता में बदलाव: दशकों से भारतीय समाज सफलता को अंकों और ग्रेड से जोड़कर देखता आया है। अभिभावकों को यह समझाना कि उनके बच्चे का कौशल, रचनात्मकता और समग्र विकास 95% अंकों से अधिक महत्वपूर्ण है, एक धीमी और कठिन प्रक्रिया होगी। कोचिंग संस्थानों के प्रभुत्व को तोड़ना भी एक बड़ी चुनौती है।
इन चुनौतियों के बावजूद, अवसर असीम हैं। यदि इन बाधाओं को चरणबद्ध तरीके से दूर किया जाए, तो एनईपी 2020 भारत के लिए एक जनसांख्यिकीय लाभांश (demographic dividend) को वास्तविकता में बदल सकती है। यह एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर सकती है जो समस्याओं का समाधान करेगी, नए अवसरों का सृजन करेगी और भारत को सही मायनों में एक 'विश्व गुरु' और 'ज्ञान महाशक्ति' बनाएगी।
निष्कर्ष: एक नए शैक्षिक युग का सूत्रपात
सारांश
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा लाया गया नया पाठ्यक्रम बदलाव भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह 10+2 की पुरानी और कठोर संरचना को एक अधिक लचीली, समग्र और विकास-उन्मुख 5+3+3+4 प्रणाली से प्रतिस्थापित करता है। धाराओं की समाप्ति, व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण, पाठ्यक्रम के बोझ में कमी, मातृभाषा में शिक्षा पर जोर, और 360-डिग्री मूल्यांकन जैसे कदम छात्रों के सीखने के अनुभव को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखते हैं। इस नीति का केंद्रीय दर्शन छात्रों को जानकारी के निष्क्रिय उपभोक्ता से ज्ञान के सक्रिय निर्माता में बदलना है—यानी उन्हें यह सिखाना कि "क्या सोचना है" के बजाय "कैसे सोचना है"।
भविष्य की दृष्टि
अगर हम 15-20 साल आगे देखें, तो एनईपी 2020 के तहत शिक्षित हुआ छात्र कैसा होगा? वह एक ऐसा युवा होगा जो केवल अपनी पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं होगा। वह एक हाथ में कोडिंग का कौशल और दूसरे में संगीत का वाद्ययंत्र लेकर चल सकता है। वह प्राचीन भारतीय दर्शन के सूत्रों की व्याख्या करते हुए आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर भी बहस कर सकेगा। वह आत्मविश्वास से भरा होगा, क्योंकि उसका मूल्यांकन केवल अंकों से नहीं, बल्कि उसकी पूरी क्षमता से किया गया है। वह एक समस्या-समाधानकर्ता, एक महत्वपूर्ण विचारक और एक सहानुभूतिपूर्ण नागरिक होगा जो अपनी स्थानीय जड़ों से जुड़ा हुआ और वैश्विक दृष्टिकोण से लैस होगा।
एकजुट प्रयास का आह्वान
यह महान परिवर्तन केवल सरकारी नीतियों या परिपत्रों से संभव नहीं होगा। यह एक सामूहिक यज्ञ है जिसमें हर हितधारक को अपनी आहुति डालनी होगी। शिक्षकों को नए तरीकों को अपनाने के लिए तैयार रहना होगा, अभिभावकों को अंकों से परे देखने का साहस दिखाना होगा, नीति-निर्माताओं को कार्यान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन सुनिश्चित करने होंगे, और छात्रों को स्वयं सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनना होगा।
हमें इस विषय पर और गहराई से सोचने और निरंतर संवाद करने की ज़रूरत है, ताकि हम चुनौतियों का मिलकर सामना कर सकें और इस ऐतिहासिक अवसर का अधिकतम लाभ उठा सकें। एनईपी 2020 ने एक नए भारत की नींव रखी है, और इस नींव पर एक मज़बूत, समृद्ध और ज्ञानवान राष्ट्र की इमारत खड़ी करने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से कह सकें कि उन्होंने 21वीं सदी की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त की है।