सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी

सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी

सूचना का अर्थ- 

सूचना इंफॉर्मेशन का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ बताना से है, सामान्य अर्थों में किसी विषय वस्तु की जानकारी होना ही सूचना कहलाता है|



प्रोफेसर एसके दुबे के शब्दों में-
''सूचना का आशय उस विस्तृत ज्ञान व्यवस्था से है जो मानव कल्याण के लिए प्रत्येक विषय पर, प्रत्येक व्यक्ति के लिए, प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध होती है"

संप्रेषण- 

संप्रेषण शिक्षा की रीड की हड्डी है| बिना संप्रेषण के अधिगम और शिक्षण नहीं हो सकता
संप्रेषण = सम+ प्रेषण
से मिलकर बना है जिसका अर्थ समान रूप से भेजा गया| अंग्रेजी में कम्युनिकेशन कहते हैं| सामान्य अर्थों में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, संदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान ही संप्रेषण कहलाता है|

प्रोफेसर ईजी मेयर के शब्दों में-
"संप्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति के विचारों तथा सम्मतियो से दूसरे व्यक्तियों को परिचित कराने से है|"

तकनीकी- 

तकनीकी का सामान्य अर्थ दैनिक जीवन में विज्ञान का प्रयोग करने की विधियों से है|

प्रोफेसर मैकग्रैथ के अनुसार 
''शिक्षण तथा अनुदेशन में  आव्यूहों, प्रविधियां माध्यमों तथा मशीनों का प्रयोग करना जिससे पुस्तकालय, प्रयोगशाला तथा पाठ्य पुस्तकें अधिक प्रभावशाली हो सके|

तकनीक के तीन घटक होते हैं
1- अदा/इनपुट
2- प्रक्रिया / प्रोसेस
3- प्रदा / आउटपुट

सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का अर्थ-

स्वयं के भाव, विचार, संदेश एवं सूचनाओं को शीघ्रातिशीघ्र तकनीकी सहायता से दूसरे व्यक्ति तक सही तरह से प्रेषित करना सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी कहलाता है|

सुचना सम्प्रेषण तकनिकी का महत्त्व-



कक्षा कक्ष के अंदर शिक्षण कार्य को अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी जनसंचार माध्यमों का प्रयोग एक उत्तम साधन है| प्राचीन काल से चली हुई रही शिक्षा की पद्धति में नवीन तकनीकी संसाधनों का प्रयोग कर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना एवं शिक्षा की पद्धति में नवीन परिवर्तन लाकर शिक्षा व्यवस्था को नया मुकाम देना ही लक्ष्य है|

  शिक्षा के क्षेत्र में नवीन तकनीकी संसाधन जैसे दूरदर्शन वीडियो कॉन्फ्रेंस सी फिल्म प्रोजेक्टर ओवरहेड प्रोजेक्टर वैज्ञानिक एवं प्रक्षेपी यंत्रों केप्रयोग से शिक्षा व्यवस्था को परिवर्तन कर लिया है| वर्तमान में दूरस्थ शिक्षा ने बहुत ही महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है घर बैठकर शिक्षा प्राप्त करना यह सब इन तकनीकी संसाधनों के माध्यम से ही हो पाए हैं| अतः शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी लेकर आई है|

सुचना सम्प्रेषण तकनिकी की आवश्यकता-

1. सुचना संवाहन
2. कक्षा शिक्षण
3. शैक्षिक निर्धारण
4. पाठ्यक्रम निर्माण
5. शैक्षिक प्रशासन
6. परीक्षा मूल्याङ्कन
7 दूरस्थ शिक्षा

ई अधिगम-


वर्तमान समय में सूचना एवं तकनीकी विकास से शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं एवं कंप्यूटर आधारित अधिगम का विकास हुआ है| परिणाम स्वरूप छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक विकास की प्रक्रिया में तीव्रता आई है| ज्ञान के भंडार का आदान प्रदान करने के लिए इंटरनेट एवं संचार वाहक एप्लीकेशन का उदय होना शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण वरदान सिद्ध हुआ है| जिसने इलेक्ट्रॉनिक अधिगम को व्यापक रूप दिया है, वर्तमान में हर प्रकार की जानकारी हर तरह की शिक्षा इंटरनेट पर उपलब्ध है, जिसके माध्यम से किसी भी स्थान पर, किसी भी समय, कोई सी भी जानकारी बहुत ही आसानी से प्राप्त कर सकते हैं|

अधिगम में सूचना संप्रेषण तकनीकी का महत्व एवं आवश्यकता

1. विषय का विकास
2. विषय की पूर्णता
3. विषय के प्रस्तुतीकरण
4 शिक्षण विधियों का समाकलन
5.सिद्धांत समाकलन

1. विषय का विकास ( Development of subject ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से विषयगत् विकास की सम्भावना में वृद्धि होती है क्योंकि विभिन्न संचार माध्यमों से एक ही विषय पर अनेक प्रकार के तार्किक एवं चिन्तन युक्त विचार प्राप्त होते हैं । इनसे विषय का विकास सम्भव होता है । वर्तमान समय में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर विभिन्न विषयों का विकास एवं समाकलन सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की देन माना जाता है । 

2. विषय की पूर्णता ( Complience of subject ) - 

    विषय की पूर्णता के लिये भी विचारों का एकत्रीकरण आवश्यक है । सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि किसी एक विद्वान् , शिक्षाशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक के विचारों से विषयगत् पूर्णता को प्राप्त नहीं किया जा सकता । इसके लिये विभिन्न विद्वानों के विचारों की आवश्यकता होती है । इस कार्य में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से एक ही विषय पर अनेक विचार प्राप्त किये जा सकते हैं , जिससे विषय की पूर्णता एवं समग्रता सम्भव होती है । 

3. विषयगत् प्रस्तुतीकरण ( Subject presentation ) - 

    प्रत्येक विषय के प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया में भी समाकलन की आवश्यकता अनुभव की जाती है । इसमें सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का ही योगदान माना जाता है । वर्तमान समय में बालकों के समक्ष प्रकरण एवं विभिन्न विषयों के प्रस्तुतीकरण का समाकलित स्वरूप का श्रेय भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को ही जाता है क्योंकि इसके माध्यम से प्रस्तुतीकरण के सर्वमान्य तरीकों का ज्ञान सम्भव होता है । 

4. शिक्षण विधियों का समाकलन ( Integration of teaching methods )-

     वर्तमान समय में विभिन्न विषयों के शिक्षण में शिक्षण विधियों का समाकलित स्वरूप पाया जाता है । वर्तमान समय में उस विधि को सर्वोत्तम माना जाता है , जिसमें करके सीखने की व्यवस्था का प्रावधान होता है । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से विधियों के सन्दर्भ में समाकलित एवं समग्र विचार प्राप्त किये जा सकते हैं , जिससे विधियों में समाकलन की स्थिति उत्पन्न होती है । 

5. सैद्धान्तिक समाकलन ( Theoritical integration ) - 

    विषयगत् सिद्धान्तों में समाकलन की स्थिति भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की ही देन है । आज विभिन्न विषयों के शिक्षण सिद्धान्तों में एकरूपता पायी जाती है ; जैसे - उपयोगिता का सिद्धान्त एवं क्रियाशीलता का सिद्धान्त आदि । जब तक छात्र के लिये कोई विषय उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण नहीं होगा तब तक उसको उस विषय में कोई रुचि नहीं होगी । इसी प्रकार छात्रों को क्रियाशील रखने के सिद्धान्त का अनुकरण किया जाता है ।

शिक्षा में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के क्षेत्र

1. शैक्षिक लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण
2. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का विश्लेषण
3. व्यूह रचनाओं और युक्तियों का चयन
4. दृश्य श्रव्य सामग्री का चयन, उत्पादन और उपयोग
5. पृष्ठपोषण में सहायक (हेल्पफुल इन फीडबैक)
6. प्रणाली उपागम का उपयोग
7. शिक्षक प्रशिक्षण
8. सामान्य व्यवस्था परीक्षण और अनुदेशन में उपयोग
9. मशीनों और जनसंचार माध्यमों का उपयोग 

 1. शैक्षिक लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण ( Determination of educational goals or objectives ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों या लक्ष्यों को निर्धारित किया जा सकता है और इन उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली ( Behavioural terms ) में भी लिखा जा सकता है । इन उद्देश्यों को निर्धारित करके व्यक्तियों या छात्रों की आकांक्षाओं और शैक्षिक आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सकता है । 

2. शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया का विश्लेषण ( Analysis of teaching - learning process ) - 

    डॉ . एस . एस . कुलकर्णी के अनुसार , सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कार्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं- ( 1 ) शिक्षण - अधिगम का विश्लेषण करना । इस प्रक्रिया में अदा ( In put ) से लेकर प्रदा ( Output ) तक सभी कार्य करने वाले तत्त्वों का विश्लेषण किया जा सकता है । ( 2 ) इन तत्त्वों ( Elements or Components ) से सम्भव कार्यों की जाँच की जा सकती है । ( 3 ) इन तत्त्वों की इस ढंग से व्यवस्था करना , जिससे प्रभावशाली परिणाम प्राप्त हों । 
3. व्यूह - रचनाओं और युक्तियों का चया ( Selection of strategies and tactics ) 
    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया के लिये प्रयोग की जाने वाली व्यूह रचनाओं और युक्तियों का चयन एवं विकास बड़ी सुगमता से किया जा सकता है । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षण प्रतिमानों का ज्ञान , विभिन्न प्रविधियों का ज्ञान और उनके चयन करने में सहायता कर सकती है । 

4. दृश्य - श्रव्य सामग्री का चयन , उत्पादन और उपयोग ( Selection , production and utilization of audio - visual aids ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के आधार पर ही विभिन्न प्रकार की दृश्य - श्रव्य सामग्रियों का चयन , उत्पादन और उपयोग किया जा सकता है । इन सहायक सामग्रियों की संरचना और उनकी कार्य - प्रणाली में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का योगदान सम्मिलित है । 

5. पृष्ठ - पोषण में सहायक ( Helpful in feed - back ) - 

    पृष्ठ - पोषण का मुख्य लक्ष्य मूल्यांकन होता है । सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली तब तक सफल नहीं मानी जाती , जब तक उसका मूल्यांकन . नहीं होता । यह मूल्यांकन शैक्षिक उद्देश्यों की पृष्ठभूमि में होता है । पृष्ठ - पोषण द्वारा विद्यार्थियों और शिक्षकों की उनके अधिगम और शिक्षण विधियों की सफलता के बारे में जाँच की जाती है एवं त्रुटियों आदि के बारे में पुनर्विचार किया जाता है । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा मूल्यांकन या पृष्ठ - पोषण की विधियों का चयन , विकास तथा उनकी उपयोगिता सम्भव हो सकती है । 

6. प्रणाली उपागम का उपयोग ( Utilization of system approach ) - 

    शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उप - प्रणालियों के मूल्यांकन के लिये प्रणाली उपागम के प्रयोग में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी महत्त्वपूर्ण है । शिक्षा के क्षेत्र की ये उप - प्रणालियाँ कक्षा में या कक्षा के बाहर , लेकिन विद्यालयी - वातावरण में ही प्रयुक्त होती हैं । इन प्रणालियों के तत्त्वों तथा उनकी कार्य पद्धति के अध्ययन में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रमुख भूमिका होती है । 

7. शिक्षक प्रशिक्षण ( Teacher - training ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रमुख भूमिका निभाती है । इसके लिये शिक्षण अभ्यास प्रतिमानों की रचना , सूक्ष्म शिक्षण ( Micro - teaching ) , अनुरूपति ( Stimulation ) एवं प्रणाली उपागम ( System approach ) का उपयोग किया जाता है । 

8. सामान्य व्यवस्था , परीक्षण और अनुदेशन में उपयोग ( Use in general sys tem , testing and instruction ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग हम सामान्य व्यवस्था , परीक्षण और अनुदेशन के कार्य - क्षेत्रों में भी करते हैं । 

9.मशीनों और जन - सम्पर्क माध्यमों का उपयोग ( Ust . of machines and mass media ) - 

    सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का कार्य - क्षेत्र मशीनों एवं अन्य जन - सम्पर्क माध्यमों तक विस्तृत है । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी इन मशीनों ( हार्डवेयर ) उपकरणों के उपयोग के लिये कार्य करती है । इन मशीनों में रेडियो , दूरदर्शन , टेपरिकॉर्डर , फिल्म प्रोजेक्टर एवं सैटेलाइट्स आदि सम्मिलित हैं । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी इन सभी के लिये आधार तैयार करती है ।
Kkr Kishan Regar

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