सम्प्रेषण तकनीकी : अर्थ, शिक्षण में उपयोग, अवधारणा, परिभाषाएँ, तत्त्व, प्रक्रिया, प्रकार, वर्गीकरण, आवश्यकता एवं महत्त्व, विशेषताएँ


नमस्कार प्रिय मित्रों,

         आज के इस लेख में हम आपको निम्न बिन्दुओ पर विस्तार से समझाने का प्रयास करेंगे-

सम्प्रेषण का अर्थ,
सम्प्रेषण तकनीकी का शिक्षण में उपयोग,
सम्प्रेषण की अवधारणा / सम्प्रत्यय,
सम्प्रेषण की परिभाषाएँ,
सम्प्रेषण के तत्त्व
सम्प्रेषण की प्रक्रिया / चक्र,
सम्प्रेषण के प्रकार,
सम्प्रेषण प्रकारों के अन्य वर्गीकरण,
सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व,
प्रभावी / अच्छे सम्प्रेषण की विशेषताएँ


सम्प्रेषण का अर्थ
 ( Meaning of Communication ) 


       हिन्दी के ' सम्प्रेषण ' शब्द का समानार्थक अंग्रेजी भाषा में ' Communication ' ( कम्युनिकेशन ) है । यह लैटिन भाषा के शब्द Communis ( कम्युनिस ) से बना है , जिसका अर्थ है — सामान्य या ' कामन ' ( Common ) एवं संचार ( to transmit ) । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ' सम्प्रेषण ' में व्यक्ति परस्पर सामान्य समझ स्थापित करने व तथ्यों , सूचनाओं , विचारों , अनुभव एवं भावनाओं के आदान - प्रदान करने के प्रयास करते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह सूचनाओं , समाचार , विचारों , भावनाओं , अनुभवों आदि का विनिमय करना चाहता है । सम्प्रेषण में सन्देश प्रेषक ( Sender ) तथा सन्देश ग्राहक ( Receiver ) अपने विचार , सन्देश एवं भावनाओं आदि की सामान्य समझ रखते हैं । अत : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने ज्ञान , हाव - भाव , विचारों आदि का परस्पर आदान - प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त संदेशों को समान अर्थों में समझने और प्रेषण करने में उपयोग करते हैं । 

' सम्प्रेषण ' का अर्थ होता है — किसी वस्तु या विचार को एक जगह से दूसरी जगह भेजना । सम्प्रेषण में प्रेषण क्रिया स्रोत ( Source ) तथा प्राप्तिकर्ता ( Receiver ) के बीच समान रूप से वितरित होती है तथा दोनों ही इसकी सफलता हेतु समान रूप से उत्तरदायी होते हैं । यहाँ विचारों तथा भावों का एकतरफा हस्तान्तरण न होकर पारस्परिक रूप से आदान - प्रदान होता है । इस तरह सम्प्रेषण की प्रक्रिया एक सहयोगात्मक प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों को अपने विचारों तथा भावों के आदान - प्रदान करने का पूरा - पूरा अवसर मिलता है । शिक्षण - अधिगम क्रिया के लिए हम शाब्दिक ( Verbal ) तथा अशाब्दिक ( Non - Verbal ) दोनों प्रकारों के संकेतों का प्रयोग करते हैं। 

      प्रत्येक मानव के अपने कुछ विचार , सम्प्रत्यय , भावनाएँ आदि होती हैं जिन्हें वह अन्य लोगों के साथ विनिमय करना चाहता है । यह मानव अपने संकेतों / भाषा या अन्य साधनों के द्वारा सम्पन्न करना चाहता है । मूलत : यह परस्पर अपने विचार या भावनाओं के विनियम की प्रक्रिया ( Process of Exchange ) ही संचार / सम्प्रेषण कहलाती है । स्पष्टत : सम्प्रेषण से तात्पर्य है स्वयं के भावों , विचारों , संदेशों , सूचनाओं , तथ्यों , उपलब्धियों आदि को अतिशीघ्र दूसरों तक प्रेषित करना । 

इस प्रकार शैक्षिक सम्प्रेषण का शाब्दिक अर्थ शिक्षा सम्बन्धी तथ्यों , विचारों , भावनाओं , सम्मतियों ( अभिमतों ) , सूचनाओं एवं संदेशों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भेजने से है । विदित है कि संदेशवाहन अथवा सम्प्रेषण तभी पूर्ण होता है जबकि संदेश प्राप्त करने वाला पक्षकार संदेश को उसी अर्थ में समझें जिस रूप में , अर्थ में प्रेषणकर्ता उसे समझता है । यदि सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति प्रेषणकर्ता की भावनाओं और विचारों को ठीक रूप से नहीं समझ पाता है , तो ऐसे सन्देश को सही अर्थ में संदेशवाहन की संज्ञा नहीं दी जा सकती है । संचार वास्तव में द्विपक्षीय क्रिया है । जो कि केवल किसी बात के कहने पर ही पूर्ण नहीं हो पाती है अपितु जिस व्यक्ति को कोई बात कही गई है उसके द्वारा इस बात को कहने वाले के मन्तव्य के अनुसार ही समझ लिया गया है , यह बात भी महत्त्वपूर्ण होती है । 
सम्प्रेषण के मूल में यह विचार निहित है कि व्यक्ति समस्याओं पर परस्पर मिल - जुलकर विचार करें और एक - दूसरे के विचारों को समझकर सामंजस्यपूर्ण ढंग से अपने कर्तव्यों का निर्वहन ताकि वे आसानी से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें । प्रो . माहेश्वरी का कहना है कि , " सम्प्रेषण केवल सूचना नहीं है परन्तु समझना है । " रीड ने भी लिखा है , " सम्प्रेषण का मूल लक्ष्य समान विषयों पर मस्तिष्कों के मेल स्थापित करना है । " वस्तुतः सम्प्रेषण का मूल सूत्र है ' किसने , किसको , कब , कैसे । और क्या कहा और उसका क्या प्रभाव पड़ा ?
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सम्प्रेषण तकनीकी  का शिक्षण में उपयोग

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1. सम्प्रेषण की अवधारणा , प्रकार , आवश्यकता एवं सीमाएँ - सम्प्रेषण का चक्र , सम्प्रेषण के प्रकार , सम्प्रेषण की आवश्यकता , सम्प्रेषण के लाभागुण , सम्प्रेषण की सीमाएँ । 
2. एडगर डेल्स के अनुभव शंकु - एडगल डेल के अनुभव शंकु के गुण ।
3. विभिन्न सम्प्रेषण उपकरणों का शिक्षा में उपयोग शिक्षा में सम्प्रेषण उपकरणों एवं सहायक शिक्षण सामग्री का प्रभाव एवं उपयोग विधि - रेडियो , टेलीविजन , प्रदर्शन बोर्ड श्वेत / श्यामपट्ट , लपेट - फलक , लालेन बोर्ड , क्लिप बोर्ड , इन्टरेक्टिव बोर्ड , प्रोजेक्टेड सामग्री ओवर हैड प्रोजेक्टर , विजुलाइजर / डॉक्यमेंट कैमरा , डिजिटल कैमरा , मोबाइल , मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर , कम्प्यूटर डेस्कटॉप / लेपटॉप / टेबलेट , टेपरिकॉर्डर / आल इन वन / सी.डी . प्लेयर । 
4. समावेशित शिक्षा एवं तकनीक ऑडियो / वीडियों स्क्रिप्ट राइटिंग , अभिक्रमित अनुदेशन , स्थानीय सामग्री का उपयोग — ऑडियो स्क्रिप्ट लेखन के विभिन्न आयाम , वीडियों स्क्रिप्ट लेखन , अभिक्रमित अनुदेशन / अधिगम ।
5 . सूक्ष्म शिक्षण , कृत्रिम शिक्षण / अनुरूपित शिक्षण , दल शिक्षण ।  षण तकनीकी  का शिक्षण में उपयोग, सम्प्रेषण की अवधारणा / सम्प्रत्यय, सम्प्रेषण का अर्थ, सम्प्रेषण की परिभाषाएँ, सम्प्रेषण के तत्त्व, सम्प्रेषण की प्रक्रिया, सम्प्रेषण के प्रकार, सम्प्रेषण प्रकारों के अन्य वर्गीकरण, सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्वसंचार ( सम्प्रेषण ) के उद्देश्य, प्रभावी / अच्छे सम्प्रेषण की विशेषताएँ

सम्प्रेषण की अवधारणा / सम्प्रत्यय 
( Concept of Communication ) 


      मनुष्य की मूल - प्रवृत्तियों में सम्मिलित ' जिज्ञासा ' विश्व के समस्त ज्ञान विज्ञान की जन्मदाता है । किसी कार्य की इच्छा , कार्य करने में रुचि , कार्य के प्रति अभिवृत्ति , अज्ञात रहस्यों को जाने का प्रयास , ज्ञान की विवेचना एवं विस्तार करना मनुष्य की इसी मूलप्रवृत्ति का परिणाम है । मनुष्य अपने द्वारा प्राप्त किए ज्ञान या संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक करता रहा है । सामान्य रूप से ज्ञान - तथ्य , सूचना , समझ एवं कार्य कौशल है , जिसे कोई व्यक्ति अनुभव व शैक्षिक प्रक्रिया से प्राप्त करता है । मनुष्य द्वारा इसी ज्ञान को ग्रहण करके पीढ़ी - दर - पीढ़ी आगे प्रसारित कर आज उन्नत रूप से सामने है । जिसके फलस्वरूप मनुष्य जीवन सामाजिक , शैक्षणिक , आर्थिक , राजनैतिक , धार्मिक , सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में बदल गया है । यही ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी , एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचना सम्प्रेषण ( Communication ) है । ' सम्प्रेषण ' में विचारों का आदान - प्रदान विचारों की साझेदारी तथा भाग लेने की भावना सम्मिलित है |

सम्प्रेषण को संचार , सन्देशवाहन आदि नामों से भी जाना जाता है । सम्प्रेषण का परम्परागत स्वरूप वह है जिसमें सूचनाएँ , आदेश , आज्ञाएँ , अनुज्ञाएँ आदि उच्च अधिकारियों से अधीनस्थ अधिकारियों तथा कर्मचारियों को प्रेषित की जाती हैं तथा अधीनस्थ अपने कार्यों के प्रतिवेदन ' उचित मार्ग द्वारा ' उच्च अधिकारियों को भेजते हैं । कक्षा में शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया के लिए शिक्षक - शिक्षार्थी के मध्य सम्प्रेषण अन्त : क्रिया होती है । किन्तु आधुनिक सन्दर्भो में सम्प्रेषण का स्वरूप तथा क्षेत्र बहुत कुछ बदल गया है । आज सम्प्रेषण एक - तरफा न होकर दो तरफा तथा बहुतरफा हो गया है । 

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 सम्प्रेषण की परिभाषाएँ
 ( Definitions of Communication )


      आधुनिक प्रौद्योगिकी के युग में सम्प्रेषण का विशेष महत्त्व है । यह शिक्षाशास्त्र , समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान आदि विषयों से विशेषतः सम्बन्धित है । शिक्षा शास्त्रियों ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है
 ( 1 ) न्यूमैन एवं समर के अनुसार , " सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों , विचारों , अभिमतों अथवा भावनाओं का पारस्परिक आदान - प्रदान है । " ( “ Communication is an exchange of facts , ideas , opinions or emotions by two or more persons . " ) 
( 2 ) थियोहैमन के अनुसार , " सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएँ एवं समझ हस्तान्तरित करने की प्रक्रिया है । " ( “ Communication means the process of passing information and understanding from one person to another . " ) 
( 3 ) लुईस ए . एलेन के अनुसार , " सम्प्रेषण में वे समस्त चीजें सम्मिलित की जाती हैं जिनके द्वारा एक व्यक्ति अपनी किसी बात को दूसरे किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में डालता है । यह वह पुल है जो व्यक्तियों के मस्तिष्क की खाई को पाटता है । इसके अन्तर्गत कहने , सुनने और समझ की व्यवस्थित प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है । " ( " Communications the sum of all the things that one person does when he wants to create understanding in the mind of other . It is bridge of meaning . It involves a systematic and continious process of telling , listening and understanding . " 
( 4 ) एफ . जी . मेयर के अनुसार , " मानवीय विचारों एवं भावनाओं का शब्दों , पत्रों , संकेतों अथवा आदेशों के माध्यम से आदान - प्रदान करना ही सम्प्रेषण है । " ( " Communication is the intercourse by words , letters , symbols or messages and as a way that one organisation member shares meaning and understanding with other . " )
( 5 ) कीथ डेविस के अनुसार , " सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसमें समझ अथवा सन्देशों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है । " ( " Communication is a process of passing information and understanding from one person to another . " ) 
( 6 ) प्रो . के . एल . कुमार के शब्दों में , " सम्प्रेषण सभी मानवीय कार्यों और अंतःक्रियाओं के मूलाधार है । इसका अर्थ है ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से विचार , सूचना व आदेशों का सम्प्रेषण । यह संदेश दूसरे व्यक्ति तक निर्बाधित व अपरिवर्तित रूप से संप्रेषित होना चाहिए । " ( " Communication is basic to all human performance & interaction . It refers to the transmission of thoughts , information & Commands by employing the sensory elements . The message should ideally be carryed undiministed & without distortion " ) 
( 7 ) पॉल लीगन्स के मतानुसार , " सम्प्रेषण वह क्रिया है जिसके द्वारा दो या अधिक लोग विचारों , तथ्यों , भावनाओं , आवश्यकताओं , प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ , उद्देश्य तथा उपयोग को भली - भाँति समझ लेता है । " ( " Communication is the process by which two or more people exchange ideas , facts , feeling , needs , impression and the like in a manner that the receiver gains a clear understanding of the meaning , input and use of the message . " ) 
( 8 ) प्रो . के . एल . कुमार के शब्दों में , " अन्त : व्यक्तिगत सम्प्रेषण की प्रक्रिया कला और विज्ञान दोनों हैं । सम्प्रेषण की कला का मूल मनोविज्ञान के सिद्धान्तों में है और सम्प्रेषण का विज्ञान सम्प्रेषण की तकनीकी में निहित होता है । " ( " The process of interpersoal Communication is both , an Art & a Science . The Art of communication has its roots in the principles of psychology and the Science , in the use of Technology for Communication . " ) 
( 9 ) हरबर्ट साइमन के अनुसार , " औपचारिक रूप से सम्प्रेषण को किसी भी ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा लिए गए निर्णयों को संगठन के एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुँचाया जाता है । " 
( 10 ) चार्ल्स ई.रेडफील्ड के अनुसार , " संचार या सम्प्रेषण से तात्पर्य उस भाषाभिव्यक्ति से है जिसके द्वारा एक व्यक्ति का आशय दूसरा व्यक्ति समझ सके ।
( 11 ) बेलोन्स , गिलसन आदि के अनुसार , " सम्प्रेषण एक प्रकार से प्रबन्ध के एक सदस्य द्वारा दूसरे व्यक्ति के साथ अर्थ एवं समझदारी में हिस्सा बाँटना है । "
( 12 ) ई . एफ . एल . ब्रीच के अनुसार , " सम्प्रेषण एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति तक सूचना एवं समझ का हस्तान्तरण है । ' 
( 13 ) डी.ई. मेक्फारलैण्ड के अनुसार , " विस्तृत रूप से सम्प्रेषण वह प्रविधि है जिसमें मनुष्य के बीच अर्थपूर्ण बातों का आदान - प्रदान होता है । विशिष्ट रूप से , यह वह प्रविधि है जिससे मनुष्यों द्वारा अर्थों को समझा जाता है और समझ पहुँचाई जाती है । " 
( 14 ) लूगीस एवं वीगल के अनुसार , " सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत सूचनाओं , निर्देशों तथा निर्णयों द्वारा लोगों के विचारों , मतों तथा अभिवृत्तियों में परिवर्तन किया जाता 
( 15 ) एण्डरसन के अनुसार , " सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति चेतन या अचेतन रूप से दूसरों से संज्ञानात्मक ढाँचे को सांकेतिक रूप से उपकरणों अथवा साधनों द्वारा प्रभावित करता है । " 
( 16 ) डॉ . आर . ए . शर्मा तथा डॉ . सुधा शर्मा के शब्दों में , " संचार / सम्प्रेषण एक प्रक्रिया है जो कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य घटित होती है तथा इसके माध्यम से अभिवृत्तियों , भावनाओं , आदर्शों और सूचनाओं आदि का आदान - प्रदान होता है । " 

        उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम कह सकते हैं कि संचार वह प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने सन्देशों तथा इन सन्देशों से सम्बन्धित भावनाओं , विचारों , सम्मतियों , तर्कों , तथ्यों , सन्देशों , सूचनाओं एवं विश्वासों आदि का आदान - प्रदान करते हैं । एक प्रभावी सम्प्रेषण वही माना जाता है जिसमें सन्देश प्रेषक तथा सन्देश प्राप्तकर्ता दोनों व्यक्ति ही एक - दूसरे की भावनाओं को समझें । संचार या सम्प्रेषण की प्रक्रिया की प्रभावोत्पादकता / प्रभावशीलता ( Effectiveness ) संचार माध्यमों द्वारा संचारकर्ता की सम्प्रेषक की योग्यता तथा उसकी अभिवृत्ति पर निर्भर होती है ।

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 सम्प्रेषण के तत्त्व 
 ( Elements of Communication ) 


प्रमुखतः सम्प्रेषण में तीन ... व निहित होते हैं 
( 1 ) स्त्रोत / सम्प्रेषक ( Source ) यह व्यक्ति , पत्र - पत्रिका अथवा यान्त्रिक उपकरण किसी भी रूप में हो सकता है । जैसे — शिक्षक जब कक्षा में समझाता है तब वह एक सम्प्रेषक के रूप में कार्य करता है । 
( 2 ) संदेश वाहक ( Message ) — संदेश शाब्दिक अथवा अशाब्दिक दोनों रूपों में हो सकता है । सम्प्रेषक द्वारा प्रस्तुत किए गए विचार ही संदेश हैं ।
 ( 3 ) ग्राहक सम्प्रेषक ( Receiver ) — संदेश सुनकर , देखकर , पढ़कर एवं अन्य इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं । इस प्रकार श्रोता , दर्शक अथवा पाठक को ' ग्राहक सम्प्रेषक ' कहा जाता है ।

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सम्प्रेषण की प्रक्रिया / चक्र 
( Process / Cycle of Communication )
 


सम्प्रेषण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है । सम्प्रेषण की प्रक्रिया एक पक्षीय न होकर द्विमार्गी / द्विपक्षीय या बहुपक्षीय होती है तथा दूसरे के विचारों तथा भावों के प्रभावपूर्ण आदान - प्रदान के लिए प्रेषण - स्रोत तथा प्राप्तिकर्ता दोनों की ही समान रूप से प्रभावी भूमिका रहती है । सम्प्रेषण के आवश्यक तत्वों के अन्तर्गत आप सम्प्रेषण से सम्बन्धी तत्वों का संक्षिप्त रूप में अध्ययन कर चुके हैं । यहाँ सम्प्रेषण - प्रक्रिया का विस्तृत रूप से समझाया गया है । 

( 1 ) सम्प्रेषण स्रोत / सम्प्रेषक ( Source / Sender ) — इसमें सम्प्रेषण स्रोत से तात्पर्य उस व्यक्ति ( सम्प्रेषक / प्रदाता ) तथा समूह विशेष से होता है जो अपनी भावनाओं तथा विचारों को किसी दूसरे व्यक्ति या व्यक्ति समूहों ( प्राप्तकर्ता ) तक पहुँचाना चाहता है । सम्प्रेषण - प्रक्रिया का प्रारम्भ समाचार / सन्देश भेजने वाला व्यक्ति करता है ।

( 2 ) सम्प्रेषण सामग्री ( Message ) — सम्प्रेषण कर्ता / स्रोत के द्वारा जो कुछ भी अपने विचारों , भावों , तथ्यों , सूचनाओं तथा अनुभवों आदि के रूप में किसी दूसरे को प्रेषित किया जाता है , उसे ही सम्प्रेषण सामग्री ( विषय - वस्तु ) कहा जाता है । प्रक्रिया सम्प्रेषणकर्ता का सहयोग , अभिप्रेरणा , सम्प्रेषण सामग्री की गुणवत्ता पर बहुत कुछ निर्भर करती है । यदि सम्प्रेषण के लिए विषय - वस्तु न होगी , तो सम्प्रेषण सम्भव न होगा । 

( 3 ) अर्थ अरूपक / इनकोडिंग ( Encoding ) – सम्प्रेषक द्वारा तथ्यों , सूचनाओं , विचारों या भावनाओं को विभिन्न संकेतों / चिह्नों से प्रदर्शित करना ( अशाब्दिक ) , या सन्देश को गुप्त लिखावट में लिखना , अथवा भाषायी ( शाब्दिक ) बोलने की प्रक्रिया को अर्थ अरूपक ( इनकोडिंग ) कहते हैं । सूचना को लिपिबद्ध या संकेतन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सम्प्रेषक जिस भाव या विचार से सूचना भेजना चाहता है , वह लिपि उस भावना को व्यक्त कर रही है । सूचना की प्रकृति का भी लिपिबद्धता की विधि पर बहुत प्रभाव पड़ता है ।

 शोर । बाधाएँ संदेश- सम्प्रेषक ( प्रदाता ) कोडिंग माध्यम ( चैनल ) संदेश डिको व्यवहार प्राप्तकर्ता डिंग परिवर्तन || ( अर्थनिरूपक ) ( अर्थअरूपक पृष्ठ - पोषण 

 सम्प्रेषण की प्रक्रिया 


 ( 4 )सम्प्रेषण माध्यम ( Medium ) — अपनी भावनाओं तथा विचारों को दूसरों तक पहुँचाने के लिए और दूसरों की भावनाओं व विचारों को ग्रहण कर उनके प्रति अपनी' अनुक्रिया ' ( Response ) व्यक्त करने के लिए स्रोत तथा प्राप्तकर्ता द्वारा जिन माध्यमों का सहारा लिया जाता है , उन्हें सम्प्रेषण माध्यम कहा जाता है । ये माध्यम शाब्दिक ( भाषा ) तथा अशाब्दिक / हाव - भाव ( संकेत ) दोनों में से किसी रूप में भी हो सकते हैं । भाषा लिखित या मौखिक हो सकती है । विदित है कि व्यक्ति सम्प्रेषण माध्यम के रूप में लेपटॉप , दूरदर्शन , रेडियो , फिल्म , स्ट्रिप्स , पत्राचार , टेलीकान्फ्रेंस , चार्ट , मॉडल ( सैटेलाइट्स ) या अन्य युक्तियाँ आदि का उपयोग कर सकता है ।

( 5 ) प्राप्तिकर्ता ( Receiver ) — स्रोत द्वारा प्रेषित संदेश , विचार , सूचना , तथ्यों तथा भावों को जिस व्यक्ति विशेष या समूह द्वारा ग्रहण किया जाता है अर्थात् जिस व्यक्ति / व्यक्तियों को तथ्यादि सम्प्रेषित किए जाते हैं , उसे प्राप्तिकर्ता कहते हैं । अगर प्राप्तिकर्ता किसी प्रेषित संदेश , विचारों , भावों , अनुभवों या अनुभूतियों को ग्रहण करने का इच्छुक नहीं है अथवा उसमें ग्रहण करने की पर्याप्त क्षमता या योग्यता नहीं है , तो सम्प्रेषणकर्ता तथा संप्रेषित सामग्री की गुणवत्ता उन्हीं तक रह जाती है । 

( 6 ) अनुक्रियात्मक सामग्री अथवा अर्थ निरूपक ( Decoding ) — जो कुछ भी स्रोत द्वारा सम्प्रेषण माध्यम की सहायता से प्रेषित किया जा रहा है , उसे प्राप्तिकर्ता द्वारा ग्रहण कर किस रूप में समझा गया था फिर उसके प्रति उसकी क्या अनुभूति रही , इसी की अभिव्यक्ति को अनुक्रियात्मक सामग्री कहते हैं । अनुक्रिया ( अनुरूप प्रतिक्रिया ) की प्रभावशीलता पर स्रोत और प्राप्तिकर्ता के मध्य सम्प्रेषण प्रक्रिया निर्भर करती है । यदि प्राप्तकर्ता सम्प्रेषित विषयवस्तु का अर्थ नहीं समझता है , तो उसके लिए सन्देश ( विषय - वस्तु ) व्यर्थ है । शिक्षण- धिगम प्रक्रिया में इसे ' मूल्यांकन ' के रूप में लिया जा सकता है । सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश की लिपि ( भाषा ) या संकेत को सन्देश ग्राहक द्वारा उसी भाव के रूप में परिवर्तित करना अपेक्षित है अन्यथा थोड़े से परिवर्तन से सन्देश की सार्थकता समाप्त हो सकती है । अतः सम्प्रेषक की भाषा व प्रतीक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं । 

( 7 ) व्यवहारगत परिवर्तन ( Behavioural Change ) - सम्प्रेषण का उद्देश्य व्यवहारगत परिवर्तन है । अत : जो भी तथ्यादि सम्प्रेषित किए जाएँ वे सम्प्रेषण के बाद सम्प्रेषी ( प्राप्तिकर्ता ) के व्यवहारों में परिवर्तन लाएँ , तभी सम्प्रेषण सार्थक है । यदि सम्प्रेषी तथ्यों , सूचनाओं , विचारों को सुनकर अनसुना कर दें तथा उनके व्यवहारों पर कोई प्रभाव न पड़े , तो सम्प्रेषण व्यर्थ है । 

( 8 ) पृष्ठपोषण ( Feedback ) - सम्प्रेषी द्वारा सन्देश की प्राप्ति की सूचना चाहे वह मौखिक हो , भाव - भंगिमा के माध्यम से हो या हावभाव ( प्रतीकों ) के या लिखित रूप में हो , सम्प्रेषण के लिए वह ' पृष्ठपोषण ' का कार्य करती है । सन्देशवाहन / सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूर्ण होती है जब सन्देश पर प्राप्तिकर्ता ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी हो । अर्थात् प्रतिक्रिया सन्देश की वापसी एवं व्यवहार में परिवर्तन ही है । सम्प्रेषक द्वारा सन्देशग्राहक की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करना ही ' पृष्ठपोषण ' है तथा अन्तः क्रिया का आधार है 

( 9 ) सम्प्रेषण में सहायक या बाधक तत्व ( Barriers ) - सम्प्रेषण प्रक्रिया की सफलता या असफलता में , सम्प्रेषण में सहायक या बाधक तत्वों की भी काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है । एक तरह से ये तत्व उन मध्यस्थ चरों ( Intervening Variables ) के रूप में होते हैं जो स्रोत तथा प्राप्तिकर्ता के मध्य में होने वाले आदान - प्रदान ( स्वतंत्र चर व परतंत्र चर ) को अपनी - अपनी प्रकृति और स्वभाव के अनुसार प्रभावित करते रहते हैं । वातावरणजन्य अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियाँ ( शांत , शोरगुल , प्रदूषण , अभिप्रेरणा , भाषा संकेतात्मक अभिव्यक्ति की गुणवत्ता आदि ) ।

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 सम्प्रेषण के प्रकार
 ( Types of Communication )


  सामान्य जीवन में तथा शिक्षण कार्यों के लिये व्यक्ति को सम्प्रेषक या सम्प्रेषी के रूप में सम्प्रेषण की आवश्यकता रहती है । सम्प्रेषण कई प्रकार से किया जा सकता है । सामान्यतः सम्प्रेषण के दो प्रकार होते हैं 

1. शाब्दिक सम्प्रेषण ( Verbal Communication )  

2. अशाब्दिक सम्प्रेषण ( Non - Verbal Communication ) 
                 
शाब्दिक सम्प्रेषण को पुन : दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
( A ) मौखिक सम्प्रेषण ( Oral Communication ) 
( B ) लिखित सम्प्रेषण ( Written Communication ) ।
अशाब्दिक सम्प्रेषण के कई प्रकार होते हैं ; जैसे
1. ध्वनि संकेत ( Sound Symbols ) ,  
2. दृष्टि संकेत ( Eyes Symbols ) , 
3. स्पर्श सम्पर्क ( Touch Contacts ) , 
 4.गंध ( Sense of Smell ) , 
5.स्वाद ( Sense of Taste ) | सम्प्रेषण के इन विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार प्रस्तुत है—

 ( A ) शाब्दिक सम्प्रेषण ( Verbal Communication )
 यह वह सम्प्रेषण है जो शब्दों के माध्यम से दिया जाता है । इस प्रकार के सम्प्रेषण के लिए लिखित या मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाता है । शाब्दिक सम्प्रेषण के लिए सम्प्रेषक तथा सम्प्रेषी को उस भाषा का ज्ञान आवश्यक है जिस भाष में सम्प्रेषण किया जा रहा है अन्यथा सम्प्रेषण सम्भव नहीं है । 

( 1 ) मौखिक सम्प्रेषण ( Oral Communication ) — जो सम्प्रेषण मुँह से बोलकर किया जाता है वह मौखिक सम्प्रेषण कहलाता है । इस प्रकार के सम्प्रेषण के लिए आवश्यक है कि सम्प्रेषक तथा सम्प्रेषी आमने - सामने हों या इतने निकट हों कि एक - दूसरे को सुन सुना सकें । मौखिक सम्प्रेषण में हम बात - चीत , विचार - विमर्श , वार्ता , भाषण , प्रश्नोत्तर , कथन आदि के द्वारा सूचना आदि का आदार - प्रदान करते हैं । मौखिक सम्प्रेषण के लिए सामान्यत : अग्र दो नीतियों का प्रयोग किया जाता है 

( i ) सतत् गद्यात्मक सम्प्रेषण , 
( ii ) ह्यूरिस्टिक सम्प्रेषण । 

मौखिक सम्प्रेषण श्रव्यात्मक भाषागत पद्धति पर आधारित है जिसमें सम्प्रेषी श्रवण कर सूचना आदि प्राप्त करता है । सम्प्रेषण के लिए सर्वप्रथम विषय - वस्तु फिर प्रस्तुतीकरण तथा सम्प्रेषी के लिये प्रथमत : प्रस्तुतीकरण तथा बाद में विषय - वस्तु की आवश्यकता होती है । सरल , निम्नस्तरीय तथा ज्ञानात्मक स्तर की विषय - वस्तु के सम्प्रेषण के लिये सतत् गद्यात्मक सम्प्रेषण नीति का प्रयोग उपयुक्त रहता है , जबकि कठिन एवं जटिल विषय - वस्तु के सम्प्रेषण के लिये ह्यूरिस्टिक सम्प्रेषण नीति का प्रयोग किया जाना चाहिए । 

( 2 ) लिखित सम्प्रेषण ( Written Communication ) - जब सम्प्रेषी कोई सूचना आदि लिखित में सम्प्रेषित करता है तो वह लिखित सम्प्रेषण कहलाता है । इस प्रकार के सम्प्रेषण के लिए किसी भाषा , कूट संकेत या सामान्य संकेतों का प्रयोग किया जाता है । कुछ लिखित संकेत इतने सामान्य या परिचित हो जाते हैं कि उन्हें देखकर ही हम कोई सूचना आदि प्राप्त कर लेते हैं ; उदाहरण के लिए ; किसी कार पर हाथ का चिह्न हो तो हम समझ लेते हैं कि यह कार किसी कांग्रेसी नेता की है । अगर कार पर कमल बना है तो स्पष्ट है कि उस कार का सम्बन्ध बीजेपी से है । पत्र , नोटिस बोर्ड , समाचार - पत्र आदि लिखित सम्प्रेषण ही करते है । यदि सम्प्रेषण की विषय - वस्तु ऐसी है जिसे खण्ड़ों में विभक्त नहीं किया जा सकता तो उसके लिए अलगोरथिम्स नीति का प्रयोग ठीक रहता है और यदि सम्प्रेषित की जाने वाली विषय - वस्तु निदानात्मक या उपचारात्मक प्रवृत्ति की है तो उसके लिए निर्णय - तालिका नीति का प्रयोग करना उपयुक्त रहता है । 
( B ) अशाब्दिक सम्प्रेषण ( Non - Verbal Communication ) इस प्रकार के सम्प्रेषण में किसी प्रकार के भाषागत शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है । यह लिखित भी हो सकता है । ऊपर उदाहरण में जब ' हाथ ' या ' कमल ' की बात कही तो वहाँ कोई शब्द प्रयुक्त नहीं है , किन्तु लेखन तो है ही अत : अशाब्दिक सम्प्रेषण लिखित भी हो सकता है । यह ध्वनि से भी होता है ; जैसे — हाँ , हूँ , मुस्कुराना , घृणा के भाव प्रकट करना , चीखना , घिधियाना आदि । आँखों से इशारे करना , आँखों - आँखों में बातें करना , आँखें से अपने मन में भाव प्रकट करना ; जैसे — ' आँखें दिखाना ' , ' आँखें फेरना ' , ' आँखें चार होना ' दृश्य सम्पर्क है । इसी प्रकार से स्पर्श द्वारा हम ठण्डा , कोमल , चिकिना आदि का भाव ग्रहण करते हैं , नेत्रहीन व्यक्ति स्पर्श से ही बेल लिपि को समझता है , स्पर्श से चिकित्सक शरीर के तापमान का आभास करता है । यह सभी सम्प्रेषण के अन्तर्गत आते हैं । गंध भी सम्प्रेषण करती है । इसी प्रकार चखकर या स्वाद के माध्यम से भी कई स्थानों पर हम सम्प्रेषण प्राप्त करते हैं ।

     आधुनिक युग में जन - सम्प्रेषण को जन - संचार माध्यमों ( Mass - communication media ) का पृथक् से उल्लेख किया जाता है तथा इसे सम्प्रेषण का तीसरा प्रकार माना जाने लगा है । यह सम्प्रेषण पत्रिकाओं , समाचार - पत्रों , दूरदर्शन , रेडियो , चलचित्र , लाउडस्पीकर आदि माध्यमों से होता है । यह लिखित या मौखिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है । कभी कभी इसे मुद्रित ( Printed ) तथा अमुद्रित ( Non - printed ) नाम से दो वर्गों में विभक्त किया जाता है । 

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सम्प्रेषण प्रकारों के अन्य वर्गीकरण 
( Other Classification of The Types of Communication ) 


सम्प्रेषण का एक प्रमुख वर्गीकरण ऊपर प्रस्तुत किया गया है । इस एक प्रकार से वर्गीकरण के अलावा कुछ विद्वानों ने इसे अलग - अलग प्रकार से वर्गीकृत किया है । इन वर्गीकरणों का केवल उल्लेख हैं , स्थानाभाव के कारण उनकी व्याख्या नहीं की गई है । 

( 1 ) सम्प्रेषक व सम्प्रेषी के मध्य सम्बन्धों के आधार पर वर्गीकरण 
1. औपचारिक ( Formal ) ,
2. अनौपचारिक ( Informal ) । 

( 2 ) संचार - प्रवाह ( Communication - flow ) के आधार पर वर्गीकरण 
1. अधोगामी ( Downward ) — अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों को , 
2. ऊर्ध्वगामी ( Upward ) — अधीनस्थों द्वारा अधिकारियों को , 
3. समतल ( Horizontal ) बराबर के साथियों को । 

( 3 ) व्यक्ति संख्या के आधार पर 
1. अन्त : वैयक्तिक ( Inter - personal ) , 
2. वैयक्तिक ( Personal ) , 
3.समूह ( Group ) ,
 4.जनसंचार ( Mass ) । 

( 4 ) माध्यम के आधार पर 
1. fafea ( Written ) , 
2. मौखिक ( Spoken ) , 
3. दृश्य ( Visual ) , 
4.हाव - भाव . ( Gestural ) । 

( 5 ) क्षेत्र के आधार पर 
1. आन्तरिक ( Internal ) परिवार या संस्था के सदस्यों के मध्य , 
2. बाह्य ( External ) – बाहर के व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ ।

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 सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व 
( Need and Importance of Communication ) 

     सम्प्रेषण किसी भी प्रकार के शिक्षण की महत्त्वपूर्ण अनिवार्यता है । संचार अथवा सम्प्रेषण व्यवस्था द्वारा संगठन के विभिन्न सदस्य परस्पर विचारों का आदान - प्रदान करते हैं । सम्प्रेषण व्यवस्था ही शिक्षण की विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करती है तथा शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करती है । कक्षा शिक्षण में सम्प्रेषण के बिना एक कदम भी आगे नहीं चला जा सकता है । कक्षा शिक्षण में सूचनाओं के आदान - प्रदान सम्प्रेषण पर आधारित है । कक्षा में शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया / अन्त : क्रिया सम्प्रेषण के किसी भी रूप या स्वरूप के बिना घटित होना सम्भव नही स्पष्टत : शिक्षक - शिक्षार्थी के मध्य सम्प्रेषण किया जाना आवश्यक एवं अपरिहार्य होता है । 

    मिलेट ने सम्प्रेषण के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि , " सम्प्रेषण प्रशासनिक संगठन की रक्तधारा है । " इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि सम्प्रेषण शिक्षक शिक्षार्थी के मध्य अन्तःक्रिया ( Interaction ) की रक्तधारा है । पैक्फारलैण्ड ने लिखा है , " मानव जीवन के सभी पक्षों में सम्प्रेषण की प्रक्रिया एक केन्द्रीय तत्व है । " प्रशासन के सभी पक्षों - आन्तरिक एवं बाह्य में सम्प्रेषण का महत्त्व है । कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक युग में सम्प्रेषण का महत्त्व हर क्षेत्र में है । संक्षेप में , कक्षा शिक्षण / शैक्षिक प्रबन्धन में सम्प्रेषण के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है 

( 1 ) अध्यापकों का मार्गदर्शन – सम्प्रेषण की प्रक्रिया के द्वारा शिक्षण में अध्यापकों का मार्गदर्शन होता रहता है । शिक्षकों को आवश्यक तथ्यों , सूचनाएँ पहुँचाने , विचारों , भावों , सिद्धान्तों , नियमों , समस्या समाधान करने , शैक्षणिक गतिविधियों में दिशा - निर्देशन देने आदि में सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । सन्देश स्पष्ट , पूर्ण एवं संक्षिप्त होना चाहिए ताकि सहजता से समझ में आ जाए । 

( 2 ) सौहार्द्रतापूर्ण सम्बन्धों की स्थापना ( पारस्परिक सहयोग ) —प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था के द्वारा शिक्षक व शिक्षार्थियों के मध्य सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना की जा सकती है । साथ ही निरन्तर सन्देश के माध्यम से अधिकारियों व शिक्षकों के मध्य मधुर सम्बन्ध हो जाते हैं । इसमें शिक्षक वांछनीय शैक्षिक ' उद्देश्यों की पूर्ति ' के लिए अपना दायित्व , हार्दिक योगदान / सहयोग प्रदान करने हेतु तत्पर रहते हैं । शिक्षक व छात्रों के मध्य पारस्परिक सहयोग एवं सद्भावना की भावना की वृद्धि होती है । 

( 3 ) कार्यकुशलता में वृद्धि – शिक्षकों के निरन्तर मार्गदर्शन तथा सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों के अन्तर्गत कार्य में गति आती है , उसके शैक्षिक स्तर में सुधार होता है और शिक्षक अपेक्षित परिणाम देने में सक्षम हो पाता है । इस प्रकार प्रभावी एवं कुशल सम्प्रेषण व्यवस्था शिक्षक की कार्यकुशलता में वृद्धि लाती है । 

( 4 ) आत्म - विश्वास या मनोबल में वृद्धि - आत्म विश्वास या मनोबल शिक्षकों की उस भावना का नाम है जिससे वे अपने कार्यों को निष्ठापूर्वक करने को प्रेरित होते हैं । शिक्षकों में ऐसी भावना जागृत करने में सम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है । सम्प्रेषण की नवीनतम तकनीकियों के माध्यम से शिक्षकों एवं छात्रों के मध्य विचारों का निरन्तर आदान - प्रदान होता रहता है जिससे शिक्षकों में छात्रों के प्रति अपनत्व की भावना जाग्रत होती है और वे छात्रों को समझकर अधिकाधिक कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं । 

( 5 ) विभिन्न शिक्षण व्यूह - रचनाओं में समन्वय — शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न सन्देश शिक्षण व्यूह - रचनाओं को अपनाता है । इन व्यूह रचनाओं में समन्वय स्थापित करने के लिए प्रभावपूर्ण सन्देशवाहन ( सम्प्रेषण ) व्यवस्था महत्त्वपूर्ण योगदान देती है । मेरी कुशिंग नाईल्स लिखती है , " समन्वय के लिए अच्छा सन्देशवाहन ( सम्प्रेषण ) आवश्यक है । " सभी शिक्षक स्वयं के स्तर पर अपेक्षित शिक्षण व्यूह - रचना का चयन करने एवं उपयोग करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं परन्तु सबका उद्देश्य वांछनीय शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति / पूर्ति करना होता है ।

( 6 ) लोकतंत्रात्मकता - अच्छी सम्प्रेषण व्यवस्था लोकतांत्रिक भावनाओं को बल देती है और लोकतंत्र की भावना का विकास शिक्षक की क्षमता में वृद्धि करता है । शिक्षक अद्यनातन शिक्षण व्यूह - रचनाएँ अपनाकर छात्रों को शैक्षिक नवाचारों से अवगत कराता है । छात्र सहजता से नवीन आयामों को आत्मसात करने में सक्षम हो जाते हैं । इसलिए जॉर्ज आर . टैरी ने कहा है कि , " संचार या सम्प्रेषण अधिगम - प्रक्रिया के सुविधाजनक परिचालन में तेल का कार्य करता है । " 

( 7 ) उचित एवं शीघ्र निर्णय - एक सुव्यवसिथत सन्देशवाहन पद्धति के अपनाने पर विचार - विमर्श शीघ्रगामी व सुव्यवस्थित हो जाता है जिससे समस्याओं के तुरन्त समाधान में सहायता मिलती है और निर्णय शीघ्र होकर उन पर क्रियान्वयन तुरन्त किया जाना सम्भव हो पाता है । 

( 8 ) प्रभावी नेतृत्व की स्थापना — प्रभावी नेतृत्व के लिए शिक्षक को छात्रों का विश्वास प्राप्त करना जरूरी है । छात्रों का विश्वास जीतने के लिए यह आवश्यक है कि प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था लागू कर उनकी इच्छाओं , आकांक्षाओं , अपेक्षाओं एवं भावनाओं का पता लगाकर उन्हें पूरा किया जाए एवं उनको सही दिशा का ज्ञान दिया जाए । 

( 9 ) मानवीय सम्बन्धों का निर्माण - सम्प्रेषण इस दिशा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है । यदि प्रधानाध्यापक अपनी नीति एवं विचार विद्यार्थियों तक पहुँचाकर उन्हें वास्तविक स्थिति से अवगत कराते हैं और विद्यार्थियों , शिक्षकों तथा अभिभावक भी अपने विचार , शिकायतें , सुझाव आदि प्रधानाध्यापक तक पहुँचाते हैं , तो इससे निश्चित ही उनके बीच सुदृढ़ एवं मधुर सम्बन्धों के निर्माण में काफी मदद मिलती है । रॉबर्ट डी . वर्थ ने कहा है , " बिना सम्प्रेषण के मानवीय सम्बन्ध असम्भव है । " 

( 10 ) अभिभावकों के उत्तम सम्बन्ध -पीटर ड्रेकर - ने कहा है कि शैक्षिक उद्देश्य की केवल एक सही परिभाषा है — अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए जिन कलाओं का जन्म हुआ है , उनमें सम्प्रेषण का महत्त्व नहीं है । सम्प्रेषण द्वारा अभिभावकों से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है और उसे बनाए रखा जा सकता है । 

( 11 ) विकेन्द्रीकरण हेतु – कक्षा में शिक्षक - शिक्षार्थी के मध्य अन्त : क्रिया में विचारों के आदान - प्रदान में विकेन्द्रीयकरण की दृष्टि से सभी सम्प्रेषण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं । जॉर्ज आर.टैरी ने कहा है कि " सम्प्रेषण वह साधन है जिसकी सहायता से प्रत्यायोजन कार्य सम्पन्न किया जाता है तथा एक विकेन्द्रीयकरण कार्य की सफलता या असफलता सम्प्रेषण की किस्म पर निर्भर करती है । " 
     सम्प्रेषण का महत्त्व - कक्षा शिक्षण एवं शैक्षिक प्रबनध के अतिरिक्त क्षेत्र में भी सम्प्रेषण का महत्त्व है । सम्प्रेषण का महत्त्व निम्नांकित बिन्दुओं में व्यक्त किया जा सकता है
 ( 1 ) संचार ( सम्प्रेषण ) के बिना आधुनिक सभ्यता का अस्तित्व नहीं रह सकता है । 
( 2 ) सम्प्रेषण के माध्यमों की सहायता से विश्व के देश दूसरे को प्रगति में सहायता होते हैं ।
( 3 ) बिना सम्प्रेषण के कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यताओं और क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं कर सकता है । 
( 5 ) आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का ज्ञान , बिना सम्प्रेषण के माध्यमों के नहीं हो सकता है । 
( 6 ) बिना सम्प्रेषण के सामाजिक सहयोग सम्भव नहीं है । 
( 7 ) बिना सम्प्रेषण के उद्देश्यों एवं ' लक्ष्यों की प्राप्ति ' नहीं हो सकती है । 
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सम्प्रेषण की प्रक्रिया के रूप में शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया व गतिविधियों के सुव्यवस्थित स्वरूप के लिए सम्प्रेषणकर्ता को शिक्षण के चर ( स्वतन्त्र चर , परतन्त्र चर , मध्यस्थ चर ) ; शिक्षण के प्रकार - शिक्षण के उद्देश्य ( ज्ञानात्मक , भावात्मक , क्रियात्मक ) , शिक्षण के स्तर ( स्मृति - स्तर , बोध - स्तर , चिन्तन - स्तर ) , शासन - प्रणाली / शिक्षा व्यवस्था - प्रणाली ( एकतान्त्रिक , प्रजातांत्रिक , हस्तक्षेप - रहित ) तथा शिक्षण की व्यवस्था ( औपचारिक , अनौपचारिक , सहज संयोजिक ) आदि को मद्देनजर रखते हुए शिक्षण को प्रभावी बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि अधिगमकर्ता ( विद्यार्थी ) में वांछित / अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन हो सके|

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 संचार ( सम्प्रेषण ) के उद्देश्य 
 ( Aims of Communication ) 

शैक्षिक प्रबन्ध में सम्प्रेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं 
1 . सम्प्रेषण द्विमार्गीय सन्देशवाहन व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका रखता है । संचार / सम्प्रेषण का मूल उद्देश्य कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों / प्रधानाध्यापक तक उनके विचार परस्पर पहुँचाना होता है ताकि उनके अनुकूल कार्य किया जा सके तथा प्रबन्धक को आवश्यक सुझाव दिया जा सके । 
2.अध्यापकों की समस्याओं को समझना , उनका निदान या उपचार करके उनके मनोबल को ऊँचा उठाना ।
3 . शैक्षिक प्रबन्ध की गतिविधियों को सफल बनाना । 
4 . शैक्षिक प्रबन्ध की योजनाओं के निर्माण एवं निर्णयन में कर्मचारियों का सहयोग लेना । 
5 . अध्यापकों के ज्ञान तथा अनुभव का प्रबन्ध के लिए उपयोग करना । 
6 . सद्भाव , समन्वय तथा संगठन के अनुकूल आचरण को प्राप्त करना । 
7 . शैक्षिक प्रबन्ध में किए गए परिवर्तनों से अवगत कराना । 
8. शैक्षिक प्रबन्ध में मधुर मानवीय सम्बन्धों की स्थापना करना । 
9 . कर्मचारियों के विकास एवं प्रगति से सम्बन्धित तथ्य व समंक प्रस्तुत करना । 
10. सम्प्रेषण द्वारा उपक्रम / प्रबन्ध के विभिन्न क्रियाकलापों , विभागों तथा उप विभागों में समन्वय स्थापित करना ।
11. आदेशों एवं निर्देशों का सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को सही व स्पष्ट हस्तान्तरण करना । 
12. शैक्षिक प्रबन्ध की नीतियों , कार्यविधियों , व्यवहारों एवं व्याख्याओं से पूर्णतया परिचित कराना ताकि कठिनाई और आवश्यकता के समय उचित अधिकारी से सम्पर्क स्थापित किया जा सके । 


प्रभावी / अच्छे सम्प्रेषण की विशेषताएँ 
( Characteristics of Effective / Good Commmunication ) 

सम्प्रेषण में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं 
1. सम्प्रेषण का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए और यह संदेश भेजने वाले तथा उसे प्राप्त करने वाले दोनों की समझ में साफ - साफ आना चाहिए । सम्प्रेषण एक सोद्देश्य ( उद्देश्यों के अनुरूप ) प्रक्रिया है । 
2 . सम्प्रेषण प्रेषी ( सन्देश प्राप्त करने वाला ) तथा प्रेषक ( सम्प्रेषण करने वाला ) के व्यवहारों को प्रभावित करता है । अत : इसमें अन्त : क्रिया होती है । 
3. सम्प्रेषण एक मानवीय प्रक्रिया है । इसलिए पशु - पक्षियों द्वारा की गई सम्प्रेषण प्रक्रिया को सम्प्रेषण के क्षेत्र से बाहर ही रखा जाता है । 
4 . सम्प्रेषण सदैव गत्यात्मक ( Dynamic ) होता है । अतएव इसमें गति होती है । 
5.सम्प्रेषण के बिना शिक्षण असम्भव है । यह सर्वव्यापक है । सम्प्रेषण के अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जाए । 
6 . सम्प्रेषण एक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रणाली है । 
7. सम्प्रेषण में कम से कम दो पक्षों का होना अनिवार्य है । अर्थात् दोनों पक्षों की ओर से बिना किसी बाधा के विचारों का आदान - प्रदान किया जाए । ( द्विमार्गीय - प्रक्रिया ) 
8 . सम्प्रेषण के साधन कई प्रकार के हो सकते हैं ; जैसे — मौखिक , लिखित व संकेत या इशारे , हावभाव आदि ।
9 . सम्प्रेषण के लिए सम्प्रेषित तथ्यों , सूचनाओं आदि का ग्रहणकर्ता के लिए पर्याप्तता , सार्थक व प्रभावशाली होना आवश्यक है । 
10. सम्प्रेषण के लिए कुछ सूचनाएँ तथा विचार , सम्मतियाँ , निर्णय , भावनाएँ , इच्छाएँ , समझ तथा संवेग आवश्यक हैं । इन्हीं का सम्प्रेषण होता है । 
11. सम्प्रेषण ऐसा होना चाहिए जिससे सन्देश प्राप्त करने वाले के मन में पारस्परिक विरोध की भावना जाग्रत न हो जाए । 
12. सम्प्रेषण ( सन्देशवाहन ) व्यवस्था में दिए जाने वाला सन्देश यथा सम्भव संक्षिप्त , पूर्ण , स्पष्ट एवं त्रुटिहीन होना चाहिए ।

सम्प्रेषण तकनीकी  का शिक्षण में उपयोग, सम्प्रेषण की अवधारणा / सम्प्रत्यय, सम्प्रेषण का अर्थ, सम्प्रेषण की परिभाषाएँ, सम्प्रेषण के तत्त्व, सम्प्रेषण की प्रक्रिया, सम्प्रेषण के प्रकार, सम्प्रेषण प्रकारों के अन्य वर्गीकरण, सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्वसंचार ( सम्प्रेषण ) के उद्देश्य, प्रभावी / अच्छे सम्प्रेषण की विशेषताएँ



Kkr Kishan Regar

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