संविधान के मूल आदर्श और शिक्षा

संविधान के मूल आदर्श और शिक्षा 

संविधान के मूल आदर्श और शिक्षा (Basic Features of Constitution and Education) 
भारतीय संस्कृति के मूल लक्षणों-प्रजातन्त्र, स्वतन्त्रता, समानता और उत्तरदायित्व के सफल क्रियान्वयन के लिए शिक्षा की महती आवश्यकता है। शिक्षा ऐसे प्रजातांत्रिक समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है जो स्वतन्त्रता, समानता और उत्तरदायित्व पर आधारित हो। इसके लिए शिक्षा में निम्न व्यवस्थाएँ की गयी हैं।

1.शिक्षा का सार्वभौमीकरण-

6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया है। सर्व शिक्षा अभियान', 'स्कूल चलो अभियान', 'मध्याहन भोजन की व्यवस्था' आदि कार्यक्रमों के द्वारा इस लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं।
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2.शैक्षिक अवसरों की समानता 

देश के सभी बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। प्राथमिक स्तर पर तो ये अवसर सबको दिया ही जा रहा है, माध्यमिक और उच्च स्तरों पर भी विविधतापूर्ण पाठ्यक्रमों का प्रावधान करके बालकों की रुचि और योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दिये जा रहे हैं।

3. स्त्री शिक्षा–

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष सुविधायें दी जा रही हैं। उनका नामांकन बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न किये गये हैं। उनके लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों और पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था की जा रही है।

4. प्रौढ़ शिक्षा- 

देश की निरक्षरता को दूर करने और लोगों में जाग्रति व चेतना पैदा करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा का व्यापक कार्यक्रम बनाया गया है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से देश के प्रौढ़ों को शिक्षित करने के सघन अभियान चलाये जा रहे हैं।

5.विकलांगों के लिए शिक्षा— 

विकलांगों को हिम्मत और विश्वास के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। भारत सरकार ने 1977-78 में इनके लिए समन्वित शिक्षा योजना आरम्भ की। देशभर के गूंगे, बहरे, नेत्रहीन और अन्य विकलांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षण संस्थायें चलायी जा रही हैं।

6. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बालकों के लिए शिक्षा 

समानता और सामाजिक न्याय की व्यवस्था के अनुसार इन जातियों के बालकों के लिए संविधान द्वारा विशेष शैक्षिक सुविधायें प्रदान करने की बात कही गयी है। इसके अनुरूप इन 'जातियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना और अन्य योजनायें आरम्भ की गयी हैं। रहने के लिए छात्रावासों की व्यवस्था की गयी है. और शिक्षा व राजकीय सेवा के क्षेत्रों में आरक्षण की सुविधायें प्रदान की गयी हैं।

7.पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा– 

अन्य पिछड़े वर्गों के बालकों के लिए भी विशेष शैक्षिक सुविधायें प्रदान की गयी हैं और उनके लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। 

8.अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा-

देश के अल्पसंख्यकों के कुछ वर्ग भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए हैं। समानता और सामाजिक न्याय का तकाजा है कि ऐसे वर्गों के बालकों को भी शिक्षा की सुविधायें प्रदान की जायें, इसके लिए सरकार ने अनेक कार्यक्रम संचालित किये हैं। 
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9.व्यावसायिक शिक्षा-

समाज का उपयोगी सदस्य बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा के पाठ्यक्रम में ऐसे विषय, कौशल और हस्त उद्योग हों जो व्यावसायिक क्षेत्र में सहायक हों। कोठारी आयोग, नयी शिक्षा नीति और संशोधित नयी शिक्षा नीति में शिक्षा के व्यावसायीकरण पर विशेष बल दिया गया है।

10. नागरिकता की शिक्षा 

प्रजातन्त्र अच्छे नागरिकों पर ही निर्भर है। स्वतन्त्रता और समानता समाज में तभी सम्भव है जब अच्छे नागरिक हों। अच्छे नागरिक ही अपने उत्तरदायित्वों का भली प्रकार से निर्वहन कर सकते हैं। अत: शिक्षा के द्वारा ऐसे नागरिकों का निर्माण करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है। इसके लिए पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन किये गये हैं।

11. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा 

कहा जाता है कि अंधविश्वास, भाग्यवाद और अविवेकशील भय जैसी सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति में और आधुनिक समाज के भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक विवेकशील मनःस्थिति तैयार करने में विज्ञान काफी सहायक सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार यदि प्रौद्योगिकी का उचित प्रयोग किया जाये तो इससे गरीबी और अस्वास्थ्य समाप्त हो सकेगा तथा लोगों का जीवन-स्तर ऊपर उठाने में मदद मिल सकेगी। अत: शिक्षा के सभी स्तरों पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के शिक्षण की व्यवस्था इस प्रकार से की जा रही है जिससे विवेकशील चिन्तन को बढ़ावा मिले।

12. मूल्य शिक्षा- 

देश की सुरक्षा, शान्ति, विकास, खुशहाली और एकता व अखंडता के लिए मूल्य शिक्षा की आवश्यकता है। कोठारी आयोग ने कहा था कि आज के युवकों में सामाजिक व नैतिक मूल्यों के प्रति जो अवहेलनात्मक दृष्टिकोण है, उसके कारण ही सामाजिक व नैतिक संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी शिक्षा व्यवस्था का मूल्यपरक बनायें। इसके लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं।

    शिक्षा प्रजातन्त्र, स्वतन्त्रता, समानता और उत्तरदायित्व लाने का सशक्त साधन है। इनके मार्ग में आने वाली बाधाओं से शिक्षा के द्वारा ही लड़ा जा सकता है। इसके लिए जहाँ समुचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी वहीं देश के नागरिकों को भी इनमें अपनी गहन आस्था पैदा करनी होगी।
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