राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व || Directive Principles of State Policy

राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व

Directive Principles of State Policy raajy ke neeti nirdeshak tattv
राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का वर्णन कीजिए

राज्य की नीति के निर्देशक तत्व-

    राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों का संविधान के भाग चार में वर्णन किया गया है। ये तत्व हमारे संविधान के निर्माताओं ने आयरलैण्ड के संविधान से लिए हैं। भारत में इनकी स्थापना के लिए काफी प्रयत्न किये गये है। संविधान द्वारा राज्यों को यह आदेश प्रदान किया जाता है कि वे इन कार्यों के प्रति उदार नीति अपनाएँ। इन्हें राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त कहा जाता है। नीति निर्देशक तत्वों के उद्देश्यों का वर्णन संविधान में इस प्रकार किया गया है-"अधिक से अधिक सक्रिय रूप से एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना तथा उसकी सुरक्षा करना है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय की प्राप्ति हो सके।" उनके पालन द्वारा देश का कल्याण होता है, लेकिन संविधान का कोई कानून इन्हें पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। डॉ. अम्बेडकर का कहना है कि ये हमारे आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना के लक्ष्य की ओर इंगित करते रहते हैं।

संविधान में वर्णित निर्देशक तत्वों को तीन भागों में विभक्त किया है— 
समाजवादी सिद्धान्त,
गाँधीवादी सिद्धान्त तथा 
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने वाले सिद्धान्त ।

(i) समाजवादी सिद्धान्तों के अनुसार 

प्रत्येक राज्य लोक कल्याण राज्य स्थापित करने के लिए ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनायेगा, जिसमें राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का संचार होगा। अत: राज्य सभी क्षेत्रों में न्याय एवं जन कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयत्न करेगा। अनुच्छेद 39 में उन तरीकों का वर्णन किया है जिनके द्वारा भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना होगी। इसी प्रकार सभी स्त्री-पुरुषों को समान रूप से जीविका के साधन प्राप्त हो सकेंगे। देश के साधनों का बँटवारा लोक कल्याण की दृष्टि से हो। आर्थिक व्यवस्था में धन और उत्पादन के साधनों का उचित वितरण हो। स्त्री-पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले। श्रमिक पुरुषों, स्त्रियों और बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो। राज्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार नागरिकों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करें तथा बेरोजगारी, बुढ़ापे और अपाहिज की दशाओं में सहायता करें। राज्य काम के लिए न्यायपूर्ण दशाओं का प्रबन्ध करें। स्त्रियों की प्रसूति अवस्था में सहायता की जायेगी। राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी श्रमिकों को कार्य-निर्वाह योग्य मजदूरी, अच्छे जीवन की सामग्री, अवकाश के पूर्ण उपभोग तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर देने का भी यत्न करें। राज्य लोगों के भोजन और जीवन स्तर को ऊँचा करेगा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारेगा।

(ii) गाँधीवादी सिद्धान्त के अनुसार 

भारत के हर राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वे राज्य के गाँवों में व्यक्तिगत या सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देगा। राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा और उन्हें इतने अधिकार देगा कि वे स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें। राज्य पिछड़ी हुई और निर्बल जातियों की विशेष रूप से शिक्षा तथा आर्थिक हितों की उन्नति करेगा। राज्य नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगायेगा। राज्य कृषि और पशु पालन का वैज्ञानिक ढंग से संचालन करेगा। दूध देने वाले पशुओं की रक्षा की जायेगी तथा पशुओं की नस्ल में सुधार किया जायेगा। राज्य राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व वाले स्मारकों और स्थानों की रक्षा करेगा। राज्य न्याय पालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए कदम उठायेगा। सारे देश के लिए एक समान दीवानी तथा फौजदारी कानून बनाने का प्रयत्न किया जायेगा।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने वाले सिद्धान्तों के अनुसा

 राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देगा। राज्य राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानपूर्वक सम्बन्धों को बनाये रखने का प्रयास करेगा। राज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों तथा सन्धियों के प्रति आदर का भाव रखेगा। राज्य अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का फैसला पंच निर्णय द्वारा करायेगा।

    नीति निर्देशक तत्व कोरे आदर्श नहीं हैं। राज्य ने इनका पालन करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कानून बनाये हैं। फिर भी राज्य के लिए बहुत कुछ करना शेष है। देश में बेकारी को दूर करना है, आत्म निर्भर बनाना है। देश में जब तक अशिक्षा तथा दरिद्रता का बोलबाला है, लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना नहीं हो सकती।

    निर्देशक तत्व प्रजवलित ज्योति के रूप में राज्य के सभी पदाधिकारियों का राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में मार्ग दर्शन करेंगे, जिससे राष्ट्र समृद्धिशाली और शक्तिशाली बनेगा तथा संसार के अन्य राष्ट्रों में अपना उचित स्थान प्राप्त कर सकेगा। ये राज्यों के विकास के लिए दिग्दर्शक सूचक यन्त्र है, जिसमें उनकी उन्नति का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देता है। यहाँ यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि प्रत्येक राज्य इन सिद्धान्तों का पालन अपने अपने साधनों के अनुसार ही करेगा। किसी भी राज्य को इनका पालन करने के लिए मौलिक अधिकारों के पालन की भाँति न्यायालय द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकेगा।

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