मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार

    मौलिक अधिकार हमारे संवधान के भाग III में धारा 14 से 32 में वर्णित किए गए हैं । ये अधिकार नागरिकों के समाज मे सम्मान तथा प्रतिष्ठा की रक्षा एवं अन्य रक्षा के उपायों से संबंधित हैं । ये अधिकार न्ययसंगत हैं , अर्थात वे कानून द्वारा अदालत से लागू किए जाते हैं । वर्तमान में छः मौलिक अधिकार हैं । हाल में ही , एक संविधान संशोधन द्वारा ' शिक्षा का अधिकार ' जोडा गया है ।
मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकार


6 मौलिक अधिकार कौन से हैं?
मौलिक अधिकार क्या है विस्तार से समझाइए? 
    ये अधिकार असीम नहीं हैं । शांति , राष्ट्रीय सुरक्षा , नैतिकता , सामान्य हित तथा सरे देशों के साथ अच्छे संबंधों के हित में इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है । समानता का अधिकार मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत सर्वप्रथम अधिकार है । संविधान के अन्तर्गत , सभी विधि के समक्ष समान हैं तथा राज्य नागरिकों के बीच धर्म , वंश , लिंग , जन्मस्थान या इनमें किसी के आधार पर विभेद नहीं कर सकता है । अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया है तथा इसे कानून के द्वारा दंडनीय अपराध बनाया गया है । राज्य को किसी भी सम्मानजनक पदवी , जो समाज में भेद पैदा करें , को प्रदान करने से निषेध किया गया है ।
भारत के संविधान में कितने मौलिक कर्तव्य है?
मूल अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?
     स्वतंत्रता का अधिकार नागरिकों को पूर्ण रूप से शारीरिक , मानसिक तथा आत्मीय , विकास पर बल हेतु दिया गया है । यह नागरिकों को छः स्वतंत्रताएं प्रदान करता है । यह अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है । यह व्यक्ति की मनमानी गिरफ्तारी तथा बी से भी सुरक्षा करता है ।

    हमारा संविधान बंधुआ मजदूरी तथा मानव व्यापार का निषेध करता है । 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों की नियुक्ति खानों , कारखानों तथा कष्टदायी कार्यों के लिए प्रतिबंधित है ।
मौलिक अधिकार PDF
मौलिक अधिकार कितने है
    भारत एक बहुधार्मिक देश है । हमारा संविधान न तो धार्मिक कार्यों को प्रोत्साहित करता है और न ही हतोत्साहित । भारत धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करता है । सभी धार्मिक समुदाय अपने धार्मिक संस्थान चलाने , प्रतिष्ठापित करने के लिए स्वतंत्र हैं । प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म के प्रचार - प्रसार के लिए स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा दी गयी है ।
मौलिक अधिकार और कर्तव्य
मौलिक अधिकार क्यों आवश्यक है
    सांस्कृतिक तथा शैक्षिक अधिकार हमें अपनी संस्कृति को बनाये रखने की स्वतंत्रता देता है । जो शैक्षिक संस्थान राज्य कोष सेचलारहा होया राज्य से वित्तीय सहायता प्राप्त कर रहा हो बच्चों को धर्म , वंश , जाति , भाषा या इनमें से किसी के आधार पर प्रवेश देने से मना नहीं कर सकते । अल्पसंख्यकों को यह अधिकार दिया गया है । कि वे अपनी संस्कृति तथा भाषा की रक्षा एवं प्रसार के लिए संस्थान प्रतिष्ठापित कर सकते हैं । वित्तीय सहायता प्रदान करते समय राज्य धर्म और भाषा के आधार पर विभेद नहीं कर सकता है । संविधान नागरिकों को संवैधानिक उपचारों के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों के उपयोग की सुरक्षा देता है । उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को अधिकार दिए गए हैं कि मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आदेशों , निर्देशों तथा आज्ञापत्रों को जारी करें ।
मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है
मौलिक अधिकार चार्ट

संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का महत्व 

    अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए अनिवार्य शर्त है। मूल अधिकार स्वयं में इसलिए अनिवार्य हैं क्योंकि इसके बिना कोई अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। अच्छे नागरिक की सन्ने लोकतंत्र की स्थापना करते हैं। भारतीय संविधान में पंडित नेहरू ने संविधान के उद्देश्य प्रस्ताव मे घोषणा की, उसी लक्ष्य को लेकर प्रस्तावना नामक कुण्डली संविधान की तैयार की गई। इसी प्रस्तावना में नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता के मूल अधिकारों का प्रावधान है। मूल अधिकार भारतीय नागरिकों की प्रतिष्ठा एवं गरिमा का संरक्षण करते हैं। मूल अधिकार वादयोग्य Justiciable है अर्थात इनके हनन होने पर उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय रखा करते हैं।

समानता का अधिकार- 

इसकी मान्यता है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के विकास के अवसर मिलने चाहिए। अवसरों के अभाव में किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा अथवा योग्यता का विकास नहीं हो सकता। समानता के अधिकार में निम्नलिखित अधिकार निहित हैं ... 

कानून के समक्ष समानता - 

भारतीय राज्य क्षेत्र के किसी भी निवासी को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके दो अर्थ हैं- कानून का समान संरक्षण एवं कानून के समक्ष समता। अर्थात् कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं है और न्यायालय तक जाने का समान अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त है। इसके उल्लंघनकर्ता का समान दण्ड का प्रावधान है। समान स्थितियों में व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रयोग की स्वतंत्रता तथा समान सुरक्षा सभी नागरिकों एवं विदेशियों के लिए समान कानून की व्यवस्था हैं। यह . अधिकार कार्यपालिका द्वारा दिये गए भेदभाव पूर्ण आदेशों का विरोधी

    जाति, धर्म, लिंग, नस्ल, वंश एवं निवास के आधार पर भेदभाव का निषेध- राज्य किसी नागरिक के साथ उपरोत आधारों पर भेदभाव नहीं करेगा। किसी भी नागरिक को दुकान,रेस्तरां, सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों, कुंओं, तालाब, स्नानघर; सडक, रेल, आदि में, जिसका निर्माण पूर्णत: अर्द्ध आंशिक रूप से सरकार द्वारा किया जाताहै जो आम जनता के प्रयोग के लिए होता है, पर प्रवेश पाने से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    तथापि सरकार महिलाओं तथा बच्चों के लिए कुछ विशेष प्रावधान बना सकती है। सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जातियों को कुछ विशेष सुविधाएं प्रदान कर सकती हैं। इनके लिए शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण निर्धारित कर सकती है।
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण

व्यवस्था एवं रोजगार के समान अवसर - 

    इस अधिकार के अधीन अवसर की गारन्टी उपलब्ध कराई जाती है। देश के नागरिकों को देश के किसी भी राज्य क्षेत्र में रोजगार के समान अवसर उपलब्ध करवाये जाएंगे। किसी भी नागरिक को जाति, धर्म, समुदाय अथवा लिंग भेद के कारण रोजगार के अवसर से वंचित नहीं किया जायेगा। 
    राज्य के अन्दर निर्धारित नौकरियों के लिए आवश्यक योग्यताओं । का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जा सकता है।
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    कुछ विशेष प्रकार की नौकरियों के समुचित अनुपात न होने की स्थिति में पिछड़ी जाति के नागरिकों के लिए कुछ सीटें आरक्षित की जा सकती है।

धर्मिक संस्थाओं से जुड़े कार्यालयों में उस विशेष समुदाय के । लोगों के लिए नौकरियां भी आरक्षित की जा सकती हैं।

अस्पृश्यता का उन्मूलन - 

समाज में सदियों से उपेक्षित हिन्दू जाति के उप वर्ग के उपेक्षित लोगों को सामाजिक न्याय तथा व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चत कराना है जिन्हें अवसर नहीं उपलब्ध हो रहे थे। इसका उल्लंघन करने पर कानून की अनुसार दण्ड का प्रावधान है।
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स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तगत छः मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 119 में दिया गया है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित छः स्वतंत्रताएं निहित हैं-

(1) भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- 

    वह महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। इस अधिकार के अभाव में कोई भी व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक . तर्क वितर्क नहीं कर सकता अथवा अपने विचसारए प्रस्तुत नहीं कर . सकता। प्रेस को भी स्वतंत्रता प्रदान की गई है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भाषण अथवा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के ... बाद गैरकानूनी ढंग से अथवा सरकार के बारे में कुछ भी बोलने का .. 'लाइसेंस प्राप्त हो जाता है। सरकार निम्न स्थितियों में अभिव्यक्ति एवं  भाषण की स्वतंत्रता पर तर्कपूर्ण प्रतिबंध लगा सकती है 
(क) राज्य की सुरक्षा के दृष्टिगत . 
(ख) विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण सन्धि निर्वाह के दृष्टिगत ...
(ग) जनता के स्वास्थ्य हितार्थ अदालत की अवमानना होने पर ' 
(घ) भारत की एकता व अखण्ड संप्रभुता की हितार्थ।

शांतिपूर्ण ढंग से बिना हथियार सभा या सम्मेलन करने की स्वतंत्रता - 

नागरिकों को सभा सम्मेलन में भी विचारों की अभिव्यक्ति का ही एक साधन है। सुरक्षा और शांति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी कुछ प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं।
(क) प्रदर्शन का जुलुस पर यातायात के दृष्टिकोण से रोक लगाईजा सकती है। 
(ख) रोगी या छात्र-छात्राओं को होने वाली असुविधा को टालने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर बाजा बजाने को वर्जित किया - जा सकता है। 
(ग) जुलुस के रास्तों को नियंत्रित किया जा सकता है। 
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संघ या संस्था बनाना - 

नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की स्वतंत्रता दी गई यदि उनका उद्देश्य सुरक्षा व शांति को खतरा पहुंचाना ना हो। संस्था या संघ के अन्तर्गत राजनीतिक दल, मजदर यनियन, वाणिज्य और उद्योग मण्डल, किसान संगठन, अध्ययन और छात्र संगठन, कर्मचारी संगठन तथा जातीय सम्प्रदायिक, भाषायी और श्रमिक समूह सम्मिलित हैं। तथापि समस्त बलों को अन्य बलों के सदस्यों को संघ या समुदाय बनाने का अधिकार नहीं है।

देश के भीतर घूमने-फिरने (भ्रमण) का अधिकार - 

नागरिकों को देश की सीमाओं के अन्दर पर्यटन का अधिकार प्राप्त है। परन्त सार्वजनिक हितों तथा जनजातियों की रक्षा,वन्य जीवों की रक्षार्थ इस अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। .. भारत के किसी भी क्षेत्र में बस जाने का अधिकार . नागरिकों को भारत के किसी भी नगर में निवास करने की स्वतंत्रता प्राप्त है परन्तु सार्वजनिक हित एवं वन्य जीवन,जनजातियो की रक्षार्थ इस स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। 

व्यवसाय/रोजगार की स्वतंत्रता - 

भारत के किसी भी नागरिक को व्यवसाय एवं व्यापार की स्वतंत्रता है बशर्ते

(क) सार्वजनिक स्वास्थ्य व जन सुरक्षा को उस व्यवसाय से खतरा न पहुंचे।

(ख) किसी व्यवसाय के लिए निर्धारित योग्यता पूरी करें। (ग) उस व्यवसाय को सरकार ने अपने अधिकार में ना लिया हो।
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शोषण के विरूद्ध अधिकार

शोषण के विरूद्ध अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23, 24 में वर्णित है। ..

बेगार लेने पर रोक एवं मानव व्यापार पर रोक - 

अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव व्यापार तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार लेना गैरकानूनी है। 
न्यायालय के अनुसार मानव व्यापार तथा किसी भी व्यक्ति से जबरन बेगार लेना गैरकानूनी है। 

अपवाद - 

(1) राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा नियम लागू कर सकता है- जैसे अनिवार्य सैन्य सेबा कानून।
(2) कारखानों व जोखिमपूर्ण कार्यों में बालश्रम पर रोक- अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के किसी भीह बच्चे को फैटरी या खान पर नहीं लगाया जाएगा जो जोखिम पूर्ण हो।
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धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 

भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना में मदद करता है। संविधान के द्वारा भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है। इसी उद्देश्य से लोगों को अग्रलिखित धार्मिक स्वतंत्रताएं दी गई हैं

. संविधान के अनुच्छेद 25 में यह व्यवस्था की गई है कि सभी व्यक्तियों को, चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, अतःकरण की स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म को स्वीकार करने, आचरण करने और प्रचार की स्वतंत्रता है।

     अनुच्छेद 26 में यह व्यवस्था की गई है कि व्यक्तियों को धार्मिक संस्थाएं स्थापित करने, उनका प्रबंध करने, चल और अचल संपति प्राप्त करने और उपयोग करने का अधिकार है।

अनुच्छेद 27 में यह व्यवस्था की गई है कि किसी भीह व्यक्ति को ऐसे कर या चंदा देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, जिसका उपयोग किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए किया जाये।

अनुच्छेद 28 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य निधि से पसोषित शिक्षा संस्थणण्ओं में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जायेगी जो शिक्षा संस्थायेंराज्य द्वारा मान्य हैं या जिन्हें राज्य आर्थिक अनुदान देता है, वहां शिक्षा दी जा सकती है किन्तु उसे ग्रहण करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।

    इस प्रकार कहा जा सकता है किधार्मिक स्वतत्रता का अधिकार भारत में एक धर्म निरपेक्ष राज्य व्यवस्था प्रतिष्ठापित करने में मदद करताहै।

आज्ञा पत्र (रिट) :- इसे जारी करने का अधिकार 


मौलिक अधिकारों के हनन होने पर नागरिकों के उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय जो सुरक्षा के उपाय करता है उन्हें आज्ञा पत्र (रिट) कहते हैं। मौलिक अधिकारों की रक्षा अनिवार्य है। मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाने उसके क्रियान्वयन व सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधानों की आवश्यकता है।

संविधान के भाग 3 के अन्तर्गत इन अधिकारों के उलंघन के सुरक्षित बनाये रखने के लिए कुछ कानूनी उपचार प्रदान किये गए हैं। यह संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहलाता है। कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर सकता है तथा न्यायपालिका अपनी याचिका अथवा आदेश जारी कर सती है। मुख्य याचिकाएं निम्न प्रकार हैं -

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका -

न्यायालय यह आदेश देता है कि वह बंदी बनाये गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष सशरीर प्रस्तुत करें। इसके बाद वह सिद्ध करें कि उसे कारावास की सजा दी जाए अथवा मुक्त कर दिया जाए।

परमादेश - 

यदि कार्यपालिका अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करती है तो न्यायालय उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का आदेश देता है।

प्रतिरोध लेख - इसके अन्तर्गत कोई भी उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय निम्न अदालतों को किसी मामले में आगे बढने से इस आधार पर रोकता है कि यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। ___अधिकर पृच्छा - यह एक प्रकार से किसी व्यक्ति या उसके अपनो अधिकारों से बाहर कार्य करने पर प्रश्न की जानो संबंधी याचिका है।

उप्रेषण लेख - 

इसके द्वारा निम्न अदालत को आदेश दिया जाताहै कि किसी मामले की सुनवाई अन्य आलत में हस्तानांरित करें ताकि वह अदालत जले उस सपरए कोई निर्णय दे सके।

मौलिक अधिकार न्यायसंसगत है

 मूल अधिकारों की व्यवस्था भारत के संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। मूल अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किये जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप भी नहीं किया जा सकता।

    मौलिक अधिकार न्याय संगत Justiciable है
मौलिक अधिकारों को न्यायिक सुरक्षा भी प्राप्त होती है। इनका किसी भी प्रकार से उल्लंघन होने से नागरिक न्यायालय का संरक्षण प्राप्त कर सकता है। जबकि संविधान के भाग चार में अनुच्छेद 36 से 51 के तहत नीति-निर्देशक सिद्धांतों के मामले में न्यायालय द्वारा संरक्षण नही दिया गया है। अर्थात वे नीति निर्देशक सिद्धांत न्याययोग्य . Justiciable नहीं हैं।
    मौलिक अधिकारों को मूल विधि का संविधान में स्थान प्रदान किया जाता है।

    इन्हें संविधान संशोधन की विशिष्ट विधि द्वारा ही परिवर्तित किया जा सकता है। को मौलिक अधिकारों का राज्य द्वारा अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में ये राज्य की नागरिकता के विरूद्ध स्वेच्छाचारिता पर रोक है।

    मौलिक अधिकार प्रजातंत्र के आधार स्तम्भ हैं, इनके अभाव में व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है।

स्वतंत्रता का अधिकार 

    संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक में वर्णित हैं। मूल संविधान में सात प्रकार की स्वतंत्रताएं दी गई हैं। 
1. भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 
2. शांतिपूर्ण और निरायुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता 
3. संघ या परिसंघ बनाने की स्वतंत्रता 
4. भारत के राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमणकी स्वतंत्रता 
5. भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता 
6. वृति, उपजीविका या कारोबार (व्यवसाय) की स्वतंत्रता 
7. सम्पति का एकत्रीकरण,परिश्रम की स्वतंत्रता 

    46वें संविधान संशोधन 1978 में सम्पत्ति संबंधी स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। वर्तमान में केवल छः स्वतंत्रता के अधिकार भारतीय नागरिकों को प्राप्त है।

विचार और अभिव्यक्ति (भाषण) का अधिकार - 

अनुच्छेद 19(1)क भारत के सभी नागरिकों को विचार व्यक्त करने तथा भाषण देने का अधिकार है। प्रेस की स्वतंत्रता भी इसमें सम्मिलित है। इस स्वतंत्रता पर भारत की प्रभुता व अखण्डता के पक्ष में राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्य के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हित में न्यायालय अवमानता, मानहानि, अपराध के लिए उत्तेजित करना आदि के संबंध में युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं।

शांतिपूर्ण और निरायुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता - 

अनुच्छेद 19(1)ख के अन्तर्गत सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण और बिना हथियार सभा या सम्मेलन का अधिकार है परंतु इस अधिकार पर भी राज्य द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में इस स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता

संध बनाने की स्वतंत्रता - 

अनुच्छेद 19(1)ग के अनुसार सभी नागरिकों को समुदाय या संघ के निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इस स्वतंत्रता पर भी युक्तियक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं।

भारत के राज्य क्षेत्र में भ्रमण की स्वतंत्रता - 

अनुच्छेद 18(1)घ के अनुसार सभी नागरिकों को भ्रमण व पर्यटन की स्वतंत्रता . प्राप्त है।

निवास की स्वतंत्रता - 

अनुच्छेद 19(1)ड के द्वारा नागरिकों को भारतीय राज्य के किसी क्षेत्र में निवास करने का बस जाने की. 'स्वतंत्रता है

व्यवसाय की स्वतंत्रता - 

अनुच्छेद 19(1)छ के द्वारा सभी नागरिकों को वृति, उप जीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। किन्तु ये स्वतंत्रताएं भी राज्य के हित में प्रतिबन्ध से मुक्त नहीं हैं।

व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं - 

इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत अनुच्छेद 20, 21, 22 द्वारा प्रत्याभूत मौलिक स्वतंत्रताओं की गणना की जाती

(i) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण - 

अनुच्छेद 20 में प्रावधान है कि 
(A) किसी व्यक्ति को जब तक दण्ड नहीं दिया जाएगा जब तक वह विद्यमान कानून का उल्लंघन न करता हो। 
(B) किसी व्यक्ति को अपराध के लिए एक बार से अधिक दण्ड नहीं दिया जाएगा। 
(C) व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाह देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। 
(2) प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण- 
अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण व जीवन की स्वतंत्रता से वंचित विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही दिया जा सकता है। आपातकाल में भी सरकार बिना न्यायालय प्रक्रिया के व्यक्ति के प्राण नही ले सकती।
(3) कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से रोक - 
अनुच्छेद 22 के अनुसार किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के (4)24 घंटे के अन्दर दण्डाधकारी के सम्मुख पेश किया जाएगा।
     बन्दी बनाए गए व्यक्ति को वकील से परामर्श करने का अधिकार बन्दी बनाये जाने का कारण शीघ्र बताना होगा।

शिक्षा के अधिकार

संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम द्वारा एक नई , धारा 21A की धारा 21 के बाद जोडा गया है। इस संशोधन अधिनियम के द्वारा शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है। इसके अनसी राज्य को 6 से 14 वर्ष की आयु. के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा कानूनी रूप से स्वीकृत तरीके से प्रदान करना होगा। अभी यह कहा गया है कि 6 से 14 वर्ष आयु के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना माता-पिता या अभिभावक की जिम्मेदारी है।
    इसे मूल कर्तव्यों में भी स्थान दिया गया है।

Goodluck
Kkr Kishan Regar

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