राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया | कार्यकाल | भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां | भारत के उपराष्ट्रपति के कार्य

राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया 

भारतीय संविधान में Rashtrapati का पद संवैधानिक पद है। संसदीय कार्य प्रणाली में शासनाध्यक्ष प्रधान मंत्री होता है जबकि Rashtrapati राज्याध्यक्ष होता है। Rashtrapati हो सार्वभौम सत्ताधारी शासक है। Rashtrapati हेतु निम्नलिखित योग्यता होनी चाहिए 
(1) लोक सभा में चुनने की योग्यता रखता हो। 
(2) लाभ के पद पर ना हो 
(3) संसद के किसी सदन या राज्य के विधान मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा।

Rashtrapati Nirvachan Prakriya
Rashtrapati Nirvachan Prakriya
कार्यकाल- 

Rashtrapati का कार्यकाल पांच साल का है किन्तु वह कार्यकाल की अवधि से पूर्व भी उपRashtrapati को सम्बोधित करके अपना त्याग पत्र दे सकता है किन्तु जब तक दूसरे Rashtrapati निर्वाचित होकर कार्य भार न संभाल ले पहले Rashtrapati ही कार्य करते रहेंगे।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

निर्वाचन प्रक्रिया -

भारत का Rashtrapati अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल Electoral college के द्वारा चुना जाता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित प्रतिनिधि (राज्य सभा एवं लोक सभा) तथा राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya
    चुनाव आनुपालिका प्रतिनिधित्व की एकल प्रणाली द्वारा किया जाता है।

    मतों की महत्ता (मूल्य) इसमें संसद के सदस्यों के मतों का मूल्य तथा राज्य विधान सभाओं के मतों का मूल्य निकाला जाता है। 

Rashtrapati Nirvachan Prakriya


यदि भाग देने पर शेष 500 से अधिक बचते हैं तो भागफल में एक जोड देते हैं।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

विधान सभा MLA के मतों का मूल्य -


Rashtrapati Nirvachan Prakriya

चुनाव कोटा - 

सर्वप्रथम Rashtrapati के जीतने के लिए चुनाव कोटा निर्धारित करते हैं। जिसके अनुसार मत मिलना आवश्यक है। जिसका सूत्र है -

Rashtrapati Nirvachan Prakriya



- उदाहरणार्थ  कुल मतदाता -20.

Nirvachan होने वाले सदस्यों की संख्या - 5

अतः 120 20 अर्थात 20 मत जिसको प्राप्त होंगे वही विजित होगा।

    किन्तु चुनाव प्रक्रिया में मनोनीत सदस्यों को मत देने का अधिकार नहीं है। राज्य सभा में 12 तथा लोक सभा में 2 सदस्य मनोनीत होते हैं। 
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

पुन: चुनाव- 

संविधान में Rashtrapati के पुन चुनने पर रोक नहीं है। एक ही व्यक्ति कई बार Rashtrapati चुना जा सकता है।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

शपथ-

 सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश Rashtrapati को संविधान के प्रति श्रद्धा की शपथ दिलाता है। .

भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया

भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

    संविधान द्वारा Rashtrapati के Nirvachan के लिए अप्रत्यक्ष पद्धति को स्वीकार किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार Rashtrapati एक निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचित होता है, जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं (1) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, (2) राज्य तथा संघीय क्षेत्रों को विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य (3) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली व पाण्डीचेरी संघ राज्य क्षेत्र की    विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य। Rashtrapati के Nirvachan के लिये एकल, संक्रमणीय आनुपातिक प्रणाली को अपनाया गया है। मनोनीत सदस्यों को Nirvachan में भाग लेने का अधिकार नहीं है। कुल वैध मतों का स्पष्ट बहुमत प्राप्त होने वाले उम्मीदवार को Rashtrapati निर्वाचित किया जाता है। साधारण बहुमत चुनाव के लिये उम्मीदवार को Rashtrapati निर्वाचित किया जाता हो. साधारण बहुमत चुनाव के लिये पर्याप्त नहीं है। निर्वाचक मण्डल के सदस्य अपनी वरीयता व्यक्त कर सकते हैं। सर्वप्रथम पहली पसन्द के मतों की गणना की जाती है। यदि पहली वरीयता की गणना में ही किसी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा' या स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाय तो दूसरी वरीयता के मतों की गणना नहीं की जाती। ऐसा नहीं होता तो द्वितीय तथा तृतीय वरीयता के मतों की गणना की जाती हैं । 
Rashtrapati Nirvachan Prakriya
    अनुच्छेद 55 के अनुसार Rashtrapati के Nirvachan के सम्बन्ध में संविधान द्वारा प्रयास किया गया है कि - विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों में एकरूपता हो तथा संघ व राज्य के प्रतिनिधियों के बीच समता हो। 70वें संविधान संशोधन (1972) द्वारा संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को भी शामिल किया गया है। " Rashtrapati का Nirvachan मतों की साधारण गणना से नहीं होता। सदस्यों के मतों का मान निकाला जाता है जिसके लिये एक फार्मूला निश्चित किया गया है जो इस प्रकार है -
Rashtrapati Nirvachan Prakriya
राज्य, संघीय क्षेत्र तथा विधानसभा के सदस्य के मत का मान इस पद्धति से निकाला जाता है

Rashtrapati Nirvachan Prakriya


संसद सदस्यों के मतों का मूल्य इस प्रकार निकाला जाता है


Rashtrapati Nirvachan Prakriya

मान लीजिए किसी राज्य की जनसंख्या है 42,502,708 तथा उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की संख्या 294 है तो प्रत्येक सदस्य के प्राप्त मतों की संख्या हुई, अथवा उसके मत का मूल्य हुआ -
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

Rashtrapati Nirvachan Prakriya

भारत के राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता, कार्यकाल तथा पद से हटाना 

भारत के Rashtrapati पद के लिए योग्यताओं का वर्णन कीजिए। उसका कार्यकाल कितना होता है तथा वह कैसे अपने पद से हटाया जा सकता है?

भारत के Rashtrapati पद के लिए आवश्यक योग्यताएँ संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार

1. वह भारत का नागरिक हो। 
2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। 
3. वह लोकसभा का सदस्य बनो की योग्यता रखता हो। 
4. वह किसी लाभकारी पद पसरएआसीन ना हो। 
5. वह केन्द्रीय या राज्य विधानमण्डल का सदस्य न हो। 
6. वह पागल, दिवालिया तथा कोढी न हो।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

राष्ट्रपति का कार्यकाल

संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार Rashtrapati अने पद ग्रहण से पाँच वर्ष तक पद धारण करता है। कार्यकाल पूरा होने पर भी वह तब तक अपने पद पर रहता है जब तक दूसरा व्यक्ति पद ग्रहण न कर ले।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

राष्ट्रपति को पद से हटाने की विधि : महाभियोग

भारत के Rashtrapati का कार्यकाल 5वर्ष होता है। लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 के. अनुसार Rashtrapati के द्वारा संविधान का उल्लंघन किए जाने पर संविधान में दी गई पद्धति के अनुसार उस पर महाभियोग लगाकर उसे उसके पद से हटाया जा सकता है। उस पर महाभियोग लगाने का अधिकार भारतीय संसद के प्रत्येक सदन को प्राप्त है। अभियोग लगाने के 14 दिन बाद महाभियोग लगाने वाले सदन में उस पर विचार किया जाता है। और यदि वह सदन की समस्त संख्या के 2/3 सदस्यो द्वारा स्वीकृत हो जाता है तो उसके बाद उसे संसद के द्वितीय सदन में भेज दिया जाता है। दूसरा सदन इन अभियोगों की या तो स्वयं जाँच करेगा या इस कार्य के लिए एक समिति नियुक्त करेगा। यदि सदन में Rashtrapati के विरूद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं और दूसरा सदन भी अपने कुल सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत से महाभियोग का प्रस्ताव स्वीकार कर ले तो वह प्रस्ताव स्वीकार माना जाएगा और प्रस्ताव के स्वीकृत होने की तिथि से Rashtrapati पदच्युत समझा जायेगा। पद रिक्त होने के बाद 6 महीने के अन्दर नये Rashtrapati का Nirvachan कर लिया जाता है। इस तरह Rashtrapati पदधारी व्यक्ति को उसके पद से हटाया जाता है।
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां 

भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों की व्याख्या कीजिए।

भारत के Rashtrapati की विधायी शक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार निम्नलिखित हैं -

1. Rashtrapati संसद के सत्र को आहूत, सत्रावसान व भंग करता हैं । 
2. संसद के अधिवेशन के प्रारम्भ में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण देता है। 
3. वह संसद के दोनों अथवा किसी एक सदन को समय-समय पर संदेश भेजता रहता है। 
4. दोनों सदनों में मतभेद होने की स्थिति में वह एक संयक्त बैठक बुलता है तथा इसमें होने वाले कार्य संबंधी नियम बना सकता हैं। 
5. साहित्य, विज्ञान, कला, समाजसेवा या अन्य किसी भी क्षेत्र में विशेष उपलब्धि ख्याति प्राप्त व्यक्तियों में से किन्हीं 12 व्यक्तियों को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत करता है। 
6. संसद द्वारा पारित प्रत्येक विधेयक को कानून का रूप ग्रहण करने के लिए Rashtrapati के हस्ताक्षर आवश्यक है। 
7. राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राज्यपाल Rashtrapati के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है। 
8. वित्त विधेयक, राज्य की सीमताओं में परिवर्तना संबंधी विधेयक, भाषा संधी विधेयक, तथा संचित निधि से खर्चे को अधिकृत करने वाले विधेयक Rashtrapati की पूर्व अनुमति के बिना संसद में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते। 
9. संसद जिस समय सत्र में नहीं हो तो Rashtrapati को अध्यादेश जारीकरनेका अधिकार प्राप्त है। 
10. लोकसभा के स्पीकर का पद रिक्त होने पर Rashtrapati अस्थायी व्यवस्था कर सकता है।
11. Rashtrapati लोकसभामेंदोआंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्यों को भी मनोनीत करता है। 
12. संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग,था एस सी एवं पिछडा वर्ग आयोग तथा नियंत्रक व महालेखाकार द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन संसद के समक्ष Rashtrapati ही रखता है। 
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

भारत के उपराष्ट्रपति के कार्य

भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यों का वर्णन कीजिए।
संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत का एक उपRashtrapati होगा। डॉ हरिमोहना जैन के अनुसार, "भारत की संघीय कार्यपालिका में Rashtrapati के अतिरिक्त एक उपRashtrapati की भी व्यवस्था है और इस पसद के समतुत्य संसदीय शासन प्रणालियों में अन्यत्र कोई पद नहीं है। अतः यह पद अनावश्यक प्रतीत होता है।" संविधान के अनुच्छेद 66 (1) के अनुसार उपRashtrapati का Nirvachan एक निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य होते हैं। संवधिान के अनुच्छेद 67 के अनुसार उपरएष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया है। 
Rashtrapati Nirvachan Prakriya

उपराष्ट्रपति के प्रमुख कार्य 

1. भारत का उपRashtrapati राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। वह सदन के सभापति के रूप में शक्तियों का प्रयोग करता है।
2. Rashtrapati के देहावसान, पदत्याग अथवा पदच्युति के कारण या अन्य किसी कारण से Rashtrapati पद रिक्त होने पर उपRashtrapatiRashtrapati के सभी कार्य संभालताहै। 
3. वह सदन मे व्यवस्था बनाए राता है तथा सदस्यों को बोलने तथण प्रश्न पूछने की अनुमति देनाऔर विधेयकों तथा अन्य प्रस्तावों पर मतदान भी करवाता है। 
4.उपRashtrapati सदन में किसी विधेयक पर मतदान की स्थिति में बराबर मत आने पर निर्णायक मत देता है। 
5. कार्यवाहक Rashtrapati के रूप में वह राज्यसभा का सभापतित्व नहीं करता है। 
6. मृत्यु, त्यागपत्र. आदि के कारण रिक्त Rashtrapati के पद को उपRashtrapati कार्यवाहक Rashtrapati के रूप में संभालता है जो लगभग 6 मास से अधिक नहीं होता है।
Kkr Kishan Regar

Dear friends, I am Kkr Kishan Regar, an enthusiast in the field of education and technology. I constantly explore numerous books and various websites to enhance my knowledge in these domains. Through this blog, I share informative posts on education, technological advancements, study materials, notes, and the latest news. I sincerely hope that you find my posts valuable and enjoyable. Best regards, Kkr Kishan Regar/ Education : B.A., B.Ed., M.A.Ed., M.S.W., M.A. in HINDI, P.G.D.C.A.

एक टिप्पणी भेजें

कमेंट में बताए, आपको यह पोस्ट केसी लगी?

और नया पुराने