जनपद से साम्राज्य की ओर : सोलह महाजनपद, मगध, मौर्य साम्राज्य, अशोक, महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

छठी सदी ई.पू. में भारत में 16 महाजनपदों का विकास हुआ। इनमें मगध का उत्कर्ष हुआ। मगध पर ही मौर्य वंश ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।

जनपद से साम्राज्य की ओर

नये धर्मों का उदय

इस अवधि में आर्थिक और राजनीतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार बन गये । यहाँ पर वर्षा अधिक होने के कारण उपजाऊ भूमि थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एटा जिले में जखेड़ा नामक स्थान पर 500 ई.पू. के लगभग हल का फाल मिला। राजघाट, कौशाम्बी, वैशाली और सोनपुर से भी लोहे के प्रमाण मिले हैं। धान, गन्ना और सरसों की खेती * की जाती थी। इस काल में शहरों का विकास हुआ था। 600 और 300 ई.पू. में पाटलिपुत्र, राजगढ़िया, श्रावस्ती, वाराणसी, . वैशाली, चम्पा, कौशाम्बी और उज्जयिनी आदि शहरों का विकास हुआ। ये नगर शिल्पकला और व्यापार के केन्द्र बन गये। इस काल में पंच मार्क सिक्के प्राप्त हुए । इन पर अर्द्धचन्द्राकार मछली, पेड़ और पहाड़ी के चिह्न अंकित थे । ये सिक्के चाँदी व ताँबे के थे। वैदिक धर्म की बुराइयों के कारण जैन व बौद्ध धर्म का जन्म हुआ।

जैन धर्म और बौद्ध धर्म के सिद्धान्त:

महावीर स्वामी जैन धर्म का संस्थापक था। उसका जन्म 599 ई.पू. में बिहार में वैशाली के पास कुण्डग्राम में हुआ। यह जैन धर्म का 24वां व अन्तिम तीर्थंकर था। उन्होंने मोक्ष प्राप्ति पर बल दिया था। उन्होंने त्रिरत्न और पंचमहाव्रत के पालन करने पर बल दिया। उन्होंने आत्मावाद, पुर्नजन्म, कर्मवाद और स्यादवाद पर भी बल दिया। उन्होंने कर्मकाण्डों, बाह्य आडम्बर का विरोध किया।

                बौद्ध धर्म का संस्थापक महात्मा बुद्ध था। उनका जन्म 566 ई.पू. में नेपाल की पहाड़ी की तराई में स्थित लुम्बनी नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस शील, मध्यम मार्ग, कर्मवाद, अनात्मवाद आदि सिद्धान्त " बताये। उन्होंने कर्मकाण्डों व बाह्य आडम्बरों का विरोध किया। बौद्ध धर्म का प्रभाव साहित्य, कला और धार्मिक क्षेत्र में अत्यधिक रहा है।

सोलह महाजनपद:

छठी सदी ई.पू. में 16 महाजनपदों का विकास हुआ। इनमें अंग, मगध, काशी, कौशल, सूरसेन, पांचाल, कुरू, मत्स्य, चेदि, अवन्ती, गांधार, कम्बोज, यज्जि, मल्ल, अस्माका आदि थे। इनमें कई गण संघ थे जबकि राजतंत्रीय थे ।

मगध का उद्भव:

मगध का एक विशाल साम्राज्य के रूप में उत्कर्ष हुआ। इसके उत्कर्ष में हर्यक वंश का योगदान अधिक रहा है। इस वंश का प्रथम शासन शत्रु, उदायी ने मगध के विकास में योगदान दिया। शिशुनांग वंश के राजा शिशुनाग ने भी मगध के उत्कर्ष में योगदान दिया। उसके पुत्र कालाशोक ने बौद्ध के उत्थान में अधिक योगदन दिया। अन्त में मगध पर नन्द वंश के राजा धनानन्द की शासन सत्ता स्थापित हुई। वह दुराचारी शासक था। चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने इसका अन्त कर डाला। इस प्रकार मगध पर मौर्य साम्राज्य की शासन सत्ता स्थापित हो गई। मौर्य काल में देश की सभी क्षेत्रों में प्रगति हुई।

मौर्य साम्राज्य का उदय :

321 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। मौर्य साम्राज्य की जानकारी अशोक शिलालेखों, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज की इण्डिका, कल्हण की राजतरंगिणी आदि साधनों से मिलती है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत, उत्तर पश्चिम और भारत के बहुत बड़े प्रदेशों को अपने सैन्य बल से जीत लिया। उसके बाद उनके पुत्र बिन्दुसार ने शासन किया। बिन्दुसार के बाद में अशोक मगध का राजा बना। उसने कश्मीर और कलिंग पर विजय प्राप्त की। कलिंग युद्ध का उसके ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। उसने हमेशा के लिए युद्ध करना छोड़ दिया और शान्तिवादी बौद्ध धर्म को अपना लिया। मौर्य वंश के अन्तिम राजा वृहद्रथ को मार कर पुष्यमित्र शुंग मगध की गद्दी पर बैठा।

अशोक और उसका धम्म :

अशोकं ने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। उसने मानव धर्म को धम्म का नाम दिया। उसके धम्म में सच्चाई, पवित्रता, अच्छा व्यवहार आदि बातें थी। उसने जनकल्याण को महत्त्व दिया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार हेतु कई कार्य किए। उसने सभी धर्मों का आदर किया।

मौर्यों का पतन:

शासन की विशालता अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारी, राजकोष का खाली होना, उत्तराधिकार के नियमों का अभाव, अशोक की उदारवादी नीति आदि कारणों से मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।

मौर्य शासन के अधीन भारत मौर्य काल में भारत में केन्द्रीय शासन मजबूत था। राजा सर्वेसर्वा होते थे लेकिन वे जनकल्याण का ध्यान भी रखते थे। राजा की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी। प्रांतीय शासन भी सुव्यवस्थित था। स्थानीय स्तर पर ग्राम व नगर का शासन था। सैनिक व पुलिस व्यवस्था भी मजबूत थी। गुप्तचर व्यवस्था भी अच्छी थी। राज्य निष्पक्ष न्याय करता था। वह अपराधियों को कठोर दण्ड देता था। कानून के सामने सभी को समान समझा जाता था। राजा जनकल्याण को अधिक महत्त्व देता था।

अर्थव्यवस्था, समाज व कला :

मौर्य काल में देश की आर्थिक व्यवस्था अच्छी थी। कृषि, पशुपालन, उद्योग धंधे और व्यापार आदि व्यवसाय उन्नत अवस्था में थे। कृषि उत्पादन अधिक मात्रा में होता था। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार उन्नत अवस्था में था। समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि चार वर्ण थे। ब्राह्मणों व क्षत्रियों की स्थिति मजबूत थी। शूद्रों की स्थिति निम्न थी। मौर्य काल में स्थापत्य कला, चित्रकला और मूद्रिकला का बहुत अधिक विकास हुआ।

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था, समाज और कला

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था:

मौर्यकाल में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। मौर्य सम्राटों ने खाली जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए नये कृषि आधारित स्थानों का निर्माण करवाया। जहाँ की जनसंख्या अधिक थी, वहाँ से लोगों को तथा युद्धबंदियों को यहाँ पर खेती करने के लिए बसाया। इस काल के राजाओं ने सिंचाई की उचित व्यवस्था की। कुएँ, नहर, बाँध और तालाब आदि साधन उपलब्ध करवायें । उस समय ग्वल, जौ, गेहूँ, गन्ना, दालें, मटर, तिलहन आदि अनाज पैदा या जाता था। उस समय कुटीर उद्योग और व्यापार भी लोगों जीवनयापन के साधन थे । वस्त्र बनाने के प्रमुख केन्द्र वाराणसी, मथुरा, बंगाल, गंधार और उज्जैन आदि थे । व्यापार स्थल मार्ग और जलमार्ग दोनों से ही होता था। उत्तर पश्चिम में सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र तक्षशिला था। उस समय पूर्व में ताम्रलिपि और पश्चिम में भड़ौच आदि महत्त्वपूर्ण बंदरगाह थे। मौर्यकाल में शिल्प कला भी आय का अच्छा स्त्रोत थी । व्यापारियों ओर कारीगरों को संगठन के रूप में व्यवस्थित किया जाता था। इसको श्रेणी या गिल्ड कहते थे । लोहे के उत्पादन में मौर्य सम्राट् अपना एकाधिकार जमाये हुए थे ।

 

मौर्यकालीन समाज :

मौर्य काल में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। समाज में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त थां । व्यापार, वाणिज्य के विकास के कारण वैश्यों की स्थिति में सुधार हो गया था। शूद्रों की स्थिति भी सुधर चुकी थी । उनको खेती और शिल्प सम्बन्धी कार्यों में भाग लेने का अधिकार मिल चुका था। मौर्यकाल में अछूतों की जनसंख्या भी काफी अधिक थी। जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उत्थान के कारण वैदिक धर्म का प्रभाव कम हो चुका था।

 

मौर्यकालीन कला:

मौर्यकाल ने प्राचीन भारतीय कला और वास्तुकला के सबसे पुराने नमूने हमारे देश को प्रदान किए हैं। मैगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के महल की सुन्दरता का विस्तार से उल्लेख किया है।

पटना के पास कुम्हरार में इस महल के अवशेष प्राप्त हुए है। मौर्यकाल में विकसित हुई पत्थर की मूर्तियाँ बनाने की कला के श्रेष्ठ नमूने रामपुरवा, लौरीया, नंदनगढ़ और सारनाथ के अशोक स्तम्भ के रूप में मिले हैं। हमारे देश का राष्ट्रीय चिह्न बनारस के पास सारनाथ के अशोक स्तम्भ से लिया गया है। ये सभी स्तम्भ गोलाकार है तथा एक ही पत्थर को तराशकर बनाये गये हैं। ये रेतीले पत्थर के बने हुए हैं। ये उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पास चुनार नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। मौर्यकाल से जुड़े हुए कुछ चट्टानों में कटाई करके बनाये गये वास्तुकला के नमूने गया के पास बारबरा की पहाड़ियों में बनी लोमस ऋषि गुफा से प्राप्त हुए हैं । मौर्य कालीन कई पत्थर और मिट्टी की बनी मूर्ति कला के नमूने पॉलिश किए हुए भी प्राप्त हुए है। पत्थर की यक्षिणी के रूप में नारी मूर्ति दीदारगंज से प्राप्त हुई है जो कि कला की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाती है । इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि मौर्यकाल में मूर्तिकला, स्थापत्य कला और चित्रकला का विकास हो चुका था।

जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ :

जैन धर्म की मुख्य शिक्षाएँ निम्नांकित हैं

(1) निवृत्तिवाद: जैन धर्म ने इस बात का उल्लेख किया मनुष्य को संन्यास लेने पर ही सुख की प्राप्ति हो सकती है.

( 2 ) त्रिरत्न महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्ति के लिए तीन साधन बताये हैं जिन्हें त्रिरत्न कहते हैं। जैसे- (अ) सम्यक ज्ञान, (ब) सम्यक वाणी और (स) सम्यक चरित्र |

(3) पंचमहाव्रत : जैन धर्म में सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य आदि के पालन पर बल दिया है। ।

(4) आत्मा में विश्वास महावीर स्वामी ने इस बात पर बल दिया कि आत्मा अजर और अमर होती है जबकि शरीर नाशवान होता है। आत्मा के अनेक रूप होते हैं ।

(5) पुनर्जन्मवाद : मनुष्य कर्मों का फल भोगने के लिए बार-बार जन्म लेता है और मरता है।

(6) कर्मवाद: जैन धर्म में श्रेष्ठ कर्म करने पर बल दिया है।

(7) वेदों को अमान्यता: महावीर स्वामी ने वेदों को अप्रमाणिक माना है। उनकी बातों को झूठा बताया है।

(8) स्यादवाद: जैन धर्म में यह बताया है कि मनुष्य को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसके विचार सही है तथा दूसरे के विचार गलत है बल्कि उसको यह मान लेना चाहिए कि दूसरे के विचार भी कुछ सीमा तक सही हो सकते हैं ।

बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ :

बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नांकित हैं

(1) चार आर्य सत्य: इसमें चार बातें आती है। जैसे(अ) संसार में दुख ही दुख है । (ब) दुःख का कारण तृष्णाएँ या इच्छाएँ हैं। (स) दुखों के विनाश के लिए तृष्णाओं का दमन करना आवश्यक है। (द) तृष्णाओं के विनाश के लिए अष्टांगिक मार्ग का पालन करना अनिवार्य है।

(2) अष्टांगिक मार्ग : महात्मा बुद्ध ने आठ मार्ग बताये हैं। जैसे- (अ) सम्यक वाणी, (ब) सम्यक दृष्टि, (स) सम्यक संकल्प, (द) सम्यक आजीविका, (य) सम्यक कर्मान्त, (र) सम्यक व्यायाम, (ल) सम्यक चातुर्य, (व) सम्यक समाधि आदि।

( 3 ) आत्मा में अविश्वास : महात्मा बुद्ध ने आत्मा में विश्वास नहीं किया था। वे इसकी उपस्थिति को नहीं मानते है।

(4) कर्मवाद बौद्ध में श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा दी है

(5) मध्यम मार्ग : गौतम बुद्ध ने यह स्पष्ट किया है कि को अपने शरीर को अत्यधिक कष्ट भी नहीं देना मनुष्य चाहिए तथा अत्यधिक आराम भी नहीं देना चाहिए ।

(6) क्षणिकवाद : महात्मा बुद्ध ने यह स्पष्ट किया है कि यह संसार क्षणभंगुर है। इसमें सभी वस्तुएँ अस्थिर होती है।

(7) निर्वाण : महात्मा बुद्ध ने मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म करने की शिक्षा दी है।

(8) दस शील: महात्मा बुद्ध ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, असमय भोजन का त्याग, कोमल शैय्या का त्याग, कंचन कामिनी का त्याग, सुगन्धित व मादक द्रव्यों का त्याग, नृत्यगान का त्याग आदि के पालन पर भी बल दिया है। इनमें प्रथम पाँच बातें गृहस्थी लोगों के लिए आवश्यक मानी है जबकि सभी दस बातें संन्यासियों के लिए आवश्यक बतायी है।

जनपद  : महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न1. छठी शताब्दी ई.पू. के दौरान जिन स्थानों पर लोहे के औजारों के साक्ष्य मिले थे, उनके नाम लिखें।

उत्तर : जखेड़ा, राजघाट, कौशम्बी, वैशाली और सोनपुर

प्रश्न2. इस काल के कुछ महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों और व्यापार केन्द्रों का विवरण दें।

उत्तर : पाटलिपुत्र, राजगढिया, श्रावस्ती, वाराणसी, वैशाली, चम्पा, कौशाम्बी और उज्जयिनी आदि व्यापार के केन्द्र थे। श्रावस्ती और कौशाम्बी से जुड़ा हुआ नगर वाराणसी व्यापार का मुख्य केन्द्र था। श्रावस्ती भी कपिलवस्तु और कुशीनगर के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए थे। व्यापारी मथुरा और तक्षशिला के रास्ते मगध और कौशल से व्यापार हेतु जाते थे। उज्जैन और गुजरात के समुद्रतटीय क्षेत्रों की यात्रा के लिए मथुर पारगमन का प्रमुख केन्द्र बन गया था।

प्रश्न3. प्राचीन सिक्कों को पंचमार्क सिक्के क्यों कहते थे?

उत्तर : क्योंकि इन सिक्कों पर अर्द्धचन्द्राकार, मछली, पे पहाड़ी आदि के चिह्न पाये गये हैं। इसी कारण इन सिक्कों को पंचमार्क सिक्के (सांचे की ढलाई में बने सिक्के) कहते हैं ।

प्रश्न4 . आजीविका पंथ की नींव किसने रखी ?

उत्तर : मखाली घोषाल

प्रश्न5 . जैन धर्म के सिद्धान्त में 'त्रिरत्न' नाम के कौन से तीन तत्व हैं ?

उत्तर : उचित विश्वास, उचित ज्ञान और उचित व्यवहार

प्रश्न6 . जैन धर्म की कौन सी दो शाखाएँ हैं ?

उत्तर :दिगम्बर और श्वेताम्बर

प्रश्न 7. बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन किस स्थान पर दिया था ?

उत्तर :सारनाथ

प्रश्न 8. बौद्ध धर्म में कौन से चार महान सत्य और अष्टांग मार्ग है ?

उत्तर : बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य (1) दुख, (2) दुख समुदाय, (3) दुख निरोध, (4) दुख विरोध गामिनी प्रतिपदा आदि है जबकि अष्टांगिक मार्ग में ( 1 ) सम्यक दृष्टि, (2) सम्यक कर्मान्त, ( 3 ) सम्यक वाणी, (4) सम्यक आजीविका, (5) सम्यक समाधि, ( 6 ) सम्यक संकल्प, (7) सम्यक चातुर्य, (8) सम्यक व्यायाम आदि है।

प्रश्न 9. दुख के सम्बन्ध में बुद्ध ने क्या शिक्षा दी ?

उत्तर : दुखों से छुटकारा पाने के लिए बुद्ध ने इच्छाओं दमन की शिक्षा दी है। इच्छाओं के दमन के लि अष्टांगिक मार्ग का पालन की प्रेरणा दी है।

प्रश्न 10. बुद्ध ने अपने सिद्धान्तों के प्रचार के लिए किस भाषा का प्रयोग किया ?

उत्तर :पालि

 

प्रश्न 11 महायान और हीनयान में क्या अन्तर है ?

उत्तर : महायान सम्प्रदाय में संस्कृत भाषा का प्रयोग तथा महात्मा बुद्ध की मूर्ति के रूप में पूजा करना प्रारम्भ कर दिया जबकि हीनयान संप्रदाय में पालि भाषा का प्रयोग करते हैं तथा महात्मा बुद्ध को वे अपना मार्गदर्शक मानते हैं ।

 

प्रश्न 12. साहित्य और कला के क्षेत्र में बौद्ध धर्म ने क्या योगदान दिया ?

उत्तर : बौद्ध धर्म के विद्वानों ने कई ग्रन्थों की रचना की थी। जैसे-त्रिपिटिका, मिलिन्दपानहो, बुद्धचरित आदि। स्तूपों, चट्टानों को काटकर बनायी गई गुफाओं तथा चित्रकला के रूप में बौद्ध धर्म कला और वास्तुकला की उन्नति के कारण प्रेरणा का प्रतीक समझा जाता है। सांची, भड़ौच, अमरावती और अजन्ता आदि स्थानों पर कला के नमूने देखे जा सकते हैं। गंधार और मथुरा की कला को भी बौद्ध धर्म ने प्रेरणा दी।

 

प्रश्न 13. छठी शताब्दी ईसा पूर्व काल के किन्हीं चार महाजन पदों का नाम लिखे।

उत्तर : (1) अंग, (2) मगध, (3) काशी, ( 4 ) कौशल आदि ।

प्रश्न 14. गणसंघ और राजतंत्र में क्या अन्तर था ?

उत्तर : गणसंघ में प्रशासकीय राज चलता था जिसमें एक चुना गया राजा, एक विशाल परिषद या सभाओं की मदद से शासन करता था। जिसमें सभी महत्त्वपूर्ण कुलों और परिवारों के मुखिया भाग लेते थे जबकि राजतंत्र में राजा वंशानुगत होता था। वह निरंकुश और स्वेच्छाचारी होता था। शासन सम्बन्धी कार्यों में वह स्वयं सर्वेसर्वा होता था।

 

प्रश्न 15. छठी शताब्दी ई.पू. काल में सबसे महत्वपूर्ण गणसंघ कौन सा था ?

उत्तर : वैशाली

प्रश्न 16. बिम्बसार ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किन नीतियों को अपनाया ?

उत्तर : बिम्बसार ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए तीन नीतियाँ अपनायी थीं (1) वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना, (2) शक्तिशाली राजाओं से मित्रता करना, (3) कमजोर राजाओं पर विजय पाना।

प्रश्न 17. मगध के उत्थान में भौगोलिक तत्वों ने कैसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?

उत्तर : मगध की प्राचीन राजधानी गिरिव्रज या राजगीर चारों तरफ से पाँच पहाड़ियों से घिरी हुई थी। इन पहाड़ियों ने प्राकृतिक किले के रूप में इसकी सुरक्षा की थी। इसी प्रकार से यहाँ की नदी घाटी की उपजाऊ जमीन से अधिक पैदावार होने से बहुत बड़ी सेना का गठन करने की सुविधा मिल गई। इस सेना ने युद्धों में विजय दिलवाई। दक्षिण के क्षेत्रों से यहाँ के लोगों को इमारती लकड़ी और हाथी मिल गये। दक्षिण बिहार के नजदीक प्राप्त हुई लोहे की खान पर मगध का नियन्त्रण स्थापित हो गया। इससे अस्त्र-शसत्र और कृषि के औजार प्राप्त हो गये। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई तथा युद्धों में भी सफलता मिली।

प्रश्न 18 . मगध की राजधानी का क्या नाम था ?

 उत्तर :गिरिव्रज या राजगीर

प्रश्न 19. दो शासकों के नाम बताऐं जिनके साथ अजातशत्रु ने युद्ध लड़े ?

उत्तर :प्रसेनजित और चेतक

प्रश्न 20. नंद राजवंश का सबसे प्रमुख शासक कौन था ?

 उत्तर : महापद्मानंद

प्रश्न 21. किस शासक के काल मे द्वितीय बौद्ध धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ ?

उत्तर :कालाशोक

प्रश्न22 . मौर्यकालीन इतिहास लिखने के लिए कौन-कौन से मुख्य स्त्रोत है ?

उत्तर : मौर्यकालीन इतिहास लिखने के लिए अशोक के अभिलेख महत्त्वपूर्ण स्त्रोत के रूप में है। इन अभिलेखों में 44 अभिलेख इस प्रकार के है जो चट्टानों और स्तम्भों पर उत्कीर्ण है। इसके अलावा पंचमार्क सिक्के, कुम्हार में स्थित अशोक के महल के अवशेष और मूर्तियों के टुकड़े आदि स्त्रोत भी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। मेगस्थनीज की इण्डिका, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, दीपवंश और महावंश बौद्ध ग्रन्थ, विशाखादत्त का मुद्राराक्षस आदि साहित्यिक सामग्री भी मौर्यकालीन इतिहास के मुख्य स्त्रोत के रूप में है।

प्रश्न 23. अशोक के अधिकांश शिलालेख किस भाषा और लिपि में लिखे गए हैं ?

उत्तर : प्राकृत और ब्राह्मी

प्रश्न 24. इंडिका का लेखक कौन है ?

उत्तर : मैगस्थनीज

प्रश्न 25. अंतिम मौर्य शासक कौन था ?

उत्तर : बृहद्रथ

प्रश्न 26. धम्म के सम्बन्ध में अशोक कालीन शिलालेख हमें क्या बताते है ?

उत्तर : अशोक कालीन शिलालेखों का गहराई से अध्ययन करने पर यह जानकारी मिलती है कि धम्म में दया, दान, सत्य, पवित्रता और अच्छा व्यवहार आदि मूल विशेषताएँ शामिल थी।

प्रश्न 27. अन्य धर्मों के साथ अशोक का कैसा व्यवहार था ?

उत्तर : अन्य धर्मों के साथ अशोक का व्यवहार सहिष्णुता का था। वह सभी धर्मों का आदर करता था। सभी धर्मों के लोगों के कल्याण के कार्य अशोक ने किये थे। उसने जनता को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की। उसने धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया ।

प्रश्न 29. धम्ममहामात्रों के क्या कार्य थे ?

उत्तर : ब्राह्मणों और अन्य सभी प्रकार के भिक्षुओं की देखभाल

प्रश्न 30. अशोक की मृत्यु के उपरांत किन दो शासको ने दो भागों पर राज किया ?

उत्तर : दशरथ और सम्प्रति

प्रश्न 31. मौर्यकालीन शासन का, आगे चलकर भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर : इससे लौह-तकनीकी और कृषि का विस्तार हुआ, जिससे भारत में अनेक क्षेत्रीय राज्यों का उद्भव हुआ।

प्रश्न 32 करों के मूल्यांकन और संग्रहण के लिये मौर्य काल का कौन-सा अधिकारी जिम्मेदार था ?

उत्तर : समाहर्त्ता

प्रश्न 33. शाही मालिकाना की भूमि पर होने वाली खेती किस अधिकारी की निगरानी में होती थी ?

उत्तर : सीताध्यक्ष

प्रश्न 34. गया के पास बारबरा पहाड़ियों में चट्टान काट कर बनाई गई गुफा का क्या नाम है ?

उत्तर : गया के पास लोमासा ऋषि गुफा

प्रश्न 35. वैश्यों ने बौद्ध धर्म और जैन धर्म का संरक्षण क्यों किया ?

उत्तर- जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने शान्ति, समानता और अच्छे कर्मों पर बल दिया। इन दोनों ही धर्मों ने कर्मकाण्डों, बाह्य आडम्बरों और खर्चीले यज्ञों का विरोध किया। इस धर्म ने दान, मितव्ययता, अहिंसा और अच्छे सामाजिक व्यवहार पर भी बल दिया। आर्थिक प्रगति के कारण इस काल में वैश्यों का उदय हुआ। वैश्य वर्ग के लोगों ने सामाजिक स्तर में अच्छा स्थान प्राप्त करने के लिए जैन व बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया ।

प्रश्न 36. अशोक की धम्म नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या है ?

उत्तर-अशोक का धम्म एक आचार संहिता या एक प्रकार का आदर्श सामाजिक व्यवहार था। यह संसार के सभी धर्मों में देखने को मिलता है। इसे मानने के लिए अशोक ने जनता से अनुरोध किया था। अशोक के धम्म में आधारभूत विशेषताएँ करूणा, दान, दक्षिणा, सच्चाई, पवित्रता और अच्छा व्यवहार आदि थी । अशोक ने हिंसा, क्रोध और ईर्ष्या पर नियन्त्रण लगाने की प्रेरणा भी दी थी। उसने माता-पिता, सम्बन्धियों, ब्राह्मणों और श्रमणों का सम्मान करने की प्रेरणा दी थी।

प्रश्न 37. अशोक ने धम्म की नीति का अनुपालन क्यों किया ?

उत्तर- अशोक के शासन का आधा समय समाप्त होते ही उसके साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक हो गया था। इस साम्राज्य में अलग-अलग संस्कृति, समाज और धर्म के लोग थे। इनमें परस्पर मतभेद थे। इसलिए इससे राजनीति तनाव का जन्म हो गया था। इस प्रकार के राजनीतिक तनावों से साम्राज्य की रक्षा करने के लिए अशोक ने विभिन्न समूहों में सद्भाव और सहृदयता की भावना पैदा करके एकता लाने का मार्ग अपनाया ताकि उनकी पारस्परिक लड़ाई समाप्त हो सके और शान्ति स्थापित की जा सके। अतः इसी कारण से अशोक ने धम्म की नीति का अनुपालन किया ।

प्रश्न 38. अत्यधिक कर एकत्रित करने के लिए मौर्यों ने कौन-कौन से प्रयास किए ?

उत्तर- मौर्यों ने परती भूमि को कृषि के लिए उपयोगी बनाने के लिए नये कृषि पर आधारित स्थानों का निर्माण किया। खेतों में काम करने के लिए अधिक जनसंख्या वाले स्थानों से जनता व युद्ध बंदियों को यहाँ लाकर बसाया। गाँवों के मालिक स्वयं राजा होते थे। राजकीय कृषि क्षेत्रों के अलावा निजी भूमि के मालिक भी थे। ये लोग राज्य को कई प्रकार के कर देते थे। सिंचित भूमि के किसानों से अधिक मात्रा में कर लिया जाता था। बलि या भूमि कर लगान का मुख्य भाग था। यह कुल उपज के छठे भाग के बराबर मात्रा की दर से वसूल किया जाता था। किसानों को अन्य कर भी देने पड़ते थे। जैसे पिंडकर, हिरण्यकर, भाग और भोग कर आदि ।

प्रश्न 39. कला के क्षेत्र में मौर्यों के योगदान का विस्तृत विवरण दें।

उत्तर- मौर्यकालीन कला के रूप में पाटलिपुत्र में बना महल, पत्थर की मूर्तियाँ, सारनाथ का अशोक स्तम्भ आदि कला के श्रेष्ठ नमूने रहे हैं। अशोक के सभी स्तम्भ गोलाकार और एक ही पत्थर को तराश कर बनाये गये। ये स्तम्भ रेतीले पत्थर से बने हुए हैं। इस प्रकार के स्तम्भ उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के पास चुनार नामक स्थान पर मिले हैं। मौर्यकालीन वास्तुशिल्प के नमूने चट्टानों में कटाई करके बने हुए हैं जो कि गया के पास बारबरा पहाड़ियों में बनी लोमस ऋषि गुफा में स्थित है। इस काल के अनेक पत्थर और मिट्टी के बने मूर्ति शिल्प के नमूने पॉलिश किये हुए हैं। दीदारगंज में पत्थर की नारी की मूर्ति यक्षिणी के रूप में मिली है। यह अपने हाथ में चोरी लिए हुए है। यह मूर्ति कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना मानी जाती है।

प्रश्न 40. जनपद काल में शहरों का विकास कहाँ पर हुआ था ? बारबरा

उत्तर :जनपद काल में शहरों का विकास मध्य गंगा की घाटी में हुआ था।

प्रश्न 41. 600 और 300 ई.पू. में कौन-कौन से शहरों का विकास हुआ था ?

उत्तर :600 और 300 ई.पू. में पाटलिपुत्र, राजगढिया, श्रावस्ती, वाराणसी, वैशाली, चम्पा, कौशाम्बी और उज्जयिनी आदि शहरों का विकास हुआ था।

प्रश्न 42. महावीर स्वामी का जन्म कब और कहाँ पर हुआ था ?

उत्तर : महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू. में बिहार में वैशाली के पास कुण्डग्राम नामक स्थान पर हुआ था।

प्रश्न 44. जैन धर्म के पंचमहाव्रत कौन-कौन से है ?

उत्तर : जैन धर्म के पंचमहाव्रत-(1) सत्य, (2) अहिंसा, (3) अस्तेय, (4) अपरिग्रह और (5) ब्रह्मचर्य आदि है।

प्रश्न 45. महात्मा बुद्ध का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर :महात्मा बुद्ध का जन्म 566 ई.पू. में लुम्बिनी नामक वन में हुआ था ।

प्रश्न 46. धर्मचक्र प्रवर्तन किसे कहते हैं ?

उत्तर :महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। इसी घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं ।

प्रश्न 47. महात्मा बुद्ध का निर्वाण कहाँ और कब हुआ था ?

उत्तर :महात्मा बुद्ध का निर्वाण 486 ई.पू. में कुशीनगर में हुआ था।

प्रश्न 48. बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर : बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय हीनयान और महायान हैं।

प्रश्न 49. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में राजनीतिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र क्या थे?

उत्तर : छठी शताब्दी ई.पू. में राजनीतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार थे।

प्रश्न 50. महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली राज्य कौन सा था ? उसकी राजधानी का नाम भी लिखिये।

उत्तर : महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली राज्य वज्जि था। इसकी राजधानी वैशाली थी।

प्रश्न 51. मगध का प्रथम शासक कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?

उत्तर :मगध का प्रथम शासक बिम्बसार था। उसने 544 ई.पू. से 492 ई. पू. तक शासन किया था।

प्रश्न 52. नन्दवंश का अन्तिम शासक कौन था ? उसका अन्त किसने किया था ?

उत्तर : नन्दवंश का अन्तिम शासक घनानन्द था। उसका अन्त चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से किया था।

प्रश्न 53. अर्थशास्त्र के लेखक का नाम क्या है ?

उत्तर : कौटिल्य ने अर्थशास्त्र लिखा था।

प्रश्न 54. मौर्य साम्राज्य का संस्थापक कौन था ?

उत्तर : चन्द्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य का संस्थापक था।

प्रश्न 55. अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कब किया था ?

उत्तर : इसका अशोक के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ? अशोक ने 261 ई.पू. के लगभग कालिंग पर आक्रमण ने किया था। इस युद्ध के रक्तपात को देखकर अशोक का हृदय द्रवीभूत हो गया था। उसने हमेशा के लिए युद्ध करना छोड़ दिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया था।

प्रश्न 56. मौर्य वंश का अन्त किसने किया था ? इसके बाद किसने शासन सत्ता प्राप्त की थी ?

उत्तर : मौर्य वंश के अन्तिम राजा वृहदथ को सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मारकर मौर्य वंश का अन्त कर दिया । पुष्यमित्र शुंग स्वयं शासक बन गया।

प्रश्न 57. मगध साम्राज्य के उत्थान में बिम्बसार का क्या योगदान रहा है ?

उत्तर- मगध साम्राज्य के उत्थान में सर्वप्रथम हर्यक वंश के प्रथम शासक बिम्बसार का सबसे अधिक योगदान रहा है। उसने मगध पर 544 ई. पू. से 492 ई.पू. तक शासन किया था । • बिम्बसार ने अपने साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिए तीन प्रकार की नीति अपनायी । जैसे- (1) वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना । (2) शक्तिशाली राजाओं से मित्रता करना । (3) पड़ौसी निर्बल राजाओं पर विजय पाना आदि । बिम्बसार ने सर्वप्रथम कौशल नरेश प्रसेनजित की बहिन कौशला देवी से विवाह किया। इसमें उसको काशी का प्रदेश दहेज में मिला। उसने दूसरा विवाह लिच्छवी वंश के प्रमुख चेटक की पुत्री छलना या चेतना से किया। तीसरा विवाह विदेह राजकुमारी वासवी से किया। चौथा विवाह उत्तरी पंजाब की राजकुमारी खेमा से किया । उसने अंग पर आक्रमण करके वहाँ के राजा ब्रह्मदत्त को हराया। उसने जनकल्याण के कार्य भी किये ।

 

प्रश्न 58. मौर्य साम्राज्य के पतन के मुख्य कारणों पर प्रकाश डालें।

उत्तर- मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए निम्न कारण उत्तरदायी रहे हैं

(1) केन्द्रीय शासन की दुर्बलता : मौर्य साम्राज्य विशाल हो जाने से अयोग्य राजा उसकी सही देखभाल नहीं कर पाये।

केन्द्रीय शासन कमजोर हो गया। इससे साम्राज्य पतन की ओर चला गया।

(2) अयोग्य उत्तराधिकार : अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य थे। वे सही ढंग से शासन नहीं चला पाये ।

(3) सैनिक दुर्बलता: अशोक ने युद्ध करना बन्द कर दिया था। इसलिए सेना पर ध्यान नहीं दिया गया। सेना निर्बल हो गई थी। ऐसी सेना विदेशी आक्रमणों का सामना नहीं कर सकी।

(4) रिक्त राजकोष: अशोक ने जनहित के कार्यों पर अधिक से अधिक धन खर्च कर दिया था। इसलिए उसके बाद के राजाओं को खाली खजाना मिला। वे धन के अभाव में कुछ भी नहीं कर पाये । .

प्रश्न 59. चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन का उल्लेख कीजिए। ।

उत्तर- चन्द्रगुप्त मौर्य ने देश में अच्छी शासन प्रणाली को लागू किया । उसने केन्द्रीय शासन को मजबूत बनाया। इस कार्य के लिए उसने शासन सम्बन्धी समस्त शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित की थी । वह निरंकुश व स्वेच्छाचारी शासक था लेकिन वह जनकल्याण को अधिक महत्त्व देता था। उसने शासन को प्रान्तों में भी विभक्त किया। प्रांतों के शासन के लिए प्रांतपति नामक अधिकारी नियुक्त किये । स्थानीय शासन को दो भागों में बाँटा। जैसे-(1) ग्राम का शासन, (2) नगर का शासन। उसने पुलिस व गुप्तचर व्यवस्था भी की। उसने एक मजबूत सेना का भी गठन किया।

 

प्रश्न 60. अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए क्या-क्या कार्य किये थे ?

उत्तर- अशोक ने कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। उसने बौद्ध धर्म को राजधर्म बनाया। उसने पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगति का आयोजन करवाया था। उसने बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए मठ, विहार और चैत्य बनवाये । उसने बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त अहिंसा का पालन किया । इस कार्य के लिए माँस भक्षण करना बन्द कर दिया। पशु वध बन्द करवा दिये। शिकार करना छोड़ दिया। अपने पुत्र महेन्द्र पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा।

 

Kkr Kishan Regar

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