वैदिक काल : वैदिक सभ्यता, ऋग्वैदिक काल, आर्य, अर्थ व्यवस्था, राज्य व्यवस्था, परिवर्तन, महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

सिन्धु सभ्यता के बाद में वैदिक सभ्यता का भारत में विकास हुआ। हड़प्पा के आस-पास के क्षेत्रों में आर्य या इंडो आर्य नामक नये लोगों ने भारत में प्रवेश किया। इनकी सभ्यता को ही वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है।

वैदिक साहित्य 

वैदिक साहित्य में वेद, उपनिषद्, आरण्यक और ब्राह्मण ग्रन्थ आदि आते हैं। वेद शब्द विद्धातु से बना है, जिसका अर्थ ज्ञान प्राप्त करना या जानना होता है। इनकी संख्या चार होती है।  
वैदिक काल : वैदिक सभ्यता, ऋग्वैदिक काल, आर्य, अर्थ व्यवस्था, राज्य व्यवस्था, परिवर्तन, महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

(अ) वेद 

यह शब्द विद् धातु से बना है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान प्राप्त करना होता है। वेदों को मंत्र, ग्रन्थावली के रूप में माना जाता है। वेद चार प्रकार के होते हैं। जैसे

(क) ऋग्वेद

 यह सबसे पुराना वेद है। इसमें 1028 मंत्र है तथा 10 मण्डल है। 

(ख) यजुर्वेद 

इसमें यज्ञ सम्बन्धी जानकारी दी गई है। 

(ग) सामवेद 

इसमें मंत्रों को गेय बनाया गया है। 

(घ) अथर्ववेद : 

इसमें जादू टोने, तंत्र-मंत्र आदि से सम्बन्धित जानकारी दी गई है।

(ब) उपनिषद: 

गुरू के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करना ही उपनिषद कहलाता है। इनको वेदांत भी कहते हैं।

(स) आरण्यक 

ये ऐसे ग्रन्थ है जिनकी रचना वनों में हुई है। :

(द) ब्राह्मण ग्रन्थ : 

इनमें मंत्रों की परिभाषाओं का विस्तार है। जिनमें बलिदान सम्बन्धी कर्मकाण्ड आते हैं। उपरोक्त ग्रंथों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैदिक साहित्य सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के दो चरणों की जानकारी देते हैं। जैसे पहले चरण में ऋग्वेद से जानकारी मिलती है जिसको ऋग्वैदिक काल कहा जाता है जबकि दूसरे चरण की जानकारी अन्य तीन वेदों से मिलती है जिसको उत्तर वैदिक का कहा जाता है| 

ऋग्वैदिक काल / प्रारम्भिक वैदिक काल

ऋग्वैदिक समाज 

ऋग्वैदिक कालीन समाज में सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई परिवार थी। परिवार पितृसत्तात्मक थे। समाज से एक विवाह वान पर वडा वर आम और बहुविवाह का प्रचलन था। बड़ी उम्र में विवाह होते थे। जन सबसे बड़ी इकाई थी। इस काल में सामंतवादी समाज थे । लोगों को व्यवसाय करने को छूट थी। आर्य गोरे रंग के होते थे जबकि अनायं काले रंग के होते थे। इस काल में क्षत्रिय, पुजारी और सामान्य व्यक्तियों के वर्ग थे। शूद्रों का जन्म इस काल के अन्त में हुआ था। इस काल में स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी। स्त्रियों का विवाह युवा अवस्था में होता था। उनको जीवन साथी के चुनाव की स्वतंत्रता प्राप्त थी। सभा और समिति के कार्यों में स्त्रियाँ भाग ले सकती थी।

जनजातीय और पितृसत्तात्मक समाज

शारीरिक सुरक्षा और सुख समृद्धि की सामग्री प्राप्त करने के लिए देवताओं के सामने प्रार्थना, पूजा अर्चना ऋग्वैदिक कालीन लोग प्राथमिकता से करते थे। ऋग्वैदिक कालीन देवता प्राकृतिक शक्तियों के विभिन्न रूप थे। जैसे वर्षा, तूफान, सूर्य आदि । इन देवताओं के लक्षणों और विशेषताओं से भी यही स्पष्ट होता है कि समाज का स्वरूप जनजातीय और पितृसत्तात्मक था क्योंकि उनके ग्रन्थों में किसी देवी के अस्तित्व की जानकारी नहीं मिलती है। इन्द्र, अग्नि, वरुण, मित्र, द्यौ, पुष्य, यम, सोम आदि सभी देवता पुरुष देवता के रूप में थे। इसकी तुलना में हमारे पास कुछ ही देवियाँ है जैसे उषा, सरस्वती, पृथ्वी आदि । इनको धर्म की व्याख्या में दूसरा स्थान दिया गया है। विभिन्न देवताओं के कार्यों से समाज में उनकी आवश्यकता की जानकारी मिलती है। अतः ऋग्वैदिक कालीन लोग इन्द्र को युद्ध के देवता के रूप में पूजते थे। ऋग्वेद में कई स्थानों पर इन्द्र देव की जानकारी प्राप्त होती है। उसके हाथ में वज्र होता है तथा इन्हें मौसम के देवता के रूप में भी माना जाता है। यह वर्षा का देवता माना जाता है। पवन देवता मारुत, युद्धों में इन्द्र की उसी तरह से सहायता करते थे। जैसे जनजाति के लोग जनजातीय युद्धों में अपने नायक की सहायता करते थे ।

ऋग्वैदिक कालीन राज्य व्यवस्था 

आर्यों की मुख्य इकाई जन थी। जन का राजनीतिक नेता राजन होता था। यह जनता और पशुधन की रक्षा करने का कार्य करता था। राजन के कार्यों में सहायता करने के लिए सभा, समिति, विदिया, गण और परिषद् आदि जनजातीय संस्थाएँ होती थीं। इनमें सभा और समिति अधिक महत्त्वपूर्ण होती थीं। ये जीवन से सम्बन्धित सभी पक्षों पर विचार विमर्श करती थीं। ये संस्थाएँ प्रमुख पदाधिकारियों पर नियन्त्रण भी करती थी। महिलाओं को भी सभा व समिति में भाग लेने का अधिकार था। राजन का पद वंशानुगत नहीं होता था। साधारण उनका चुनाव जनजाति के द्वारा किया जाता था। कई मामल में पुरोहित मुखिया को सलाह देता था। सेनानी कुलापा, ग्रामणी आदि पदाधिकारी भी होते थे। मुखिया को जनता जो भेंट देती थी । उसको बलि कहते थे। यह साधारण जनजातीय नागरिकों: द्वारा विशेष अवसरों पर दिया जाता था। इस प्रकार का ध स्वैच्छिक योगदान के रूप में होता था।

ऋग्वैदिक कालीन धार्मिक जीवन

ऋग्वैदिक धार्मिक जीवन इस काल के लोग सुख समृद्धि और शारीरिक सुरक्षा की कामना के लिए देवताओं की प्रार्थना और पूजा अर्चना करते थे। इस काल के देवता प्राकृतिक शक्तियों के विभिन्न रूप होते थे जैसे वर्षा, तूफान, सूर्य आदि । इन्द्र, अग्नि, वरुण, मित्र, द्यौ, पुष्य, यम, सोम आदि देवता प्रमुख होते थे। उषा, सरस्वती और पृथ्वी आदि देवियों भी थीं। इस काल में लोग इन्द्र को युद्ध के देवता के रूप में पूजते थे। इनको वर्षा लाने के लिए भी पूजा जाता था। अग्नि देव को धर का देवता मानते थे । उसको देवताओं को मनुष्यों के बीच की कड़ी के रूप में माना जाता था। सोम पौधों और जड़ी बूटियों से सम्बन्धित था। सोम एक ऐसा पौधा था जिससे मादक रस निकलता था। इसे सोम रस कहते थे । बलि के समय सोमरस का प्रयोग किया जाता था। वरुण एक महत्त्वपूर्ण देवता होता था। यह ब्रह्माण्ड का व्यवस्थापक माना जाता था। इसको रीत कहते थे। पुष्प सड़कों, चरखा हों, और पालतू पशुओं का देवता होता थ। इन सभी देवताओं की यज्ञों या बलिदान के समय पूजा की जाती थी । धार्मिक कर्मकाण्ड पुजारी करता था बलि के समय जिस देवता की प्रार्थना की जाती थी। वह यु में विजय, संतानोत्पत्ति, पशुधन में वृद्धि और लम्बी आयु क वरदान देते थे। इस अवसर पर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा के रूप में बहुत बड़ी संख्या में भेंट मिलती थ। लेकिन इस काल के लोगों ने किसी देवी-देवता का मन्दिर नहीं बनवाया था तथा किसी प्रकार की मूर्ति पूजा भी नहीं की थी।

प्रारम्भिक वैदिक अर्थव्यवस्था 

ऋग्वैदिक काल को प्रारम्भिक वैदिक काल भी कहते हैं। इस काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। वे गाय, भैंस, भेड़, बकरियाँ और घोड़े आदि पशु पालते थे। उस काल में गायों को सम्पूर्ण इच्छाओं को पूरा करने वाली कामदा माना जाता था। उस समय पशुओं की संख्या में वृद्धि होने की आशा में प्रार्थनाएँ की जाती थी। उस समय के लोग खेती भी करते थे। वे शिकार, बढ़ईगिरी, रंगाई, कपड़ों की बुनाई, रथ बनाना और धातुओं को गला कर ढलाई का काम भी करते थे। गायों के माध्यम से वस्तु विनिमय होता था।


प्रारम्भिक वैदिक राज्य व्यवस्था 

इस काल में मुख्य सामाजिक इकाई जन थी। इसका प्रमुख नेता राजन कहलाता था। यह जन व पशुधन की रक्षा करता था। इसके कार्यों में मदद करने वाली संस्थाएँ सभा, समिति, विदिथा, गण और परिषद आदि थीं। इनमें सभा और समिति मुख्य थीं। सभा और समिति के प्रमुख को जनजाति चुनती थी। प्रमुख को परामर्श देने का कार्य पुरोहित करता था। सेनानी कुलापा, ग्रामणी आदि कर्मचारी भी मुखिया को सहायता देते थे।

प्रारम्भिक वैदिक काल के लोगों के भौगोलिक स्थान 

प्राचीन कालीन आर्य सप्त सिन्धु नामक स्थान पर निवास करते थे। सप्त सिन्धु का अर्थ सात नदियों वाला क्षेत्र होता है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से लेकर यमुना नदी तक फैला हुआ है। सात नदियों में सिन्धु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज और सरस्वती आदि नदियाँ शामिल हैं। यहाँ से आर्य धीरे-धीरे पूर्व दिशा की तरफ बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश और बिहार में पहुँच गये।

प्रारम्भिक वैदिक काल में जनप्रिय सभाओं के कार्य

प्रारम्भिक वैदिक काल में सभा और समितियाँ प्रमुख राजनीतिक संस्थाएँ थीं। सभाओं के द्वारा जीवन से सम्बन्धित सभी कार्यों पर विचार विमर्श किया जाता था। ये युद्ध, युद्धों से प्राप्त आय का बँटवारा करना, न्याय करना और धार्मिक कार्य करना आदि कार्यों को पूरा करती थी । इन सभाओं के द्वारा राजनीतिक पदाधिकारियों पर भी नियन्त्रण लगाया जाता था। इस प्रकार से जनप्रिय सभाओं का आर्यों के राजनीतिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान था।

प्रारम्भिक वैदिक सभ्यता:

 ऋग्वैदिक काल में समाज की मुख्य इकाई परिवार थी। परिवार पितृसत्तात्मक थे । एक विवाह और बहुपत्नी विवाह दोनों ही प्रचलित थे। परिवार के विशाल समूह को विस या वंश कहते थे । एक से अधिक विस या वंशों के समूह को जन या जाति कहते थे । जन सबसे बड़ी सामाजिक इकाई थी। इस काल में जातिगत व्यवसाय नहीं थे। लेकिन इस काल में रंग या वर्ण के आधार पर अन्तर था । इस काल में क्षत्रिय, पुजारी और जनसाधारण आदि तीन वर्ग थे। शुद्रों का जन्म बाद में हुआ। स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। बाल विवाह नहीं होते थे।



प्रारम्भिक वैदिक धर्म: 

इस काल में देवताओं की पूजा, प्रार्थना प्रारम्भ हो गई थी। इस काल के देवता प्राकृतिक शक्तियों के विभिन्न रूप में थे। जैसे-वर्षा, तूफान, सूर्य आदि। इस काल में इन्द्र, अग्नि, वरुण, मित्र, द्यौ, पुष्य, यम, सोम आदि प्रमुख देवता थे। उस समय उषा, सरस्वती, पृथ्वी आदि देवियाँ थीं। यज्ञ, बलि, हवनआदि कर्मकाण्ड प्रचलित थे।

उत्तर वैदिक काल

उत्तर वैदिक काल में आये परिवर्तन : 

इस काल में मुखिया का पद वंशानुगत बन गया था। राजा के पद को दैवीय माना जाता था। सभा व समिति का प्रभाव कम हो गया। मुखिया की शक्ति बढ़ गई थी। अधिकारियों की नियुक्ति होने लग गई थी। सेना का राजनीतिक व्यवस्था में महत्त्व बढ़ गया था। इस काल में बलि, शुल्क और भाग आदि कर लगाये जाते थे। इस काल मे मुखिया क्षत्रिय होता था।

इस काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि बन गया था। उन्होंने सभी प्रकार का अनाज पैदा करना प्रारम्भ कर दिया था। वे हल और बैलों, भैंसों से जमीन की जुताई, बुवाई करते थे। इसी काल में आर्यों ने लोहे का प्रयोग करके कई प्रकार के औजार बनाना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाना प्रारम्भ कर दिया था।

उत्तर वैदिक काल के दौरान आर्यों की अर्थव्यवस्था की पद्धतियों में आये परिवर्तन:

उत्तर वैदिक में खेती करना आर्यों का मुख्य व्यवसाय बन गया था। हल चलाने के लिए छह से आठ तक बैल जोते जाते थे। भैंसे को भी खेती में काम में लिया जाता था। इन्द्र देवता को इस काल में कृषि का देवता माना जाता था। इन्द्रदेवता को इस काल में कृषि का देवता माना जाता था। इस काल में आर्य जौ, गेहूँ, चावल, दालें, मसूर, ज्वार, बाजरा, गन्ना आदि पैदा करते थे। चावल और तिल का प्रयोग धार्मिक कर्मकाण्ड में किया जाता था। इस काल में लोहे का प्रयोग भी प्रारम्भ हो गया था। खेती करने के लिए लोहे के हल का प्रयोग किया जाता था। इस काल में मिट्टी के बर्तन भी बनाये जाते थे। उन पर चित्रकारी की जाती थी। हस्तिनापुर, कौशाम्बी जैसे बड़े-बड़े नगरों का जन्म हो चुका था। श्रेष्ठि राजकुमार, पादरी और कारीगर आदि लोग किसानों पर ही निर्भर रहते थे।  

लोहे  का प्रयोग

उत्तर वैदिक काल में आर्य सभ्यता के विस्तार का मुख्य कारण 1000 ई. पू. के लगभग लोहे का प्रयोग रहा है। घने वर्षा वाले वनों को अच्छे ढंग से काटने में लोहे के औजारों ने मदद की विशेष तौर पर जलावन के बाद बचे हुए पेड़पौधों के बड़े-बड़े ढूंठों को जल्दी काटकर जंगली जमीन को खेती की जमीन में बदलने का कार्य लोहे के प्रयोग से आसान हो गया। लोहे के हल का प्रयोग करने से गहरी मिट्टी की जुताई करके भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायता मिली।

उत्तर वैदिक काल में सामाजिक परिवर्तन 

इस काल में परिवार का आकार बहुत बड़ा हो गया। ऐसे परिवारों को संयुक्त परिवार कहा जाता था। गोत्र भी इसी कारत में प्रचलित हुए। बहुपति विवाह का प्रचलन था। बहुपत्नी विवाह भी प्रचलित थे। लेकिन एक विवाह को ही अच्छा मानते थे। स्त्रियां पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लग गये। वर्ण व्यवस्था का प्रचलन हो गया। समाज में चार वर्ण बन गये जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इसी काल में आश्रम व्यवस्था का भी जन्म हो गया। जिसमें चार आश्रम बने। जैसे ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यास आश्रम आदि।

उत्तर वैदिक काल में महिलाओं पर प्रतिबन्ध 

उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों पर जुएँ और मद्यपान पर रोक लगा दी थी। स्त्रियों को विवाह के बाद पति के घर में ही रहना पड़ता था। सार्वजनिक सभाओं में महिलाओं को भाग नहीं लेने दिया जाता था। पुत्री को सभी दुःखों की जड़ माना जाता था।

उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मण का महत्त्व

उत्तर वैदिक काल में यज्ञ अधिक किए जाते थे। यज्ञों को ब्राह्मण ही सम्पन्न करवाता था। इसके बदले में ब्राह्मणों को बहुत बड़ी दक्षिणा मिलती थी । ब्राह्मण ही सभी प्रकार के धार्मिक कर्मकाण्डों को पूरा करवाता था। इसलिए ब्राह्मण का महत्त्व अधिक बढ़ गया था।

वर्णाश्रम धर्म

आर्यों ने समाज को चार आश्रमों में बांट दिया था। जिसमें ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यास आश्रम आदि थे। वर्णों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि प्रमुख थे। ब्राह्मण पूजा पाठ, अध्ययन अध्यापन का कार्य करता था। क्षत्रिय युद्ध और शासन सम्बन्धी कार्य करते थे। वैश्य उत्पादन और व्यापार का कार्य करते थे। शूद्र तीनों वर्गों की सेवा करता था। आश्रम भी चार थे। 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य आश्रम होता था। जिसमें ज्ञान प्राप्त करना प्रमुख कार्य था। 50 वर्ष तक गृहस्थाश्रम था। इसमें विवाह, संतान, उत्पन्न करना आदि कार्य किए जाते थे। 75 वर्श तक वानप्रस्थाश्रम था। जिसमें वनों में तपस्या करने का कार्य किया जाता था। 75 से 100 वर्ष की अवधि संन्यास आश्रम की होती थी। जिसमें घर छोड़कर स्थान-स्थान पर घूमकर उपदेश देने का कार्य किया जाता था। 

आर्य

आर्यों को 19वीं सदी में एक वंश माना जाता था, लेकिन वर्तमान में इनको इस प्रकार का भाषायी समूह के रूप में माना जाता है जो कि इंडो यूरोपीयन भाषा बोलते थे तथा उसी भाषा से आगे चलकर संस्कृत, लैटिन और ग्रीक भाषाओं का जन्म हुआ है। ऐसा माना जाता है कि आर्य मूल रूप से रूस से मध्य एशिया के बीच फैले हुए घास के मैदानों में रहते थे। यहीं से वे अन्य स्थानों पर पहुँच गये।  

आर्यों का स्थानान्तरण 

आर्य दक्षिण रूस से मध्य एशिया के बीच घास के मैदानों में रहते थे। यहीं से आय का एक समूह भारत के उत्तर पश्चिम में आया था। इस समूह को इंडो-आर्यन या आर्यों के नाम से पुकारा गया। पुरातात्विक प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि स्थानान्तरित आर्य दक्षिणी साइबेरिया के एन्द्रोनोवा से आये थे। यहाँ से ये लोग हिन्दु कुश के उत्तर की ओर बढ़े तथा वहीं से उन्होंने भारत में प्रवेश किया था लेकिन कुछ विद्वान इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि आर्य विदेशी थे और वे बाहर से भारत में आये थे।

आर्यों की सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ

आर्यों की सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं
(1) आर्य प्रकाण्ड विद्वान थे । उनको विभिन्न ग्रन्थों का, ज्ञान था। वे कई प्रकार की भाषाओं का ज्ञान रखते थे। इस प्रकार से उन्होंने भाषा व साहित्य के क्षेत्र में प्रगति कर ली थी।

(2) आर्य कृषि, पशुपालन, उद्योग धंधे और व्यापार करके अपना जीवनयापन करते थे। उन्होंने गाय को अधिक महत्त्व दिया था। वे गायों को सभी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने वाली कामदा समझते थे।

(3) आर्य अपने आपको श्रेष्ठ जाति का मानते थे। उन्होंने कर्म के आधार पर समाज को चार वर्णों में बांट दिया था। जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि। इसी प्रकार से उन्होंने मनुष्य की आयु को 100 वर्ष की मानकर चार आश्रम प्रचलित किए थे। जैसे- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम आदि ।

(4) आर्यों ने ही यज्ञ, हवन, पशु बलि आदि धार्मिक, कर्मकाण्ड प्रारम्भ किये । एकेश्वरवाद और बहुदेववाद जैसी धारणाओं को भी उन्होंने ही जन्म दिया था।

(5) आर्यों ने ही व्यवस्थित प्रशासन व सैन्य प्रबंध को जन्म दिया।

व्यवसाय

पशुपालक

वैदिक कालीन आर्य पशुपालक थे। यह उनका मुख्य  था। पशुओं से उनको दूध, माँस और चमड़ा प्राप्त होता था। इसके लिए वे गाय, भैंस, भेड़, बकरियाँ, ताजा घोड़े पालते थे। ऋग्वेद में इनके प्रमाण प्राप्त हुए हैं। गौशब्द से कई शब्दों का जन्म हुआ। जिसका अर्थ गाय होता है। धनवान व्यक्ति गोमत कहते थे तथा बेटी को दुहित्री कहते थे जो गाय को दूध दुहती थी । गवेषणा शब्द का अर्थ गायों की खोज करना होता है लेकिन इसका अर्थ लड़ाई भी होता है क्योंकि गायों को लेकर लड़ाई भी होती थी। गाय को मनुष्य की सम्पूर्ण इच्छाओं को पूरा करने वाला पशु माना जाता था। इसलिए गाय का महत्त्व अधिक था।  

कृषि

वैदिक काल में कृषि का भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। खेतीबाड़ी से सम्बन्धित प्रमाण अधिक संख्या में नहीं मिले हैं। कुछ संदर्भों से यह पता चलता है कि आर्यों को कृषि का ज्ञान था तथा अपना भोजन प्राप्त करने के लिए वे खेती करते थे। वे यव पैदा करते थे। इनको आज जो या बार्ले कहते हैं। इसका अर्थ खाद्यात्रों की जाति की फसल के लिए प्रयुक्त होता था।
उत्तर वैदिक काल में कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय बन गया। खेतीबाड़ी का कार्य शुरू करने के लिए लोगों ने धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिए थे। इन्द्र देवता को कृषि का देवता माना जाता था। कृषि में जौ, गेहूँ, चावल, दाल, मसूर, ज्वार, बाजरा, गन्ना आदि पैदा किया जाता था। पका हुआ चावल दान दक्षिणा की चीजों में शामिल था। तिल का धार्मिक अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता था।

वैदिक आर्यों का भौगोलिक विस्तार क्षेत्र : 

प्राचीन आर्य सप्त सिन्धु नामक क्षेत्र में निवास करते थे। यह क्षेत्र सात नदियों वाला क्षेत्र था। यह दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से लेकर यमुना नदी तक फैला हुआ था। इसी क्षेत्र में आर्यों ने निवास स्थान बनाया। अपना पशुपालन का कार्य किया यहाँ से ये धीरे-धीरे पूर्व दिशा की तरफ बढ़ते हुए वे उत्तर प्रदेश और बिहार में पहुँच गये। यहीं पर उन्होंने लम्बे समय तक निवास किया।


वैदिक काल : महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. 'वेद" शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: पवित्र ज्ञान

प्रश्न 2. वैदिक ग्रन्थों में से कौन-से ग्रन्थों को मंत्रों की श्रेणी में रखा गया है? उनका उल्लेख करें ?
उत्तर: ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद

प्रश्न 3. 'श्रुति' कहे जाने वाले साहित्य की श्रेणी में किस प्रकार के ग्रन्थ हैं ? उनका उल्लेख करें ? 
उत्तर: आरण्यक और उपनिषद

प्रश्न 4. 'ब्राह्ममण' श्रेणी के ग्रन्थों की विषय वस्तु का विस्तृत दें ?
उत्तर: मंत्रों और बलि देने संबंधी धार्मिक अनुष्ठानों की टीका (परिभाषा) संबंधी गद्य-ग्रन्थावली

प्रश्न 5. 'वेदान्त' शब्द को परिभाषित करें ? 
उत्तर : दार्शनिक विचार-विमर्श

प्रश्न 6. आप कैसे जानते हैं कि संस्कृत, लेटिन, ग्रीक, हित्ती (हैटाइट) और कैस्साइट भाषाऐं एक ही भाषायी समूह से संबंधित हैं ?
उत्तर : इन भाषाओं में, समान ध्वनि और अर्थ वाले शब्द हैं 

प्रश्न 7. आर्यों के स्थानांतरण के पुरातात्त्विक साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर : दक्षिणी साइबेरिया में स्थित एन्द्रोनोवो सभ्यता ।

प्रश्न 8. वे कौन-से स्थान हैं, जिन्हें आर्य सभ्यता की विशेषताओं वाले क्षेत्रों रूप में पहचाना गया, हैं?
उत्तर : बैक्ट्रियामार्जियाना

प्रश्न 9. आर्य सभ्यता के प्रमुख स्थलों का उल्लेख करें ? 
उत्तर : घोड़ों, पहियों, आग की भट्ठियाँ, शवदाह के साक्ष्य । 

प्रश्न 10. सप्तसिंधु' में शामिल सात नदियों के नाम लिखें ?  
उत्तर: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज, सरस्वती

प्रश्न 11. उत्तर वैदिक काल में आर्य किस क्षेत्र के लोगों के संपर्क में आए ?11
उत्तर : उत्तर प्रदेश (कौशल) और उत्तरी बिहार (विदेह)


प्रश्न 12. उत्तर प्राचीन वैदिक आर्यों के व्यवसाय का वर्णन करें ?
उत्तर: चरवाहे

प्रश्न 13. प्राचीन आर्यों में कौन-सा आर्थिक गतिविधियां प्रचलित थी ? एक सूची बनाएँ ।
उत्तर : शिकार, बढ़ईगिरी, प्रशिक्षण, कपड़ा बुनाई, जुआ (द्यूतक्रीड़ा), रथ निर्माण और धातुओं को गला कर ढलाई

प्रश्न 14. प्राचीन वैदिक काल के दौरान परस्पर विनिमय प्रणाली का वर्णन करें ?
उत्तर : गायों के माध्यम से परस्पर वस्तु विनिमय

प्रश्न 15. उत्तर वैदिक काल के दौरान कौन-कौन से प्रमुख आर्थिक कार्यकलाप थे ?
उत्तर : कृषि

प्रश्न 16. 'कृषि देवता' किसे कहा जाता था । 
उत्तर :इन्द्र देवता 

प्रश्न 17 'तिल' को धार्मिक अनुष्ठानों में अत्यधिक महत्वपूर्ण क्यों समझा जाता है ?
उत्तर : यह पहला वनस्पति तेल था, जिसका बड़े पैमाने पर प्रयोग होता था।

प्रश्न 18 वैदिक काल में लोहे के बने उपकरणों के प्रयोग से कृषि में क्या सहायता मिली ?
उत्तर : घने जंगलों की कटाई के लिए, लोहे के हल से मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए इसकी जुताई (ऊपरनीचे) की जा सकती थी।

प्रश्न 19. चित्रित सुरमई बर्तन प्रयोग करने वाले स्थलों के आकार बढ़ने के पीछे क्या कारण थे ?
उत्तर : कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था के विस्तार और जनसंख्या में लगातार वृद्धि के कारण ।

प्रश्न 20. प्रारंभिक वैदिक काल में होने वाले विवाहों के बारे में विवरण दें ?
उत्तर : एक-पत्नी धर्म और बहु-पत्नी धर्म

प्रश्न 21.क्या प्रारंभिक वैदिककालीन समाज समतावादी प्रवृत्ति का था ? अपने उत्तर को कारण सहित प्रमाणित करें ?
उत्तर : हाँ, कोई जाति विभाजन नहीं, व्यवसाय जन्म के आधार पर नहीं थे और कोई भी व्यवसाय वर्जित नहीं

प्रश्न 22. प्रारंभिक वैदिक समाज के वर्गीकरण का आधार क्या था ?
उत्तर :वर्ण या रंग के आधार पर 

प्रश्न 23.प्रारंभिक वैदिक काल में असमानताएँ किस प्रकार से आई ? 
उत्तर : मुखियाओं और पुजारियों के हाथों में, युद्ध में प्राप्त माल ( पुरस्कारों) का ज्यादा भाग हाथ लगना।

प्रश्न -24.उत्तर वैदिक कालीन परिवार की प्रकृति क्या थी ?
उत्तर : संयुक्त परिवार

प्रश्न 25. 'गोत्र' शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर : एक ही पूर्वज की संतान, एक समान गोत्र के सदस्यों (व्यक्तियों) में विवाह संबंध वर्जित

प्रश्न 26 किन शब्दों से संकेत मिलता है कि शूदों को अशक्त बनाने का प्रारंभ हो रहा है?
उत्तर : उपनयन संस्कार के अधिकारी नहीं थे (धार्मिक बुराई)

प्रश्न 27. ऋग्वैदिक काल के 'इन्द्र देवता' की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें ?
उत्तर : मौसम का देवता जिसके हाथ में वज्र है। वर्षा का देवता ।

प्रश्न 28. जनजातियों के प्रमुख 'यज्ञों' का आयोजन क्यों करते थे ?
उत्तर :देवताओं के आह्वान और आराधना के लिए 

प्रश्न 29. ऋग्वैदिक लोगों के लिए पुष्य देव का क्या महत्व था ?
उत्तर क्योंकि वह मार्गों, चरवाहों और पशुओं का देवता था 

प्रश्न 30. आग के देवता 'अग्नि देव' का क्या मुख्य कार्य था ?
उत्तर : देवों और मानवों के मध्य कड़ी के रूप में था। 

प्रश्न 31. उत्तर वैदिक काल में बड़ी संख्या में यज्ञों में वृद्धि के क्या कारण थे ?
उत्तर : ब्राह्मण वर्ण के लोगों के बढ़ते महत्त्व और अपनी श्रेष्ठता रखने के प्रयासों के कारण। 

प्रश्न 32. यज्ञ आयोजित कराने के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर :लोगों के ऊपर मुखियाओं द्वारा अपना प्राधिकार स्थापित करने राजनीति में प्रादेशिक वर्चस्त्र पुनः स्थापित करने के लिए। 

प्रश्न 33. यज्ञों के महत्व के बारे में विस्तार से लिखें ? 
उत्तर : दान-दक्षिणा के रूप में धन की अत्यधिक मात्रा, . ब्राह्मणों को मिलती थी ।

प्रश्न 34. लोगों के यज्ञ करवाने का विरोध करना क्यों शुरू कर दिया था ?
उत्तर : इससे उनके आर्थिक जीवन पर प्रभाव पड़ रहा था।

प्रश्न 35.'सभा' और 'समिति' के कार्यों का वर्णन करें?  
उत्तर : जीवन के सभी पक्षों पर विचार के लिए जैसे युद्ध में जीते गए पुरस्कारों के वितरण न्यायिक और धार्मिक कर्मकाण्ड ।

प्रश्न 36. 'राजन' का मुख्य काम क्या था ?
उत्तर : जन और पशुधन की शत्रुओं से रक्षा के लिए। 

प्रश्न 37. प्रारंभिक वैदिक काल में 'बलि' की क्या प्रवृत्ति थी ?
उत्तर : साधारण जनजातीय लोगो द्वारा विशेष अवसरों पर दिया जाने वाला स्वैच्छिक योगदान ।

प्रश्न 38. विविध मामलों में मुखिया के मुख्य कार्यकर्ताओ की सूची बनाऐं ?
उत्तर :पुरोहित, सेनानी, कुलाप, ग्रामणी

प्रश्न 39. वैदिक काल में मुखिया के पद की प्रकृति का विस्तृत वर्णन करें ?
उत्तर : यह वंशानुगत बन गया था।

प्रश्न 40. वैदिक काल के दौरान जनप्रिय सभाओं की शक्तियों में कमी क्यों आ गई थी ?
उत्तर :क्योंकि मुखिया अधिक शक्तिशाली बन गए थे, प्रशासकीय कामों में मुखिया की सहायता के लिए बनाए गए अधिकारियों ने बलपूर्वक 'जनप्रिय सभाओं' के कार्यों को हथिया लिया था 

प्रश्न 41. राज्याभिषेक संस्कार के क्या-क्या कार्य थे ? 
उत्तर : मुखिया के प्राधिकार स्थापित करने के लिए।

प्रश्न 42. वेद कितने होते हैं ? उनके नाम लिखिये। 
उत्तर : वेद चार होते हैं। जैसे- (1) ऋग्वेद, (2) यजुर्वेद, (3) सामवेद, (4) अथर्ववेद ।

प्रश्न 43. आरण्यक किसे कहा जाता है ?
उत्तर: जिन ग्रन्थों की रचना वनों में हुई है, उन्हें ही आरण्यक कहा जाता है।

प्रश्न 44. उपनिषद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: गुरू के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करने को ही उपनिषद कहते हैं।

प्रश्न 45. ऋग्वैदिक काल का कालखण्ड बताइये ।
उत्तर : 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के कालखण्ड को ऋग्वैदिक काल कहा जाता है।

प्रश्न 46. उत्तर वैदिक काल का कालखण्ड लिखिये।  
उत्तर :उत्तर वैदिक काल का कालखण्ड 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. का माना जाता है।

प्रश्न 47. वर्तमान काल में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने किसे विश्व मानव धरोहर का साहित्य माना है ?
उत्तर : वर्तमान काल में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने ऋग्वेद को विश्व मानव धरोहर के साहित्य के रूप में शामिल किया है।

प्रश्न  48. प्रारम्भ में आर्य कौनसी भाषा बोलते थे ?
प्रश्न उत्तर:प्रारम्भ में आर्य इंडो यूरोपियन भाषा बोलते थे। 

प्रश्न 49. प्राचीन आर्य कहाँ रहते थे ? 
उत्तर : प्राचीन आर्य सप्त सिन्धु नामक क्षेत्र में निवास करते थे ।

प्रश्न 50. प्राचीन वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था?  
उत्तर :प्राचीन वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था।

प्रश्न 51 गोमत किसे कहते थे ?
उत्तर : धनी व्यक्ति को गोमत कहा जाता था। 

प्रश्न 52. गवेषणा शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर : गवेषणा का शाब्दिक अर्थ गायों की खोज करना होता है लेकिन इसका दूसरा अर्थ लड़ाई भी होता है।  

प्रश्न 53.प्रारम्भिक वैदिक आर्य कौन-कौन से व्यवसाय करते थे ?
उत्तर : प्रारम्भिक वैदिक आर्य पशुपालन, कृषि, शिकार, बढईगिरी, रंगाई, कपड़ों की बुनाई, रथ बनाना तथा धातुओं को गलाकर ढलाई करना आदि व्यवसाय करते थे ।

प्रश्न  54 उत्तर वैदिक काल में भैंसे का क्या महत्त्व था? 
उत्तर: उत्तर वैदिक काल में भैंसों से खेती की जाती थी। दलदली भूमि पर हल चलाने में भैसा बहुत ही उपयोगी था।

प्रश्न 55 प्रारम्भिक वैदिक समाज में परिवार किस प्रकार के थे ?
उत्तर: प्रारम्भिक वैदिक समाज में परिवार पितृसत्तात्मक थे। 

प्रश्न 56. प्रारम्भिक वैदिक काल में जन किसे कहा जाता था ?
उत्तर:: प्रारम्भिक वैदिक समाज में एक से अधिक वंशों के समूह को जन कहा जाता था।

प्रश्न 57. प्रारम्भिक वैदिक समाज में आर्यों और अनार्यों में कैसी भिन्नता थी ?
उत्तर: प्रारम्भिक वैदिक समाज में आर्यों और अनार्यों के बीच वर्ण या रंग की भित्रता थी जिसमें आर्य गौर रंग के होते थे जबकि अनार्य काले रंग के होते थे। तर :

प्रश्न 58. प्रारम्भिक वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:: प्रारम्भिक वैदिक समाज में महिलाओं का सम्मानजनक स्थान था। उनको सामाजिक व राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 59, उत्तर वैदिक काल में किस प्रकार के परिवार होते थे ?
उत्तर:: उत्तर वैदिक काल में संयुक्त परिवार होते थे। इस प्रकार के परिवार में तीन या चार पीढ़ी के लोग एक साथ रहते थे।

प्रश्न 60. उत्तर वैदिक काल में कौन-कौन से आश्रम प्रचलित थे ?
उत्तर: उत्तर वैदिक काल में ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम थे।

प्रश्न  61. सोम क्या था ? इसका उपयोग लिखिये ।
उत्तर:: सोम एक पौधा था जिससे मादक रस निकाला जाता था। बलि दिये जाने के समय सोमरस पिया जाता था। 

प्रश्न 62. राजन के कार्यों में सहायता के लिए कौन-कौन सी संस्थाएँ होती थी ?
उत्तर: राजन को सहयोग देने के लिए सभा, समिति, विडिय गण और परिषद आदि होती थी।
Kkr Kishan Regar

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