मैसलों के मानवतावादी सिद्धान्त : Humanistic Principles of Micelles

मैसलों द्वारा प्रतिपादित आवश्यकताओं के पद सोपान
मैसलों का मानवतावादी सिद्धान्त


    मैसलों ने अपने इस मानवतावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन व्यक्तित्व के संदर्भ में किया है। पैसलों ने व्यवहारवादियों और मनोविश्लेषणवादियों के इस विचार का विरोध किया कि मानव का व्यवहार आन्तरिक एवं बाह्य उद्दीपकों पर आधारित है।

मैसलों के मानवतावादी सिद्धान्त
मैसलों के मानवतावादी सिद्धान्त 


उन्होंने मानव के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया का काफी गहनता से अध्ययन किया और इस निर्णय पर पहुँचे कि व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियाँ ही उसके लिए अभिप्रेरकों का कार्य करती हैं। उन्होंने इस अभिप्रेरकों को मानव की आवश्यकताओं के रूप में प्रस्तुत किया है। मैसलों के अनुसार व्यक्ति इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संबंधित सामग्री एवं साधन जुटाता है, अनुकूल प्रतिकूल वस्तु, तथ्य, क्रिया एवं परिस्थिति आदि की व्याख्या करता है और इन सभी को व्यवस्थित रूप में प्रयोग करता है। इस सिद्धान्त में अभिप्रेरणा सबसे महत्वपूर्ण पहलू है इसलिए इसे 'अभिप्रेरणा सिद्धान्त (Motivation Theory) भी कहते हैं। मैसलों ने आवश्यकताओं को वर्गीकृत कर इन्हें एक उत्तरोतर क्रम दिया है जिसे आरोही पद सोपान (Ascend ing Hierarchy) कहा जाता है। इस पद सोपान को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है। 


(1)शारीरिक आवश्यकताएँ:-

    मैसलों के अनुसार शारीरिक आवश्यकताएँ व्यक्ति की मूलभूत एवं सर्वप्रमुख आवश्यकताएँ होती है। इनमें भोजन, पानी, आराम एवं यौन संबंधी आवश्यकताएँ मुख्य हैं। व्यक्ति इन्हें पूरी करने में ही कभी-कभी अपना जीवन व्यतीत कर देता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति किए बिना वह प्रायः इससे ऊपके स्तर की आवश्यकताओं की प्राप्ति की बात नहीं सोच पाता। ये आवश्यकताएँ उसके लिए आवश्यक एवं प्रबल होती है। इनकी पूर्ति के लिए वह प्रयास करता है। ये जैविक आवश्यकताएँ (Biological Needs) व्यक्ति के लिए इतनी प्रबल होती है कि इनके कारण यह कभी-कभी सामाजिक मूल्यों एवं मानकों (Norms) की भी अवहेलना कर देता है। 


(2) सुरक्षा की आवश्यकताएँ:-

    मैसलों के अनुसार मानव प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद सुरक्षा की आवश्यकताओं की प्राप्ति की तरफ बढ़ता है। इन आवश्यकताओं में शारीरिक सुरक्षा (Security), जीवन में स्थिरता (Stability), निर्भरता (Dependency), बचाव (Protection), भय (Fear), चिन्ता (Anxiety), आदि आती है। मानव इनकी प्राप्ति की साधन सामग्री पर विचार करता है और इन्हें जुटाने के लिए हर संभव प्रयास करता हैं! नियम कानून का निर्माण और पालन भी इन आवश्यकत्ताओं में आता है। 

(3) सम्बद्धता एवं स्नेह की आवश्यकताएँ:-

    ये तीसरे क्रम में अभिप्रेरक हैं। सम्बद्धता व्यक्ति को परिवार एवं समाज में प्रतिष्टा एवं सम्मान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है और व्यक्ति किसी समूह की सदस्यता प्राप्त करने के लिए एवं अच्छा पड़ोसी बनने के लिए प्रयास करता है। स्नेह व्यक्ति को स्नेह देने ल दूसरों से स्नेह पाने को प्रेरित करता है। सम्बद्धता व स्नेह नहीं मिलने पर व्यक्ति कुसमायोजन (Maladjustment) करता है। 


(4) सम्मान की आवश्यकताएँ:-

    प्रथम तीन आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद व्यक्ति को आत्म-सम्मान (Self-Esteem) एवं दूसरों से सम्मान पाने को आकांक्षा अभिप्रेरक का काम करती है। आत्म-सम्मान पाने के लिए वह अपनी योग्यता एवं क्षमता की पहचान करता है, उसमें वृद्धि के उपायों की खोज करता है और आत्म-विश्वास, उपलब्धि, स्वतन्त्रता आदि की भावनाओं को विकसित करता है। श्रेष्ठता में इन्हीं गुणों के कारण उसे दूसरों से प्रशंसा, प्रतिष्ठा एवं सम्मान प्राप्त होता है। इसके परिणामस्वरूप वह अपने योग्य बनाए रखना चाहता है और समाज के लिए उत्पादक कार्य करता है। 


(5) आत्म-सिद्धि की आवश्यकताएँ:--

    मैसलो के अनसार आत्मसिद्धि को आवश्यकताएँ व्यक्ति के लिए अन्तिम अभिप्रेरक है। इस स्तर के लिए व्यक्ति तभी बढ़ता है जब वह प्रथम चार स्तरों तक पहुँच चुका होता है। आत्मसिद्धि से तात्पर्य ऐसी अवस्था से है जहाँ व्यक्ति अपनी सभी योग्यताओं एवं अन्तः क्षमताओं से पूरी तरह अवगत हो जाता है और उसके अनुरूप अपने आपको विकसित करने की इच्छा करता है। 



मैसलों के सिद्धान्त के लक्षण (विशेषताएँ):-

मैसलों के सिद्धान्त के मुख्य  लक्षण (विशेषताएँ)निम्नलिखित हैं 


(1) मैसलों के अनुसार नीचे के क्रम के प्रथम दो स्तर की आवश्यकताएँ शारीरिक आवश्यकताएँ और सुरक्षा की आवश्यकताएँ निम्न स्तर की आवश्यकताएँ होती है और अन्तिम तीन स्तर की आवश्यकताएँ उच्च स्तर की आवश्यकताएँ होती है। 


(2) मैसलों के सिद्धान्त के अनुसार मानव की आवश्यकताएँ उसके लिए अभिप्रेरक का कार्य करती है और मानव इनकी पूर्ति के लिए क्रियाशील रहता है। 


(3) आत्मसिद्धि के सम्प्रत्यय से व्यक्ति को अपनी अन्तः शक्तियों (Inner Po tentialities) को समझने में मदद मिलती है। मैसलों ने आत्मसिद्ध व्यक्ति की कुछ विशेषताएँ बताई है- प्रत्यक्षीकरण में कुशल (Efficient in Perception), अन्य को मान्यता देना (Accepts Others), सादगी (Simplicity), समस्या केन्द्रित साझा (Prob lem Centred Orientation), अकेलापन तथा अलगाव (Privacy and Detachment), स्वतंत्र (Independent), मानवता से जुड़ा हुआ (Identified With Mankind), जनतंत्रीय विचारधारा (Democratic in Outlook); हँसमुख स्वभाव (Sense of Humour) सृजनात्मक (Creative) एवं लचीलापन (Non-Conformist) | 

(4) इस सिद्धान्त के अनुसार मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति का विशेष क्रम में होती है। सर्वप्रथम व्यक्ति नीचे के स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, इसके बाद वह क्रमशः ऊपर के क्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास करता है। 


(5) इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति जैसे-जैसे ऊपर के क्रम की आवश्यकताओं को प्राप्ति की तरफ बढ़ता है उसके व्यक्तित्व का विकास होता जाता है और अंतिम आत्म सिद्धि की आवश्यकता को पूर्ण करने पर वह व्यक्तित्व वाला व्यक्ति हो जाता है। 



मैसलों के सिद्धान्त के दोष / सीमाएँ / अवगुण / कमियाँ:-

मैसलों के सिद्धान्त के दोष । सीमाएँ । निम्नलिखित हैं: 


(1) मैसलों के अनुसार व्यक्ति एक स्तर से दूसर स्तर पर तभी पहुँचता है जब वह एक स्तर की आवश्यकताओं को प्राप्त कर लेता है। परन्तु व्यवहार में व्यक्ति बिना पूर्व के स्तर की आवश्यकताओं को प्राप्त किए भी उससे ऊपर के स्तर पर पहुँचता है। 


(2) मैसलों के आवश्यकता मॉडल के स्तरों को एक-दूसरे से अलग करना अत्यन्त कठिन कार्य है। कुछ बातें निकट के दोनों स्तरों में ली जा सकती है। भोजन के साथ निर्भरता, निर्भरता के साथ स्नेह, इन्हें अलग करना कठिन है। 


(3) मैसलों ने इस सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए मात्र 49 प्रयोज्य (Subjects) ही लिए थे इसलिए मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इतने कम प्रयोज्यों (Subjects) के आधार पर किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन विज्ञान सम्मत नहीं हो सकता है। 


(4) मैसलों द्वारा आत्मसिद्ध व्यक्तियों के जो गुण बताए गए हैं. उनसे भी सभी मनोवैज्ञानिक सहमत नहीं है। 


(5) सम्मान को आवश्यकता को प्राप्त करने के कारण व्यक्ति-व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा का विकास होता है जो आगे चलकर घृणा एवं द्वेष में परिवर्तित हो जाता है। 


मैसलों के सिद्धान्त की शिक्षा में उपयोगिता / महत्व :-

    मैसलो का सिद्धान्त एक मानवतावादी व्यक्तित्व सिद्धान्त है, यह मनुष्य को मशीन नहीं जैविक प्राणी मानता है। इस सिद्धान्त के विभिन्न पक्षों से शिक्षा संबंधी निम्नलिखित अर्थ निकलते हैं इन्हें ही शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त की उपयोगिता मान सकते हैं 

(1) बालकों के सम्मान एवं आत्मसिद्धि की आवश्यकताओं को जागृत कर उनके चरित्र का निर्माण करना चाहिए: उन्हें उच्च व्यक्तित्व का व्यक्ति बनाना चाहिए। 


(2) बालकों को कुछ भी पढ़ाने-सिखाने से पहले उन्हें वह सब पढ़ने-सीखने के लिए अभिप्रेरित करना चाहिए। 


(3) किसी भी स्तर की शिक्षा का पाठ्यक्रम वास्तविक जीवन से संबंधित होना चाहिए। 


(4) व्यक्ति की आवश्यकताएँ उसके लिए सबसे प्रबल अभिप्रेरक होती है अतः बालकों को जो कुछ भी पढ़ाना सिखाना हो उसका संबंध उनकी आवश्यकताओं से जोड़ देना चाहिए। 


(5) भिन्न-भिन्न प्रकार के बच्चों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, शिक्षकों को उनकी आवश्यकताओं के आधार पर ही पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए। 


Kkr Kishan Regar

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