समानता का संवैधानिक दृष्टिकोण

समानता का संवैधानिक दृष्टिकोण

मानता का संवैधानिक दृष्टिकोण क्या है? संवैधानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण के मध्य क्या अंतराल है? दोनों दृष्टिकोण में संतुलन के क्या उपाय हो सकते हैं?
    संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति विधि के समक्ष समान है। किसी व्यक्ति के साथ सार्वजनिक स्थान; जैसे—होटल, सिनेमाघर, कुआँ, पूजा स्थल, दुकान आदि के प्रयोग पर जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। अस्पृश्यता को गैर कानूनी माना गया है।
समानता का संवैधानिक दृष्टिकोण
समानता का संवैधानिक दृष्टिकोण 


संविधान के अनुसार सभी लोग चाहे वह कोई भी जाति, लिंग,रंग-रूप, उम्र के हो अपने वैयक्तित्व का विकास कर सकता है। अपने धर्म का प्रचार कर सकता है। अपने भाषा, संस्कृति के विकास के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है। क्योंकि संवैधानिक दृष्टिकोण से भेदभाव को अवैध माना गया है तथा कानून के समक्ष सभी लोग समान है सबको समान अधिकार है।

संवैधानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण के मध्य अंतराल 

संविधान एवं सामाजिक दृष्टिकोण के मध्य समानता के अधिकार में बहुत अंतर पाया जाता है इसको हम निम्न रूपों में देख सकते हैं

(1) राष्ट्रीयता संविधान सभी वर्ग के लोगों को एक दृष्टि से देखता है लेकिन समाज में यह धारणा गलत है। समाज के लोग पहले समाज को देखते हैं फिर राष्ट्र को।

(2) वर्ग के आधार पर संविधान के अनुसार सभी जाति, धर्म, भाषा के लोगों को समान अधिकार है लेकिन समाज के लोग अपने से निम्न वर्ग को हेय कि दृष्टि से देखते हैं और समाज में उनका अधिकार नीचे होता है उनको विकास का अवसर नहीं मिलता।

(3) लड़के और लड़की में फर्क संविधान में लड़का और लड़की एक समान है। सभी को शिक्षा, रोजगार में समान अवसर मिलते हैं लेकिन समाज में लड़की के प्रति गलत धारणा है कि लड़की शिक्षा प्राप्त करके क्या करेगी। लड़की का काम घर का कामकाज करना होता है। इसी के चलते लड़कियों को विकास का कम अवसर मिलता है।

(4)धर्म के आधार पर समाज में धर्म के आधार पर हुई गलत विचारधारा एवं षड्यंत्र होता है लेकिन संविधान में सभी धर्म को समान अधिकार है। सभी अपने धर्म का प्रचार कर सकता है।

(5) जाति एवं भाषा समाज में उच्च वर्ग के लोग अपने से निम्न जाति के लोगों को हेय की नजर से देखते हैं तथा भाषा के नाम पर लड़ाई-झगड़े करते हैं। लेकिन संविधान में जाति एवं भाषा के आधार पर सभी को समान दृष्टि से देखा जाता है।

(6)संसाधनों का निवेश/उपयोग-संविधान के अनुसार राष्ट्रीय सामग्री एवं संसाधन पर सभी का अधिकार है लेकिन समाज में इसका उपयोग पूँजीपति एवं उच्च वर्ग के लोग कहते हैं।

(7) अंधविश्वास समाज में अंधविश्वास व्यापक रूप में देखने को मिलता है; जैसे लड़कियों की शिक्षा में कमी, महिलाओं का निम्न स्थान, धर्म के प्रति आडम्बर आदि लेकिन संविधान में सभी समान हैं।

संवैधानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण के मध्य संतुलन 

संवैधानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण के मध्य संतुलन बनाने के लिए निम्न उपाय कर सकते हैं—
(1) संवैधानिक अधिकार के नियम को सुचारू रूप से चलाने के लिए कठोर कानून का प्रावधान होना चाहिए इसके विरुद्ध जाने वाले को कड़ी सजा हो। 
(2) सभी गाँव एवं शहर के लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाना चाहिए कि सभी जाति, धर्म, रंग-रूप एक है। 
(3) सामाजिक अंधविश्वास को दूर करने के लिए अपने जाति-धर्म, कर्त्तव्य, अधिकार के बारे में समझाना चाहिए।
(4) लड़का-लड़की को समान समझना चाहिए तथा लड़की की शिक्षा के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। 
(5) राष्ट्र के सम्पत्ति में सभी वर्ग, जाति, धर्म के लोगों को समान रूप से बाँटना चाहिए। 
(6) पिछड़े. एवं निम्न जाति के लोगों के विकास के लिए सरकार द्वारा उनको छूट (आरक्षण) दे ताकि वे पूँजी की कमी महसूस न करते हुए शिक्षा ग्रहण करें एवं अपना विकास करें। 
(7) समाज के सभी वर्ग को विकास का समान अवसर प्रदान करना चाहिए।

Kkr Kishan Regar

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