थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

अधिगम सिद्धान्त Part-4
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम  
( Thorndike's Laws of learning ) 
          थार्नडाइक ने अधिगम की क्रिया में प्रभाव को अत्यधिक महत्त्व दिया है । उद्दीपन ( Stimulation ) का प्रभाव प्राणी पर अवश्य पड़ता है । उद्दीपन के कारण ही वह किसी क्रिया को सीखता भी है । प्राणी को जिस कार्य में संतोष प्राप्त होता है , उपयोगिता का अनुभव होता है उस कार्य को करता है तथा उस कार्य को सीखने में रुचि भी लेता है । अनेक प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर थार्नडाइक ने कुछ प्रमुख नियमों की रचना की है, ये नियम इस प्रकार हैं (थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त)


थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम

मुख्य नियम ( Main Laws )
थार्नडाइक के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं
( 1 ) प्रस्तुतता का नियम ( Law of Readiness )
          प्रस्तुतता के नियम के बारे में थार्नडाइक ने कहा है- " जब कोई संवहन एक संवहन के लिए तैयार होता है तो उसके लिये संवहन संतोषजनक होता है , परन्तु जब कोई संवहन के लिए प्रस्तुत नहीं होता तब उसके लिए संवहन खिजाने वाला होता है । जब कोई संवहन एक संवहन के लिए तैयार हो या उसके लिए संवहन करना भी खीझ उत्पन्न करने वाला होता है । "
          प्रस्तुतता — नियम का सम्बन्ध प्रभाव तथा अभ्यास से सम्बन्धित है । जब व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से कार्य करने के लिए तैयार होता है तभी वह किसी कार्य को सफलतापूर्वक कर सकता थार्नडाइक ने किसी क्रिया को करने के लिए व्यक्ति के प्रस्तुत हो जाने के सम्बन्ध में लिखा है- " जब अधिगम की क्रिया को सम्पादित करने के लिए कोई व्यक्ति प्रस्तुत होता है तो क्रिया के सम्पादन में संतोष मिलता है । जब व्यक्ति कार्य करने के लिए तत्पर नहीं होता , तो उसे कार्य करने में असंतोष मिलता है । "
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त
          इस नियम को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है । नर्सरी कक्षा के बच्चों को पुस्तक पढ़ाना या अक्षर ज्ञान देना इसलिए कठिन होता है कि वे शारीरिक तथा मानसिक रूप से इस योग्य नहीं होते कि वे पुस्तक पढ़ सकें । इसी प्रकार 6 माह के शिशु को चलना इसलिए नहीं सिखाया जा सकता है कि वह शारीरिक रूप से चलने के लिए प्रस्तुत नहीं है । इससे यह स्पष्ट है कि प्रस्तुतता के नियम का आधार परिपक्वता है ।
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

          प्रस्तुतता का नियम और कक्षा - शिक्षक प्रस्तुतता के नियम का उपयोग कक्षा में इस प्रकार कर सकता है
1. शिक्षक को चाहिए कि वह अपनी कक्षा के बालों को नवीन ज्ञान देने से पूर्व मानसिक रूप से तैयार करे । इस तैयारी में उसे बालकों के व्यक्तिगत भेर्दो ( Individual Difference ) पर भी ध्यान देना चाहिए कि बालक अपेक्षित क्रिया करने के लिए तैयार हो गये हैं अथवा नहीं ।
2. शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों को नवीन ज्ञान सीखने अथवा नई क्रिया के करने के लिए उस समय तक बाध्य न करे जब तक कि वे मानसिक तथा शारीरिक रूप से तैयार न हों । जबरन कराये गये कार्य से उनकी शक्ति का ह्रास होता है ।
3. शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों की रुचि , अभिरुचि , योग्यता , क्षमता , सम्प्राप्ति आदि का परीक्षण कर ले । ऐसा करने से बालकों में निहित योग्यताओं तथा क्षमताओं का पता चल जायेगा और वे ढंग से कार्य कर सकेंगे ।
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

( 2 ) प्रभाव का नियम ( Law of effect ) 
          थार्नडाइक ने प्रभाव के नियम की व्याख्या इस प्रकार की है - जब एक स्थिति और अनुक्रिया के मध्य एक परिवर्तनीय संयोग ( Bond ) बनता है और उसके साथ ही या उसके परिणामस्वरूप संतोषजनक अवस्था पैदा होती है तो उस संयोग की शक्ति बढ़ जाती है । इस संयोग के साथ या इसके बाद खिजाने वाली अवस्था पैदा होती है तो उसकी शक्ति घट जाती हैं ।
          थार्नडाइक का ऐसा विश्वास था कि जिन कार्यों को करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है , उसे बार - बार करता है । जिन कार्यों से असंतोष मिलता है , उन्हें वह नहीं करना चाहता । थार्नडाइक ने चूहों पर परीक्षण किये । उसने एक - ' भूल - भूलैया ' ( Puzzle - Box ) तैयार कराई । उसमें भोजन रख दिया और चूहों को उस भूल - भूलैया में छोड़ दिया । भोजन प्राप्त करने के लिए वे चूहे प्रयत्न करते थे , जब उन्हें भूल - भूलैया में भोजन मिला , चूहे ने प्रयत्न किये । जब - जब भोजन नहीं मिला , उन्होंने असंतोष अनुभव किया और क्रिया में शिथिलता बरती ।
          थार्नडाइक की इस विचारधारा में 1922 में एक परिवर्तन आया । उसने यह विचार प्रस्तुत किया कि असंतोष से संयोग ( Bond ) शिथिल नहीं होते । पशुओं को नई चाल सिखाने के लिए पीटा जाता है , अनेक प्रकार के कष्ट दिये जाते हैं । कालान्तर में वे स्थायी रूप से उस क्रिया को सीख जाते हैं । इससे यह स्पष्ट है कि प्रभाव के नियम में बारम्बारता ( Frequency ) तथा लक्षणता ( Recency ) न हो तो प्रभाव के नियम में शिथिलता आ सकती है । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त
                 प्रभाव का नियम और कक्षा – थार्नडाइक द्वारा प्रस्तुत प्रभाव के नियम ने अधिगम का आधार प्रभाव माना है । सामान्यत : विद्यालयों में प्रभाव के नियम का उपयोग इस प्रकार किया जा सकता है

( 1 ) छात्रों में प्रोत्साहन ( Incentive to students ) थार्नडाइक ने प्रभाव का नियम जिस ढंग से प्रस्तुत किया है , उसका आधार है प्रोत्साहन अथवा प्रेरणा । शिक्षक किसी कार्य को सीखने के लिये जब तक छात्रों को प्रेरणा नहीं देगा , सीखी जाने वाली क्रिया के लिए वह प्रभावित नहीं होगा । क्रिया की सम्पन्नता के पश्चात् शिक्षक को चाहिए कि प्रभाव को स्थायी बनाने के लिए पुरस्कार तथा दण्ड की व्यवस्था करे । पुरस्कार तथा दण्ड से प्रभावी स्थायी हो जाते हैं ।
( 2 ) मानसिक स्तर ( Mental Level ) शिक्षक को चाहिए कि वह जो क्रियाएँ विद्यालय में कराये वे छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए । प्राय : देखा जाता है कि विद्यालयों में वैयक्तिक भेदों का ध्यान नहीं रखा जाता । यह ध्यान रखा जाना अधिगम को सफल नहीं बनाता । अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो क्रियाएँ छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल होती हैं , उनमें छात्रों को सफलता मिलती है ।
( 3 ) शिक्षण विधि ( Methods of Teaching ) शिक्षण विधि का प्रभाव अमिट होता है । छात्र यह कहते सुने जाते हैं कि अमुक शिक्षक अंग्रेजी विषय बहुत बढ़िया पढ़ाते है , अमुक गणित बहुत अच्छा पढ़ाते हैं । अमुक की कक्षा में तो बैठने की ही तबियत नहीं करती आदि । इसकी सीधी सी व्याख्या यह है कि शिक्षक को नवीन ज्ञान देने के लिए उचित ढंग से शिक्षण विधि अपनानी चाहिए । नवीनता , रोचकता आदि उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक है कि वह शिक्षण विधि की अनुकूलता पर विचार करे ।
( 4 ) संतोषप्रद अनुभव ( Satisfactory Experience ) शिक्षक को विद्यालय में ऐसी विधियाँ अपनानी चाहिए जिनसे छात्रों में संतोषप्रद अनुभव प्राप्त हो सके । छात्रों को भला - बुरा नहीं कहना चाहिए।ऐसा करने पर उनमें शिक्षक के प्रति ग्रंथियाँ बन जाती हैं जिन्हें खोलना कठिन हो जाता है । शिक्षक का सदैव यही प्रयत्न होना चाहिए कि वह छात्रों को संतोषप्रद अनुभव प्रदान करें । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

( 3 ) अभ्यास का नियम ( Law of Exercise )
           " अभ्यास के नियम की व्याख्या थार्नडाइक ने इस प्रकार की है ।
( 1 ) जब एक परिवर्तनीय संयोग एक स्थिति और अनुक्रिया के बीच बनता है तो अन्य सब बातें समान होने पर उस संयोग की शक्ति बढ़ जाती हैं ।
( 2 ) जब कुछ समय तक स्थिति और अनुक्रिया के बीच एक परिवर्तनीय संयोग नहीं बनता तो उस संयोग की शक्ति घट जाती  हैं।
         इसका अर्थ यह हुआ कि जिस कार्य को हम बार - बार करते हैं उसके चिह्न मस्तिष्क में दृढ़ हो जाते हैं । इस नियम के अन्तर्गत दो उपनियम हैं । ( 1 ) उपयोग का नियम ( Law of use ) इस बात पर बल देता है कि मनुष्य उसी कार्य को बार - बार करता है जिसकी वह उपयोगिता समझता है । ( 2 ) अनुपयोग के नियम ( Law of disuse ) के अन्तर्गत अन्य बातें समान रहने पर भी यदि क्रिया अनुपयोगी होती है तो संयोगों के निर्धारण में वह क्षीण हो जाती है ।
          कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि जब कोई कार्य बार - बार किया जाता है तो स्नायुसंधियाँ दृढ़ हो जाती हैं किन्तु जिस क्रिया का अभ्यास नहीं किया जाता , स्नायु संधियों के निर्बल हो जाने के कारण वह विस्तृत हो जाती है । बीजगणित तथा रेखागणित का व्यावहारिक जीवन में उपयोग न होने के कारण परीक्षा पास करने के उपरान्त छात्र इन विषयों को भूल जाता है । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

          अभ्यास का नियम और कक्षा ( Law of exercise & class ) अन्य नियमों की भाँति अभ्यास का नियम भी इस बात पर बल देता है कि बच्चों को सिखाई जाने वाली क्रिया को दृढ़ करने के लिए उन्हें पर्याप्त अभ्यास कराया जाये । इसके लिए शिक्षक इन कार्यों पर बल दें ।
( 1 ) मौखिक अभ्यास ( Verbal Practice ) शिक्षकों को चाहिए कि वह जो कुछ भी पढ़ाएँ उसका मौखिक अभ्यास अवश्य कराएँ । मौखिक अभ्यास से पढ़ी गई सामग्री की पुनरावृत्ति होती है और अधिगम को बल मिलता हैं ।
( 2 ) पुनर्निरीक्षण ( Re - observation ) — पढ़ाये गए पाठों का समय - समय पर पुनर्निरीक्षण अवश्य होते रहना चाहिये । इससे बालकों का मस्तिष्क ज्ञान के प्रति सचेष्ट बना रहता है । पाठ्यसामग्री को दोहराने का भी अवसर मिलता है ।
( 3 ) वाद - विवाद ( Discussion ) शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों में विषयानुकूल वाद - विवाद कराये । वाद - विवाद से अभ्यास तो होता ही है , तर्क , समर्थन , विमर्थन आदि से विषय को समग्र रूप से प्रस्तुत करने से वह और भी अच्छी तरह सीख जाता है । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

अधिगम के गौण नियम ( Subsidiary Laws of Learning )
          थार्नडाइक ने तीन प्रमुख नियमों के साथ - साथ अधिगम के उपनियमों का निर्माण किया । ये उपनियम किसी रूप में मुख्य नियमों की सहायता करते हैं । ये नियम इस प्रकार

( 1 ) बहुविधि अनुक्रिया ( Multiple Response )
थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अधिगम के गौण नियमों में पहला है - बहुविधि अनुक्रिया । अधिगम के उद्दीपन के फलस्वरूप अनेक अनुक्रियाएँ ( Responses ) या प्रतिक्रियाएँ ( Reactions ) होती हैं । जब भी अनुक्रिया का फल ( Reward ) मिलता है , ऐसी अनेक अनुक्रियाएँ प्रकट होती हैं । जब भी सीखने वाले के समक्ष समस्या आती है वह एक के बाद दूसरा प्रयास उसे हल करने के लिए करता है , जब वांछित व्यवहार उत्पन्न हो जाता है , सफलता मिल जाती है और अधिगम सम्भव हो जाता है । प्राणी अनुक्रिया के लिए भिन्न - भिन्न क्रियाएँ करने की क्षमता रखता है । इसके अभाव में वह समस्या के हल तक नहीं पहुँच सकता । यह भी देखा गया है कि जब किसी दी गई परिस्थिति प्रति अनुक्रिया दी जाती है । उसका कुछ न कुछ परिणाम अवश्य होता है । उस अनुक्रिया का जो भी फल मिलता है , उसका मूल्य सापेक्ष होता है , अर्थात् वह कम भी लग सकता है या अधिक भी ।
          इस नियम का मूल , अभ्यास का नियम है । शिक्षक छात्रों से दी गई परिस्थिति अथवा उद्दीपन से अनेक प्रकार की अनुक्रियाएँ प्राप्त करता है और सही अनुक्रिया का चयन करता है । किसी विषय को आरभ करने से पूर्व छात्रों से समस्या से सम्बन्धित प्रश्न किये जाते हैं । छात्र उनके उत्तर देते हैं । ये उत्तर अनेक होते हैं । इन उत्तरों में व्यर्थ के उत्तर कम होते हैं । छात्र , शिक्षक की सहायता से सही उत्तर देने लगते हैं । इसमें शिक्षक द्वारा छात्रों का मार्ग प्रदर्शन ( Guidance ) किया जाता है । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

( 2 ) रुझान या मनोवृत्ति ( Set or attitude ) 
थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित दूसरा गौण नियम यह है कि अधिगम में व्यक्ति या प्राणी की मनोवृत्ति ( Attitude ) या रुझान ( Set ) से निर्धारित होती है । किसी परिस्थिति , सांस्कृतिक वातावरण आदि के साथ किये गये समायोजन में अधिगम की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । रुझान या मनोवृत्ति केवल यही निर्धारित नहीं करते कि व्यक्ति किसी परिस्थिति में क्या करेगा ? यह भी पता चलता है कि कौन सी बातों से उसे आनन्द प्राप्त होगा और किन से असंतोष मिलेगा । इसी आधार पर थार्नडाइक ने आकांक्षाओं के उत्तर ( Level of aspiration ) की धारणा पर कार्य किया जो कालान्तर में व्यक्तित्व सिद्धान्त ( Personality Theory ) के लिए महत्त्वपूर्ण हो गई । इस नियम का सम्बन्ध अधिगम ( Learning ) की मानसिक स्थिति से है । यह नियम प्रस्तुतता के नियम का अंश है । यदि छात्र मानसिक रूप से किसी क्रिया को सीखने के लिए तैयार नहीं है तो वे नवीन कार्य तथा तत्सम्बन्धी क्रिया को नहीं सीख सकेंगे । शिक्षक को नवीन ज्ञान देते समय छात्रों को मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से तैयार कर लेना चाहिए जिससे अधिगम की क्रिया सफलतापूर्वक सम्पन्न की जा सके । थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त
( 3 ) तत्त्वों की पूर्व सामर्थ्य ( Prepentency of Elements ) -
अधिगम का तीसरा गौण नियम तत्त्वों की पूर्ण सामर्थ्य है । सीखने वाला अधिगम या समस्या के विभिन्न तत्त्वों में से वास्तविक तथ्यों का चयन करने में समर्थ होता है । व्यक्ति किसी समस्या को हल करने के लिए आवश्यक पर्दो ( Items ) का चयन करता है तथा अनुक्रिया ( Response ) करता है । इस नियम के अन्तर्गत अधिगम की क्रिया को जीवन के साथ जोड़ा गया है ।
( 4 ) सादृश्यता द्वारा अनुक्रिया ( Response by analogy ) - 
अधिगम का चौथा गौण नियम है सादृश्यता द्वारा अनुक्रिया होना । नवीन परिस्थितियों की सादृश्यकता की तुलना पूर्व परिस्थितियों से की जाती है । व्यक्ति नई परिस्थिति या ज्ञान का जायजा पूर्व अर्जित ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर करता है । इस नियम का आधार पूर्वानुभव ( Past experinces ) तथा पूर्वज्ञान ( Previous Knowledge ) है । पढ़ाते समय विषय की समानता तथा असमानता का जीवन से सम्बन्ध बताना आवश्यक है । पढ़ाये गए विषयों का सम्बन्ध दैनिक जीवन की क्रियाओं से जोड़ने पर पाठ का सात्मीकरण हो जाता है और बालक उसे अच्छी तरह सीख लेते हैं ।थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त
( 5 ) साहचर्य परिवर्तन ( Associative Shifting ) इस नियम के अन्तर्गत प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थितियों में किया जाता है । ऐसा तभी होगा जब शिक्षक छात्रों के समक्ष वैसी परिस्थिति रखेगा । यदि किसी अनुक्रिया को , उद्दीपन ( Stimulated ) परिस्थिति में परिवर्तनों की शृंखला के सम्पर्क में रखा जाता है तो इससे पूर्णत : नवीन उद्दीपन ( Stimulation ) का जन्म हो जाता है । थार्नडाइक ने बिल्ली को मछली के टुकड़ों के साथ साहचर्य कर खड़ा होना सिखाया । दैनिक जीवन में हम एक चुटकी बजा कर पालतु कुत्ते सुनकर को खड़ा होना सिखा देते हैं । इसी प्रकार किसी व्यक्ति की मोटर साइकिल की आवाज उसकी पाली हुई बिल्ली घर से निकल कर गली में आ जाती है ।
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त

प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त 
 ( Principle of Trial & Error ) 
         
थार्नडाइक ने सीखने में प्रयास एवं त्रुटियों को महत्त्व दिया है । विद्वानों ने इसे पृथ सिद्धान्त न मानकर थार्नडाइक के अधिगम सिद्धान्त का एक अंश माना है । उसने बिल्ली पर प्रयोग किये और निष्कर्ष निकाला कि सीखने वाले में अन्तर्णोद बाधा तथा प्रयोजन के लिए क्रियाएँ करनी पड़ती हैं । प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखने में ये अवस्थाएँ पाई जाती हैं।
  • 1. सीखने का लक्ष्य ,
  • 2. मानसिक स्थिति का ठीक होना ,
  • 3. लक्ष्य प्राप्ति में बाधा ,
  • 4. प्रयास की निरन्तरता ,
  • 5. संयोग से आकस्मिक सफलता ,
  • 6. सही क्रिया का स्थायीकरण , एवं
  • 7. सही क्रिया का चुनाव ।
थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त
          इस सिद्धान्त का शिक्षा के क्षेत्र में लाभइस सिद्धान्त से ( i ) सुधार , ( ii ) गुणों के विकास , ( ii ) सफल क्रियाओं के चयन , ( iv ) अभ्यास , एवं ( v ) लक्ष्य केन्द्रितता द्वारा लाभ उठाया जाता है ।
          स्पष्ट है थार्नडाइक अधिगम के लिए अधिगम नियों के साथ - साथ अभिप्रेरणात्मक पक्षों को भी महत्त्व देता है ।
(थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम एवं सिद्धान्त)

Kkr Kishan Regar

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