व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त : क्लार्क हल - अधिगम के सिद्धान्त

अधिगम सिद्धान्त Part-5 
 व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त ( क्लार्क हल ) 
( Systematic Behaviour Theory ) 


          क्लार्क हल ( Clard . L. Hull ) द्वारा प्रतिपादित पुनर्बलन का सिद्धान्त जीवन के सम्पूर्ण कार्य को प्रस्तुत करता है । हल ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1915 में किया था और 1952 तक अर्थात् मृत्युपर्यन्त इसका विकास करता रहा । हल ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन ' व्यवहार के सिद्धान्त ' ( Principles of behaviour ) नामक पुस्तक में किया है । इस सिद्धान्त का नवीन रूप बाद में 1951 में प्रकाशित ' व्यवहार के आवश्यक तत्त्व ' ( Essentials of behaviour ) नामक उसकी पुस्तक में दिया गया ।
व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त : क्लार्क हल - अधिगम के सिद्धान्त
          हल ने चूहों आदि पर प्रयोग किये तथा उसने यह निष्कर्ष निकाला कि उत्तेजना तथा प्रतिक्रिया के मध्य सम्बन्ध प्रणोदन ( Drive ) और पुरस्कार ( Reward ) पर निर्भर है । प्रणोदन के सम्बन्ध में हल का विचार है - यह वह परिस्थिति है जो प्राणी में शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकता से पैदा होती हैं । जब व्यक्ति प्रणोदन का अनुभव करता है तब अनेक प्रकार की उत्तेजनाएँ उत्पन्न होती हैं । ये उत्तेजनाएँ व्यक्ति को उद्देश्य तक पहुँचाने में सहायक होती हैं । यो उद्दीपन - अनुक्रिया के सम्बन्ध बनाने तथा मानसिक संघर्ष को कम करने में सहायता मिलती है । इसी के कारण पुनर्बलन दिया जाता है ।
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          हल ने अधिगम के सिद्धान्त का प्रतिपादन एवं उसकी व्याख्या 17 अभिधारणाओं में की है । इन अभिधारणाओं का संशोधन भी उसने किया था । इन अभिधारणाओं में चौथी अभिधारणा पर अधिगम आधारित है ।
          इस अभिधारणा के दो भाग हैं । पहले भाग कालिक अव्यवधान ( Temporal contiguity ) को वह अधिगम का महत्त्वपूर्ण अंश मानता है । अभिधारणा का दूसरा भाग पुनर्बलन की भूमिका से सम्बन्धित है और भी अधिक स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि चौथी अभिधारणा आदत तथा आदत की शक्ति की ओर संकेत करती है । चेपलिन व क्राविस के अनुसार - हल इस अभिधारणा से प्रसिद्ध अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त के  प्रयोग को अश्रय देता है , जहाँ अनुकूलित प्रयोग ( CS- घण्टी ) उद्दीन अनुक्रिया ( UR- लार ) से सम्बद्ध होता है । जो भी हो यह कहा जा सकता है कि अव्यवधान अधिगम की आवश्यक दशा है परन्तु यह पर्याप्त दशा नहीं है ।
          हल ने दो प्रकार के पुनर्बलन उपस्थित किये हैं - प्राथमिक तथा द्वितीयक । अब किसी अनुक्रिया से आवश्यकता कम हो जाती है तो हमें एक ऐसी परिस्थिति प्राप्त होती है जिसे हम पुनर्बलन कहते हैं । हल के अनुसार- “ सावधानी से किये गये अवलोकन और प्रयोगों ने , खासतौर से उच्च जीवों पर किये गये अवलोकनों और प्रयोगों ने ऐसी बहुत सी परिस्थितियाँ प्रकट की हैं जिनमें अधिगम तो होता है परन्तु उसके साथ किसी प्राथमिक आवश्यकता में कमी नहीं होती ।
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व्यवहार व्यवस्था : प्रतीकात्मकता 
( Behaviour System : Symbolic Constrant ) 

हल के अनुसार अधिगम की प्रक्रिया में व्यवस्था इस प्रकार हैं
( 1 ) पुनर्बलन ( Reinforcement ) स्वभाव की शक्ति ( Habit strength ) उद्दीपन अनुक्रिया के पुनर्बलन एवं आवश्यकता से निर्धारित है । ( अवधारणा 3-4 )
( 2 ) सामान्यीकरण ( Generalisation ) स्वभाव शक्ति का सामान्यीकरण उद्दीपन - अनुक्रिया संयोगों तथा अन्य उद्दीपन - अनुक्रिया के स्वभावों पर निर्भर करता है । ( अवधारणा 5 )
( 3 ) अभिप्रेरणा ( Motivation ) - प्रतिक्रिया की शक्ति स्वभाव शक्ति एवं प्रेरकों पर निर्भर करती हैं । यह अभिप्रेरणा का एक रूप हैं । ( अवधारणा 6-7 )
( 4 ) पोषण करना ( Inhibition ) — प्रभावशाली प्रतिक्रिया , प्रतिक्रिया पोषण ( Reactive Inhibition ) तथा उद्दीपन प्रतिक्रिया के द्वारा कम होता है और अधिगम पुष्प होता है । ( अवधारणा 10 )
( 5 ) प्रदोलन ( Oscilation ) अधिगम की अनुक्रिया से सम्बन्धित प्रभावशाली तत्वों से प्रभावशाली अनुक्रिया होती है । ( अवधारणा 10 )
( 6 ) अनुक्रिया आह्वान ( Response Evocation ) — जब सीमान्त से ऊपर प्रभावशाली प्रतिक्रिया होती है तो अनुक्रिया उत्पन्न होने लगती है । ऐसी अनुक्रियाओं का मापन प्रतिक्रियाओं की सम्भावनाओं , प्रतिक्रिया - काल आदि से होता है । ( अवधारणा 11-16 )
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हल ने 1952 में सभी अवधारणाओं पर विचार करके अन्तिम स्वरूप इस प्रकार दिया है
1. अदा - चर ( Input Variable )
( i ) पूर्व पुनर्बलनों की संख्या ,
( ii ) प्रेरक दशाएँ ,
( iii ) उद्दीपन की महानता ,
( iv ) पुरस्कार की मात्रा ,
( v ) स्वभाव शक्ति , एवं
( vi ) अनुक्रिया कार्य ( वांछित ) ।

2. मध्यवर्ती चर ( Intervening Variables )
( i ) स्वभाव शक्ति ,
( ii ) प्रेरक ,
( iii ) उद्दीपन शक्ति की गत्यात्मकता ,
( iv ) अभिप्रेरणा ,
( v ) सामान्यीकरण ,
( vi ) प्रतिक्रिया पोषण , एवं
( vii ) उद्दीपन पोषण
   ।
    ( i ) प्रतिक्रिया क्षमता ,
   ( ii ) सामान्यीकरण , एवं
   ( iii ) औसत पोषण क्षमता
       ।
      ( i ) कुल प्रतिक्रिया क्षमता ,
      ( ii ) प्रतिक्रिया क्षमता दोलन , एवं
      ( ii ) प्रतिक्रिया सीमान्त ।

3. प्रदाय ( Output )
( i ) अन्तर्निहित प्रतिक्रिया ,
( ii ) प्रतिक्रिया आयाम ( Amplitude ) ,
( iii ) सामान्य अनुक्रियाओं की कमी , एवं
( iv ) प्रतिक्रिया की सम्भावनाएँ ।
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मूल्यांकन ( Evaluation ) - हल के अधिगम सिद्धान्त का आधार पुनर्बलन है । हल ने इस विचार की पुष्टि के लिये निगन प्रणाली का ताना - बाना बुना है । सिद्धान्त का विकास अभिधारणाओं , प्राकल्पनाओं आदि के माध्यम से किया गया है । हल का विचार था कि यह मत समस्या समाधान ( Problem solving ) समाज व्यवहार , अधिगम के प्रकार आदि को विस्तार दे सकता है । हल ने इस बात पर बल दिया है कि आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर व्यक्ति या प्राणी में तनाव उत्पन्न होता है और आवश्यकताओं की पूर्ति होते ही तनाव समाप्त हो जाता है । सीखने का कारण किसी आवश्यकता का प्रत्यक्ष रूप से पूर्ण होना है । अत : कुछ दृष्टियों से आधुनिक शिक्षा को हल के सिद्धान्त में एक सैद्धान्तिक आधार मिल जाता है ।
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पुनर्बलन : शिक्षा ( Reinforcement : Education )
          लेस्टर एण्डरसन के अनुसार - हल का सिद्धान्त भी उसी वर्ग का है जिस वर्ग का थार्नडाइक का सिद्धान्त है , किन्तु जैसा कि कहा गया है कि यह अधिक परिष्कृत है अर्थात् यह अधिक नपा - तुला एवं शुद्ध है । ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें अभिप्रेरणाओं पर , खास तौर से इसलिए अधिक जोर दिया जाता है कि वे जीवन की मूल और अवाप्त आवश्यकताओं से सम्बद्ध हैं । कार्य का नियम , जो थार्नडाइक की दृष्टि में सिर्फ एक अनुभाविक नियम है , आवश्यकता की संकल्पना से सम्बद्ध हो जाता है और अधिगम का निर्देशन करने वाले व्यक्ति को “ पुरस्कारों के लिए जो अधिगम के लिये आधारभूत माने जाते हैं , एक तार्किक आधार प्रदान करता है । "
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          यह सिद्धान्त बालकों की आवश्यकताओं एवं क्रियाओं में सम्बन्ध स्थापित करता है । इस सिद्धान्त का शिक्षा में इस प्रकार उपयोग किया जा सकता है
1. यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि विद्यालय की विभिन्न क्रियाओं में बच्चों की आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाए ।
2. सफलता प्राप्त करने पर बालकों को पुरस्कार दिए जाएँ ।
3. कक्षा में पढ़ाई जाने वाली वस्तु के उद्देश्य स्पष्ट हों ।
4. आवश्यकता पूर्ति के लिये शिक्षण होना चाहिए ।

          हल ने अधिगम सिद्धान्त की व्याख्या पुनर्बलन के आधार पर की है । उसका मत पललव , थार्नडाइक , वाटसन आदि के मतों की व्याख्या और कतिपय आनुभाविक निष्कर्षों के आधार पर अपने मत को प्रतिपादित करता है । हल ने अधिगम की क्रिया में पुनर्बलन को महत्त्व दिया और इसी आधार पर उसने पावलॉव के मत की आलोचना करते हुये भोजन तथा घण्टी के साथ - साथ सन्तुष्टि को अधिगम की क्रिया की पूर्णता मानना है ।
          व्यवहार के संगठन में संभावित अनुक्रियाओं को विशेष महत्त्व होता है । हल का मत है कि सभी उद्दीपन उद्देश्य के प्रति अनुक्रिया करते हैं । द्वितीयक ( Secondary ) पुनर्बलन , पुनर्बलन के स्वरूप तथा स्वभाव समूह ( Habit family ) का व्यवहार व्यवस्था ( Behaviour system ) में क्रमिक योग है ।
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Kkr Kishan Regar

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