इग्नू DECE-02 सॉल्व्ड असाइनमेंट : स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर

इग्नू DECE-02 सॉल्व्ड असाइनमेंट : स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर

नमस्ते दोस्तों!

अगर आप इग्नू (IGNOU) से DECE (Diploma in Early Childhood Care and Education) कोर्स कर रहे हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए बहुत मददगार साबित हो सकती है। आज हम DECE-02: 'बाल स्वास्थ्य और पोषण' के सत्रीय कार्य (Assignment) के सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से और सरल भाषा में समझेंगे।

इग्नू DECE-02 सॉल्व्ड असाइनमेंट : स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर


यह सॉल्व्ड असाइनमेंट जनवरी 2025 और जुलाई 2025 सत्र के लिए है। आप इन उत्तरों को एक मॉडल के रूप में उपयोग करके अपना असाइनमेंट तैयार कर सकते हैं। ध्यान दें कि मौलिकता बनाए रखने के लिए इन उत्तरों को अपनी भाषा में लिखना सबसे अच्छा होता है।

तो चलिए, शुरू करते हैं!


सत्रीय कार्य – 02

कोर्स कोड: डी.ई.सी.ई-2
कुल अंक: 100


भाग क (60 अंक)

सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।

प्रश्न 1. भारत में स्वास्थ्य देखभाल के स्तर एंव शहरी स्वास्थ्य वितरण प्रणाली का वर्णन कीजिए। (600 शब्द, 3+3 अंक)

उत्तर:

परिचय:
मेरे विचार में, किसी भी देश की प्रगति का एक महत्वपूर्ण पैमाना वहाँ की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है। भारत में, स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक सुनियोजित ढाँचा बनाया गया है, जिसे विभिन्न स्तरों में बाँटा गया है। यह ढाँचा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करता है।

भारत में स्वास्थ्य देखभाल के स्तर:

मैंने अपनी पुस्तक में पढ़ा और समझा है कि भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मुख्य रूप से तीन स्तरों में विभाजित किया गया है:

  1. प्राथमिक स्तर (Primary Level): यह स्वास्थ्य सेवा का पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्तर है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों के घर के पास ही बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना है। इसमें उप-केंद्र (Sub-Centres), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs) शामिल हैं। यहाँ पर टीकाकरण, मातृ-शिशु स्वास्थ्य, सामान्य बीमारियों का इलाज और स्वास्थ्य शिक्षा जैसी सेवाएँ दी जाती हैं। यह स्तर "रोकथाम इलाज से बेहतर है" के सिद्धांत पर काम करता है।

  2. द्वितीयक स्तर (Secondary Level): जब किसी मरीज को ऐसी बीमारी होती है जिसका इलाज प्राथमिक स्तर पर संभव नहीं होता, तो उसे द्वितीयक स्तर पर भेजा जाता है। इसमें जिला अस्पताल और बड़े ताल्लुका अस्पताल शामिल होते हैं। यहाँ पर सर्जरी, विशेषज्ञ डॉक्टरों (जैसे- बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ) की सेवाएँ और अधिक उन्नत जाँच की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।

  3. तृतीयक स्तर (Tertiary Level): यह स्वास्थ्य सेवा का सबसे ऊँचा और विशिष्ट स्तर है। इसमें विशेषीकृत अस्पताल और मेडिकल कॉलेज अस्पताल आते हैं (जैसे- AIIMS)। यहाँ पर कैंसर, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज और जटिल ऑपरेशन किए जाते हैं। इस स्तर पर गहन अनुसंधान और शिक्षण का कार्य भी होता है।

शहरी स्वास्थ्य वितरण प्रणाली (Urban Health Delivery System):

शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की जरूरतें और चुनौतियाँ ग्रामीण क्षेत्रों से अलग होती हैं। यहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक होता है, और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ भी ज्यादा होती हैं। शहरी स्वास्थ्य प्रणाली के मुख्य अंग इस प्रकार हैं:

  • सरकारी अस्पताल: बड़े शहरों में जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज अस्पताल और विशेष अस्पताल होते हैं जो कम लागत पर या मुफ्त में उन्नत चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

  • डिस्पेंसरी और शहरी स्वास्थ्य केंद्र (UHCs): ये शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये অনেকটা PHC की तरह काम करते हैं, जहाँ सामान्य बीमारियों का इलाज और दवाइयाँ उपलब्ध होती हैं।

  • निजी अस्पताल और क्लीनिक: शहरी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भूमिका बहुत बड़ी है। यहाँ छोटे क्लीनिक से लेकर बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल तक मौजूद हैं, जो विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं। हालांकि, ये काफी महंगे हो सकते हैं।

  • गैर-सरकारी संगठन (NGOs): कई गैर-सरकारी संगठन भी शहरी झुग्गी-झोपड़ियों और गरीब बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। वे मोबाइल वैन, स्वास्थ्य शिविर और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

  • शहरी आंगनवाड़ी केंद्र: ये केंद्र शहरी गरीब बस्तियों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:
इस प्रश्न का उत्तर तैयार करते हुए मैंने समझा कि भारत में एक व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मौजूद है, लेकिन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पहुँच और गुणवत्ता में काफी अंतर है। शहरी क्षेत्रों में जहाँ सुविधाएँ तो हैं, पर वे महंगी हो सकती हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। एक प्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए इन सभी स्तरों का एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना अत्यंत आवश्यक है।


प्रश्न 2. निम्नलिखित खाद्य अनुपूरक कार्यक्रमों के लाभार्थी तथा प्रदान किए जाने वाले पूरक आहार का वर्णन करें। (प्रत्येक 300 शब्द, 3+3 = 6 अंक)

उत्तर:

(क) आईसीडीएस (ICDS - समेकित बाल विकास सेवाएँ)

परिचय:
आईसीडीएस भारत सरकार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसे मैं बच्चों और माताओं के लिए एक सुरक्षा कवच मानती हूँ। इसका मुख्य उद्देश्य 0-6 वर्ष के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य, पोषण और विकास को सुनिश्चित करना है।

  • लाभार्थी:

    • 0 से 6 वर्ष की आयु के बच्चे।

    • गर्भवती महिलाएँ।

    • स्तनपान कराने वाली माताएँ।

    • किशोरी बालिकाएँ (कुछ चुनिंदा योजनाओं के तहत)।

  • प्रदान किया जाने वाला पूरक आहार:
    आईसीडीएस के तहत पूरक पोषण आहार आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से दिया जाता है। यह इस प्रकार है:

    1. गर्म पका हुआ भोजन: 3 से 6 वर्ष के बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र में प्रतिदिन गर्म पका हुआ ताजा भोजन (जैसे खिचड़ी, दलिया) दिया जाता है, ताकि उनकी ऊर्जा और प्रोटीन की दैनिक जरूरतें पूरी हो सकें।

    2. टेक-होम राशन (THR): 6 महीने से 3 वर्ष के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को घर ले जाने के लिए सूखा राशन दिया जाता है। इसमें आमतौर पर भुना हुआ दलिया, पंजीरी या अन्य पोषक तत्वों से भरपूर मिश्रण होता है, जिसे घर पर आसानी से तैयार किया जा सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि घर पर भी उनका पोषण स्तर बना रहे।

(ख) मध्याह्न भोजन कार्यक्रम (Mid-Day Meal Scheme)

परिचय:
मध्याह्न भोजन कार्यक्रम, जिसे अब 'पीएम पोषण' के नाम से जाना जाता है, स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने और उनके पोषण स्तर को सुधारने की एक बेहतरीन योजना है। मैंने महसूस किया है कि यह योजना सिर्फ बच्चों का पेट ही नहीं भरती, बल्कि उनकी पढ़ाई में भी मदद करती है।

  • लाभार्थी:

    • सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ने वाले सभी बच्चे।

  • प्रदान किया जाने वाला पूरक आहार:
    इस कार्यक्रम के तहत, स्कूल में हर दिन बच्चों को दोपहर में पका हुआ ताजा भोजन दिया जाता है।

    1. पोषक तत्वों का मानक: इस भोजन के लिए सरकार द्वारा पोषक तत्वों का एक मानक तय किया गया है। प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) के बच्चों के लिए न्यूनतम 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन, जबकि उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6-8) के लिए न्यूनतम 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन अनिवार्य है।

    2. भोजन का मेन्यू: भोजन में विविधता का ध्यान रखा जाता है। आमतौर पर मेन्यू में रोटी, सब्ज़ी, दाल, चावल, खिचड़ी और कभी-कभी मौसमी फल या दूध भी शामिल किया जाता है, ताकि बच्चों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें। यह कार्यक्रम बच्चों में कुपोषण को कम करने और उनकी एकाग्रता बढ़ाने में बहुत प्रभावी साबित हुआ है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित बाल्यावस्था रोगों/विसंगतियों में से किन्हीं दो के लक्षण, कारण तथा उपचार के बारे में संक्षेप में लिखिए। (प्रत्येक 150 शब्द, 3x2=6 अंक)

उत्तर:

मैंने इस प्रश्न के लिए (क) अल्प निर्जलीकरण और (घ) एनीमिया को चुना है, क्योंकि ये बाल्यावस्था में बहुत आम समस्याएँ हैं।

(क) अल्प निर्जलीकरण (Dehydration)

  • परिचय: जब बच्चे के शरीर में पानी की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है, तो उसे निर्जलीकरण कहते हैं। यह स्थिति अक्सर दस्त या उल्टी के कारण होती है।

  • लक्षण: इसके मुख्य लक्षण हैं - मुँह और जीभ का सूखना, बच्चा सुस्त या चिड़चिड़ा हो जाता है, रोते समय आँसू कम निकलना, और पेशाब कम आना या गहरे पीले रंग का होना।

  • कारण: इसका सबसे आम कारण दस्त, उल्टी या बहुत तेज बुखार है, जिससे शरीर से तरल पदार्थ तेजी से बाहर निकल जाते हैं।

  • उपचार: इसका सबसे सरल और प्रभावी उपचार है 'जीवन रक्षक घोल' (ORS) देना। बच्चे को थोड़ी-थोड़ी देर में ORS का घोल, माँ का दूध, या घर पर बने तरल पदार्थ (जैसे दाल का पानी, नींबू पानी, नारियल पानी) पिलाते रहना चाहिए।

(घ) एनीमिया (रक्ताल्पता)

  • परिचय: एनीमिया वह स्थिति है जब खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। हीमोग्लोबिन ही शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाने का काम करता है।

  • लक्षण: एनीमिया से पीड़ित बच्चा थका हुआ और कमजोर दिखता है। उसकी त्वचा, नाखून और पलकों के अंदर का रंग पीला पड़ जाता है। उसे भूख कम लगती है और उसका विकास भी धीमा हो सकता है।

  • कारण: इसका मुख्य कारण भोजन में लौह तत्व (Iron) की कमी है। इसके अलावा, पेट में कीड़े होना या मलेरिया जैसे संक्रमण भी एनीमिया का कारण बन सकते हैं।

  • उपचार: इसके उपचार के लिए बच्चे को लौह तत्व से भरपूर आहार जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ, गुड़, अनार, और चुकंदर देना चाहिए। गंभीर मामलों में, डॉक्टर की सलाह पर आयरन की गोलियाँ या सिरप भी दी जाती है।


प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रत्येक के प्रमुख स्रोतों और कार्यों की सूचि बनाइए। (800 शब्द, 12 अंक)

उत्तर:

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ प्रमुख तत्वों के स्रोत और कार्यों की सूची दी गई है:

(क) जल (Water)

  • प्रमुख स्रोत:

    • पीने का पानी

    • नारियल पानी, जूस, दूध, लस्सी

    • रसदार फल जैसे तरबूज, संतरा, खीरा

    • सब्जियाँ जैसे टमाटर, लौकी

  • प्रमुख कार्य:

    • यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।

    • यह पोषक तत्वों को शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है।

    • यह शरीर से विषैले पदार्थों को पसीने और मूत्र के रूप में बाहर निकालता है।

    • यह पाचन क्रिया में मदद करता है और कब्ज को रोकता है।

    • यह जोड़ों को चिकनाई प्रदान करता है।

(ख) रेशा (Fibre)

  • प्रमुख स्रोत:

    • साबुत अनाज (गेहूँ, जई, बाजरा)

    • दालें और फलियाँ

    • फल (सेब, अमरूद, नाशपाती)

    • सब्जियाँ (गाजर, मटर, पत्तेदार सब्जियाँ)

    • मेवे और बीज

  • प्रमुख कार्य:

    • यह पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है और कब्ज से बचाता है।

    • यह पेट को भरा हुआ महसूस कराता है, जिससे वजन नियंत्रण में मदद मिलती है।

    • यह रक्त में शर्करा (sugar) के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।

    • यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी सहायक है।

(ग) कैल्शियम (Calcium)

  • प्रमुख स्रोत:

    • दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर, छाछ)

    • रागी, सोयाबीन

    • हरी पत्तेदार सब्जियाँ (पालक, मेथी)

    • तिल, बादाम

    • छोटी मछलियाँ (यदि खाई जाती हैं)

  • प्रमुख कार्य:

    • यह हड्डियों और दाँतों को बनाने और मजबूत रखने के लिए आवश्यक है।

    • यह मांसपेशियों के संकुचन में मदद करता है।

    • यह रक्त का थक्का जमने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    • यह तंत्रिका तंत्र के संकेतों के प्रसारण में सहायक है।

(घ) विटामिन के (Vitamin K)

  • प्रमुख स्रोत:

    • हरी पत्तेदार सब्जियाँ (पालक, पत्ता गोभी, ब्रोकली)

    • सोयाबीन और अंकुरित अनाज

    • अंडा, माँस

  • प्रमुख कार्य:

    • इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य रक्त का थक्का जमाने में मदद करना है। चोट लगने पर खून का बहना इसी विटामिन की वजह से रुकता है।

    • यह हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है, क्योंकि यह कैल्शियम को हड्डियों तक पहुँचाने में मदद करता है।


प्रश्न 5. 2 साल के बच्चे के लिए एक संतुलित दिन का मेनू सुझाएँ, जिसमें बताया जाए कि बच्चा नाश्ता, मध्य सुबह, दोपहर और रात के खाने में क्या खाएगा। यह भी बताएँ कि दिन में अलग-अलग समय पर मेनू में उल्लिखित प्रत्येक खाद्य पदार्थ से बच्चे को कौन सा पोषक तत्व मिलेगा। (500 शब्द, 20 अंक)

उत्तर:

2 साल का बच्चा बहुत सक्रिय होता है और उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए संतुलित आहार बहुत जरूरी है। मैं एक 2 साल के बच्चे के लिए एक दिन का मेनू इस प्रकार तैयार करुँगी:

2 वर्षीय बच्चे के लिए एक दिन का संतुलित आहार मेनू

1. सुबह का नाश्ता (8:00 AM)

  • मेनू: 1/2 कटोरी सूजी का उपमा (गाजर और मटर जैसी सब्जियाँ डालकर) और आधा गिलास दूध।

  • पोषक तत्व:

    • सूजी: कार्बोहाइड्रेट (ऊर्जा के लिए)।

    • सब्जियाँ (गाजर, मटर): विटामिन ए, फाइबर और अन्य खनिज।

    • दूध: कैल्शियम (हड्डियों के लिए) और प्रोटीन (शरीर के विकास के लिए)।

2. मध्य-सुबह का नाश्ता (11:00 AM)

  • मेनू: आधा केला मसला हुआ या एक छोटा सेब (उबला और मसला हुआ)।

  • पोषक तत्व:

    • केला/सेब: पोटेशियम, विटामिन और प्राकृतिक शक्कर (तुरंत ऊर्जा के लिए), साथ ही फाइबर (पाचन के लिए)।

3. दोपहर का भोजन (1:00 PM)

  • मेनू: 1/2 कटोरी नरम खिचड़ी (दाल और चावल को घी में मिलाकर) और 2-3 चम्मच दही।

  • पोषक तत्व:

    • चावल: कार्बोहाइड्रेट (ऊर्जा)।

    • दाल (मूंग): प्रोटीन (मांसपेशियों के निर्माण के लिए)।

    • घी: वसा (Fat) (ऊर्जा और मस्तिष्क के विकास के लिए)।

    • दही: प्रोबायोटिक्स (पेट के लिए अच्छा), कैल्शियम और प्रोटीन।

4. शाम का नाश्ता (4:00 PM)

  • मेनू: 1/2 कटोरी उबला हुआ शकरकंद (Sweet Potato), मसला हुआ।

  • पोषक तत्व:

    • शकरकंद: विटामिन ए (आँखों के लिए), कार्बोहाइड्रेट और फाइबर।

5. रात का खाना (7:30 PM)

  • मेनू: 1 मुलायम रोटी (घी लगी हुई) छोटे टुकड़ों में तोड़ी हुई, 1/2 कटोरी लौकी की सब्ज़ी (अच्छी तरह पकी हुई) और 1/2 कटोरी दाल का पानी।

  • पोषक तत्व:

    • रोटी: कार्बोहाइड्रेट।

    • लौकी: पानी की मात्रा और फाइबर (पाचन में आसान)।

    • दाल का पानी: प्रोटीन और अन्य आवश्यक पोषक तत्व।

निष्कर्ष:
यह मेनू बनाते समय मैंने इस बात का ध्यान रखा है कि बच्चे को दिनभर में ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज और वसा संतुलित मात्रा में मिलें। भोजन नरम, आसानी से पचने वाला और स्वादिष्ट होना चाहिए ताकि बच्चा उसे चाव से खाए।


प्रश्न 6. बताएँ कि विकास की निगरानी के लिए वृद्धि चार्ट का उपयोग कैसे करें। (500 शब्द, 5 अंक)

उत्तर:

परिचय:
वृद्धि चार्ट (Growth Chart) एक बहुत ही शक्तिशाली और सरल उपकरण है, जिसके माध्यम से हम बच्चों के शारीरिक विकास की निगरानी कर सकते हैं। यह एक ग्राफ की तरह होता है, जिस पर बच्चे की उम्र के अनुसार उसके वजन और लंबाई को अंकित किया जाता है। मैं इसे बच्चे के "स्वास्थ्य का रिपोर्ट कार्ड" मानती हूँ।

वृद्धि चार्ट का उपयोग करने की प्रक्रिया:

वृद्धि चार्ट का सही उपयोग करने के लिए मैंने निम्नलिखित कदमों को समझा है:

  1. सही चार्ट का चुनाव: सबसे पहले लड़के और लड़की के लिए अलग-अलग वृद्धि चार्ट का चुनाव करना होता है। जन्म से 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा मानकीकृत चार्ट का उपयोग किया जाता है।

  2. बच्चे का माप लेना: नियमित अंतराल पर (जैसे हर महीने) बच्चे का सही तरीके से वजन और लंबाई/ऊँचाई मापी जानी चाहिए।

  3. चार्ट पर बिंदु अंकित करना:

    • चार्ट के निचले हिस्से (X-अक्ष) पर बच्चे की उम्र (महीनों में) ढूँढें।

    • चार्ट के साइड वाले हिस्से (Y-अक्ष) पर बच्चे का वजन या लंबाई का माप ढूँढें।

    • जहाँ ये दोनों रेखाएँ मिलती हैं, वहाँ एक बिंदु (डॉट) लगाएँ।

  4. बिंदुओं को मिलाना: हर बार जब नया बिंदु अंकित करें, तो उसे पिछले बिंदु से एक सीधी रेखा में जोड़ दें। इससे एक "वृद्धि वक्र" (Growth Curve) बनता है।

  5. वृद्धि वक्र की व्याख्या करना:

    • वक्र की दिशा: सबसे महत्वपूर्ण चीज वक्र की दिशा है। यदि वक्र लगातार ऊपर की ओर जा रहा है, तो यह सामान्य विकास का संकेत है।

    • सपाट वक्र: यदि वक्र सपाट हो गया है (यानी वजन नहीं बढ़ रहा है), तो यह एक चेतावनी का संकेत है। इसका मतलब हो सकता है कि बच्चा बीमार है या उसे पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है।

    • नीचे जाता वक्र: यदि वक्र नीचे की ओर जा रहा है (यानी वजन घट रहा है), तो यह एक गंभीर समस्या का संकेत है और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:
वृद्धि चार्ट का उपयोग करके माता-पिता और स्वास्थ्य कार्यकर्ता आसानी से यह पता लगा सकते हैं कि बच्चे का विकास सही दिशा में हो रहा है या नहीं। यह कुपोषण या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या का समय पर पता लगाने और उसके समाधान के लिए एक अमूल्य उपकरण है।


प्रश्न 7. 'पोषण स्तर' का अर्थ समझाइए। कुपोषण और संक्रमण के अंतःसंबंध को समझाइए। (500 शब्द, 5 अंक)

उत्तर:

पोषण स्तर (Nutritional Status):

'पोषण स्तर' का अर्थ है किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की वह स्थिति जो उसके द्वारा लिए गए भोजन और शरीर द्वारा उन पोषक तत्वों के उपयोग से निर्धारित होती है। सरल शब्दों में, यह बताता है कि किसी व्यक्ति का शरीर पोषण के मामले में कितना स्वस्थ है।

  • अच्छा पोषण स्तर: इसका मतलब है कि व्यक्ति को उसकी उम्र, लिंग और शारीरिक गतिविधि के अनुसार सभी आवश्यक पोषक तत्व (प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज) संतुलित मात्रा में मिल रहे हैं।

  • खराब पोषण स्तर (कुपोषण): इसका मतलब है कि व्यक्ति के आहार में कुछ पोषक तत्वों की कमी (अल्पपोषण) है या अधिकता (अतिपोषण) है।

कुपोषण और संक्रमण का अंतःसंबंध (Vicious Cycle):

कुपोषण और संक्रमण के बीच एक बहुत गहरा और खतरनाक संबंध है, जिसे मैं "दुष्चक्र" कहना चाहूँगी। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक समस्या दूसरी समस्या को जन्म देती है और उसे और भी गंभीर बना देती है।

यह चक्र इस प्रकार काम करता है:

  1. कुपोषण से संक्रमण का खतरा:
    जब एक बच्चा कुपोषित होता है, तो उसका शरीर कमजोर हो जाता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) ठीक से काम नहीं कर पाती। इस वजह से, वह सामान्य कीटाणुओं और जीवाणुओं का सामना नहीं कर पाता और आसानी से दस्त, निमोनिया, खसरा जैसे संक्रमणों का शिकार हो जाता है।

  2. संक्रमण से कुपोषण का बढ़ना:
    जब बच्चा संक्रमित होता है, तो:

    • उसे भूख नहीं लगती और वह खाना-पीना कम कर देता है।

    • उल्टी या दस्त होने पर शरीर से पोषक तत्व बाहर निकल जाते हैं।

    • बीमारी से लड़ने के लिए शरीर को अधिक ऊर्जा और पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जो उसे भोजन से नहीं मिल पाते।

इस प्रकार, संक्रमण बच्चे को और भी ज्यादा कुपोषित बना देता है। फिर यह और कमजोर शरीर नए संक्रमणों को न्योता देता है। यह चक्र लगातार चलता रहता है, जिससे बच्चे की हालत बिगड़ती जाती है और यह जानलेवा भी हो सकता है।

निष्कर्ष:
यह समझना बहुत ज़रूरी है कि कुपोषण और संक्रमण को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। किसी भी बच्चे का इलाज करते समय, यदि उसे संक्रमण है तो उसके पोषण पर भी ध्यान देना होगा, और यदि वह कुपोषित है तो उसे संक्रमण से बचाने के उपाय भी करने होंगे। इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए टीकाकरण, स्वच्छता और संतुलित आहार, तीनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


भाग ख (20 अंक)

इस भाग में आपको इस पाठ्यक्रम, अर्थात् डीईसीई-2 की प्रयोगात्मक कार्यों की नियमावली में दिए गए अभ्यासों में से अभ्यास संख्या 2 या 3 में से कोई एक अभ्यास करना है।

उत्तर: अभ्यास 2 - एक बच्चे के खाने संबंधी व्यवहार का अवलोकन करना।

परिचय:
इस प्रैक्टिकल को करने के लिए मैंने बहुत उत्साह महसूस किया। इसका उद्देश्य सिर्फ यह देखना नहीं था कि बच्चा क्या खाता है, बल्कि यह समझना था कि वह खाते समय कैसा व्यवहार करता है। मैंने अपने पड़ोस में रहने वाली एक 3 वर्षीय बच्ची 'आराध्या' का अवलोकन करने का निर्णय लिया।

उद्देश्य:

  • एक छोटे बच्चे की खाने की आदतों और पसंद-नापसंद को समझना।

  • यह देखना कि बच्चा खुद खाने का प्रयास करता है या नहीं।

  • भोजन के प्रति उसकी प्रतिक्रियाओं (खुशी, गुस्सा, आनाकानी) को नोट करना।

प्रक्रिया:

  1. मैंने सबसे पहले आराध्या की माँ से बात की और इस अभ्यास के उद्देश्य के बारे में बताया। उनकी अनुमति मिलने के बाद, मैंने दोपहर के भोजन के समय का चुनाव किया।

  2. मैं उनके घर गई और एक कोने में चुपचाप बैठ गई ताकि आराध्या को मेरी उपस्थिति से कोई असुविधा न हो।

  3. उसकी माँ ने प्लेट में रोटी, दाल और आलू की सब्ज़ी परोसी।

  4. मैंने अपनी नोटबुक में अवलोकन बिंदु बनाना शुरू किया: परोसा गया भोजन, बच्चे की पहली प्रतिक्रिया, खुद खाने का प्रयास, माँ की भूमिका, और भोजन की समाप्त मात्रा।

मेरा अवलोकन (Observations):

  • प्रतिक्रिया: प्लेट देखते ही आराध्या ने खुश होकर ताली बजाई, लेकिन जैसे ही उसने सब्ज़ी देखी, उसने मुँह बना लिया और "ये नहीं खाना" कहा।

  • खाने का तरीका: उसने रोटी का एक टुकड़ा उठाया और उसे सीधे दाल में डुबोकर खाने की कोशिश की। इस प्रक्रिया में उसने थोड़ा खाना नीचे भी गिराया। वह चम्मच का इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी।

  • पसंद-नापसंद: उसने दाल और रोटी तो चाव से खाई, लेकिन आलू की सब्ज़ी को प्लेट के किनारे कर दिया। उसकी माँ ने जब सब्ज़ी खिलाने की कोशिश की, तो उसने मुँह फेर लिया।

  • माँ की भूमिका: उसकी माँ ने धैर्य रखा। उन्होंने सब्ज़ी को दाल में मिलाकर खिलाने की कोशिश की, जिसमें उन्हें थोड़ी सफलता मिली। उन्होंने आराध्या को खुद खाने के लिए प्रोत्साहित किया और गिराने पर उसे डाँटा नहीं।

  • समाप्त मात्रा: आराध्या ने लगभग आधी रोटी और पूरी दाल खा ली, लेकिन सब्ज़ी बहुत कम खाई।

निष्कर्ष और सीख:
इस अभ्यास को करके मैंने सीखा कि:

  • बच्चों में भोजन को लेकर अपनी स्पष्ट पसंद-नापसंद होती है।

  • उन्हें भोजन के साथ जबरदस्ती नहीं...करनी चाहिए, बल्कि रचनात्मक तरीकों से उन्हें नई चीजें खिलाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

    • बच्चों को खुद से खाने देना उनके आत्म-विश्वास और मोटर-कौशल (Motor Skills) के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है, भले ही वे इस प्रक्रिया में थोड़ा खाना गिरा दें।

    • माता-पिता का धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण बच्चे में खाने की अच्छी आदतें विकसित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    यह अवलोकन मेरे लिए एक शानदार अनुभव था। इसने मुझे सिखाया कि एक भावी प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षक के रूप में, मुझे बच्चों के व्यवहार को समझने और उनके साथ धैर्यपूर्वक काम करने की आवश्यकता होगी।


    भाग ग (20 अंक)

    इस भाग में आपको इस पाठ्यक्रम, अर्थात् डीईसीई-2 की प्रयोगात्मक कार्यों की नियमावली में दिए गए अभ्यासों में से 5, 6 या 7 में से कोई एक अभ्यास करना है।

    उत्तर: अभ्यास 7 - बच्चों के एक समूह के साथ स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी एक गतिविधि का आयोजन और मूल्यांकन करना।

    गतिविधि का शीर्षक: "कीटाणुओं को भगाओ, हाथ धोना अपनाओ!"

    परिचय:
    इस अभ्यास के लिए मैंने अपने पास के एक आंगनवाड़ी केंद्र में 4 से 5 वर्ष के बच्चों के समूह के साथ हाथ धोने के महत्व पर एक गतिविधि करने का फैसला किया। मेरा मानना है कि खेल और कहानी के माध्यम से बच्चों को स्वच्छता जैसी महत्वपूर्ण आदतें सिखाना सबसे प्रभावी तरीका है।

    उद्देश्य:

    1. बच्चों को यह समझाना कि हाथों पर अदृश्य कीटाणु होते हैं जो उन्हें बीमार कर सकते हैं।

    2. उन्हें हाथ धोने के सही सात चरणों को सिखाना।

    3. बच्चों में भोजन से पहले और शौच के बाद हाथ धोने की आदत को प्रोत्साहित करना।

    आवश्यक सामग्री:

    • एक कहानी की किताब (कीटाणुओं पर आधारित)

    • चमकी (Glitter) - कीटाणुओं का प्रतीक

    • साबुन और पानी

    • साफ तौलिया

    • हाथ धोने के चरणों वाला एक चार्ट

    गतिविधि का आयोजन (मैंने यह गतिविधि कैसे की):

    1. कहानी से शुरुआत: मैंने बच्चों को एक गोले में बिठाया और उन्हें 'राजू के गंदे हाथ' की कहानी सुनाई। कहानी में राजू नाम का एक लड़का हाथ न धोने के कारण बीमार पड़ जाता है। बच्चों ने कहानी को बहुत ध्यान से सुना और राजू के लिए चिंता व्यक्त की। इससे गतिविधि में उनकी रुचि पैदा हुई।

    2. "कीटाणु का खेल" (चमकी का प्रयोग): मैंने बच्चों को बताया, "चलो देखते हैं कि कीटाणु कैसे फैलते हैं।" मैंने अपनी हथेली पर थोड़ी सूखी चमकी डाली और कहा, "मान लो ये कीटाणु हैं।" फिर मैंने एक बच्चे से हाथ मिलाया। बच्चों ने आश्चर्य से देखा कि चमकी (कीटाणु) उस बच्चे के हाथ पर भी चली गई। फिर उस बच्चे ने दूसरे बच्चे से हाथ मिलाया और कीटाणु और फैल गए। इससे वे समझ गए कि कीटाणु कितनी आसानी से एक-दूसरे तक पहुँचते हैं।

    3. कीटाणुओं को भगाना: फिर मैंने बच्चों को दिखाया कि सिर्फ पानी से हाथ धोने पर चमकी पूरी तरह से नहीं जाती। लेकिन जब मैंने साबुन लगाकर हाथ धोए, तो सारी चमकी निकल गई। बच्चे यह देखकर चिल्लाए, "अरे! सारे कीटाणु भाग गए!"

    4. हाथ धोने के सही चरण: इसके बाद मैंने चार्ट की मदद से और एक मजेदार कविता के साथ हाथ धोने के सात चरण सिखाए:

      "पहले हाथ करो गीले, फिर लगाओ साबुन नीले-पीले।

      ऊपर मलो, नीचे मलो, उँगलियों के बीच में मलो।

      अँगूठे को घुमाओ, नाखूनों को रगड़ो,

      फिर पानी से हाथ धोकर, कीटाणुओं को पकड़ो!"

      मैंने हर चरण का अभिनय करके दिखाया और बच्चों ने मेरे साथ दोहराया।

    5. अभ्यास का समय: अंत में, मैं बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में वॉशबेसिन के पास ले गई और उनसे कविता गाते हुए हाथ धोने का अभ्यास कराया। मैंने हर बच्चे पर ध्यान दिया ताकि वे सभी चरण सही ढंग से करें।

    मेरा अनुभव और मूल्यांकन:

    • बच्चों ने इस गतिविधि में बहुत उत्साह दिखाया। चमकी वाला प्रयोग उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आया और इससे वे कीटाणुओं के फैलने की अवधारणा को आसानी से समझ गए।

    • कहानी और कविता ने एक नीरस विषय को मजेदार बना दिया।

    • मूल्यांकन के तौर पर, जब मैंने बाद में पूछा, "खाना खाने से पहले क्या करना है?" तो लगभग सभी बच्चों ने एक साथ चिल्लाकर कहा, "हाथ धोना है!" इससे मुझे लगा कि मेरा उद्देश्य काफी हद तक पूरा हुआ।

    • एक चुनौती यह थी कि वॉशबेसिन पर एक साथ सभी बच्चों को संभालना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन छोटे समूह बनाकर मैंने इस समस्या को हल कर लिया।

    निष्कर्ष:
    यह गतिविधि मेरे लिए एक बहुत ही संतोषजनक अनुभव था। मैंने प्रत्यक्ष रूप से यह महसूस किया कि बच्चों को व्यावहारिक और मजेदार तरीके से सिखाने पर वे कितनी जल्दी सीखते हैं। इस अभ्यास ने मुझे सिखाया कि स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़ी आदतों की नींव बचपन में ही डाली जा सकती है, और एक शिक्षक के रूप में इसमें मेरी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी।

Kkr Kishan Regar

Dear Friends, I am Kkr Kishan Regar, a passionate learner in the fields of education and technology. I constantly explore books and various online resources to expand my knowledge. Through this blog, I aim to share insightful posts on education, technological advancements, study materials, notes, and the latest updates. I hope my posts prove to be informative and beneficial for you. Best regards, **Kkr Kishan Regar** **Education:** B.A., B.Ed., M.Ed., M.S.W., M.A. (Hindi), P.G.D.C.A.

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