पूर्णाकारवाद / गेस्टाल्टवाद : कोहलर, आलपोर्ट | अधिगम के क्षेत्र सिद्धान्त

अधिगम के क्षेत्र सिद्धान्त 
पूर्णाकारवाद/ गेस्टाल्टवाद : कोहलर 
Gestalt Theory
गेस्टाल्ट का अर्थ समग्र रूप से है । पूर्णाकारवाद के अनुसार व्यक्ति किसी वस्तु को आंशिक रूप से नहीं अपितु पूर्ण रूप से सीखता है । क्षेत्र सिद्धान्तों में विश्वास करने वालों का विचार है कि - व्यक्ति के वातावरण के प्रति अवबोध तथा आविष्कार के सम्बन्ध को “ अधिगम सिद्धान्त " कहते हैं ।
     पूर्णाकारवाद का जन्मदाता जर्मनी का मनोवैज्ञानिक वेरटीमर ( Max Wertheimer ) कहा जाता है । थीर्प एवं मूलर ने वेस्टीमर के सिद्धान्त की व्याख्या इस प्रकार है- “ वेरटीमर के सिद्धान्त का फोकसी बिन्दु यह तथ्य है कि जब मानवीय आँख एक के बाद दो दृश्य उद्दीपनों को देखती है तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसी होती है कि उन उद्दीप ! का पैटर्न युगपत् बनता है । " 
    वेरिटीमर के सिद्धान्त को आगे बढ़ाने में कॉफका ( Kurt Koffla ) तथा कोहलर ( Wlofgang Kohler ) ने योग दिया है ।
     वेरटीमर का विचार रहा है कि सम्पूर्ण बड़ा है और कुछ उसका अंश है । ( The whole is greater than the sum of its parts ) मनोवैज्ञानिकों ने पूर्णाकारवाद की परिभाषा इस प्रकार दी है - ' पूर्णाकारवाद उत्तेजनात्मक परिस्थिति को समझने की विधि हैं। ' ( A Gestal is the pattern configuration on form of apprehending a stimulus situation ) .
अधिगम के क्षेत्र सिद्धान्त पूर्णाकारवाद / गेस्टाल्टवाद : कोहलर, आलपोर्ट
    
पूर्णाकारवाद के नियम और अन्तर्दृष्टि 
( Gestalts laws and Insight ) 
     पूर्णाकारवाद के मूल में अन्तर्दृष्टि विद्यमान रहती है । क्षेत्र की सारी व्यवस्था के सन्दर्भ में समस्या के पूर्ण समाधान का प्रकट होना प्रक्रिया का प्रकट होना ही अन्तर्दृष्टि की कसौटी है ।
    पूर्णाकारवाद या अन्तर्दृष्टि के नियम इस प्रकार हैं
( 1 ) संरचनात्मकता ( Structured ) — पूर्णाकारवाद में अधिगम की सम्पूर्ण प्रक्रिया उस समय पूर्ण मानी जाती है जबकि प्रक्रिया का निश्चित रूप ( Proper ) प्रकट होता है ।
( 2 ) समरूपता ( Similarity ) जो वस्तुयें आकार से समान होती है , उनका पूर्णाकार रूप उसी प्रकार अन्तर्दृष्टि में होता है ।
( 3 ) समीपता ( Proximity ) - इस नियम के अनुसार जो वस्तुएँ आकार में समान होती हैं वे एक समूह के रूप में प्रकट होती है ।
( 4 ) समीपन ( Closure ) मानव मस्तिष्क में स्थित क्षेत्र को बन्द करने की प्रक्रिया इस नियम में पाई जाती है । किसी एक समस्या पर ध्यान केन्द्रित करना इसी नियम के अन्तर्गत आता है ।
( 5 ) निरन्तरता ( Continuity ) — इस नियम के अनुसार अपने समान वाली वस्तुओं से प्रत्यक्षीकरण के सम्बन्ध बनते हैं ।
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कोहलर द्वारा किए गए प्रयोग 
( Experiments by Kohler ) 

     अन्तर्दृष्टि की पुष्टि करने के लिये कोहलर ने सुलतान नामक चिम्पान्जी पर प्रयोग किए । यद्यपि उसने ये प्रयोग कुत्ते तथा मुर्गियों पर भी किए , परन्तु उसका यही प्रयोग बहुत प्रसिद्ध है ।
    कोहलर ने अपने प्रयोग को चार पदों में विभक्त किया— 
  • ( 1 ) सुलतान को पिंजड़े में बन्द किया । पिंजड़े में चार डंडे रख दिए और पिंजड़े के बाहर केला । सुलतान ने केले को प्राप्त करने के अनेक प्रयत्न किये परन्तु उसे सफलता न मिली । निराश होकर बैठ गया । कुछ देर बाद उसने अचानक एक डंडा उठाया और उसके द्वारा केला अपने पास खिसका लिया । 
  • ( 2 ) दूसरे पद में कोहलर ने पिंजड़े में ऐसे दो डण्डे रख दिये जो आपस में जोड़े जा सकते थे । केला इतनी दूर रखा गया कि वह एक डण्डे की सहायता से उसे प्राप्त नही कर सकता था । अनेक प्रयत्नों के पश्चात् उसने दोनों डण्डों को जोड़ लिया और केला प्राप्त कर लिया । 
  • ( 3 ) तीसरे पद में कोहलर ने केले को पिंजड़े की छत में इस प्रकार लटकाया कि वह उछल कर भी उसे प्राप्त न कर सके । उसने पिंजड़े में सन्दूक रख दिया । अनेक प्रयत्नों के पश्चात् सुल्तान सन्दूक पर चढ़ा और केला प्राप्त कर लिया । 
  • ( 4 ) प्रयोग के चौथे पद में कोहलर ने पिंजड़े में एक के स्थान पर दो सन्दूक रखे तथा केलों को अधिक ऊँचाई पर अटकाया । पहले तो वह एक सन्दूक की सहायता से ही केला प्राप्त करने का प्रयत्न करता रहा । बाद में उसने एक सन्दूक के ऊपर दूसरा सन्दूक रखा और उस पर चढ़ कर केला प्राप्त कर लिया ।
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      कोहलर ने पूर्णाकारवाद में अन्तर्दृष्टि को इस प्रकार बताया है— “ एक अधिक तकनीकी अर्थ हल को एकाएक पकड़ लेना है जिससे एक ऐसी प्रक्रिया आरम्भ होती है जो परिस्थिति के अनुसार चलती है और हल प्रत्यक्ष ज्ञान के क्षेत्र में संख्या के सन्दर्भ में होता है । "
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आलपोर्ट द्वारा किए गए प्रयोग 
( Experiments done by Alport ) 
    आलपोर्ट ने नर्सरी विद्यालयों के 44 बच्चों पर परीक्षण किए । इन बच्चों की आयु 19 मास से लेकर 49 मास तक थी । ये प्रयोग कोहलर द्वारा किये गये प्रयोगों के समान थे । सुन्दर खिलौनों को आलमारी के ऊपर रख दिया गया । बच्चों ने आलमारी पर रखे खिलौने प्राप्त कर लिये । आलपोर्ट के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया कि चिम्पांजी की अपेक्षा मानव शिशुओं में अन्तर्दृष्टि अधिक होती है ।

अन्तर्दृष्टि पर प्रभाव डालने वाले कारक ( Factors Influencing Insight ) 
अनेक प्रयोगों ने उन कारकों की भी व्याख्या की है जो अन्तर्दृष्टि पर प्रभाव डालते हैं । ये कारक इस प्रकार हैं
( 1 ) बुद्धि ( Intelligence ) अन्तर्दृष्टि का सम्बन्ध प्राणी की बुद्धि से होता है । चिम्पांजी की अपेक्षा मनुष्य अधिक बुद्धिमान होता है । इसलिए उसमें अन्तर्दृष्टि अधिक पाई जाती है ।
( 2 ) अनुभव ( Experience ) अनुभवों से किसी समस्या को सुलझाने में बहुत योग मिलता है । अनुभवी व्यक्ति समस्या को सुलझाने में सदैव अन्तर्दृष्टि का लाभ उठाते हैं । अनुभवों का स्थानानतरण एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में होता है और वे अन्तर्दृष्टि के विकास में महत्त्वपूर्ण योग देते हैं ।
( 3 ) समस्या का प्रत्यक्षीकरण ( Perception ) -- जब तक समस्या का पूर्ण रूप से प्रत्यक्षीकरण नहीं होता , तब तक अन्तर्दृष्टि सम्भव नहीं है । अन्तर्दृष्टि पर समस्या की रचना भी प्रभाव डालती है ।
( 4 ) अन्वीक्षा तथा विभ्रम ( Trial and Error ) — कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि अन्तर्दृष्टि के मूल में ' अन्वीक्षा तथा विभ्रम रहता है । क्रिया कोई भी हो , उसके मूल में प्रयत्न अवश्य रहते हैं ।
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पूर्णाकारवादः आलोचना 
( Gestalt Theory : Criticism ) 
    पूर्णाकारवाद ने मनावैज्ञानिकों के क्षेत्र में नवीन मान्यताओं एवं अभिधारणाओं को जन्म दिया है । पूर्णाकारवाद इस बात को मानता है कि सम्पूर्ण अपने हिस्सों से बड़ा होता है । हिलगार्ड ( Hilgard ) के अनुसार- " इस मत की रोचक एवं महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह उस उपयोगी व्यवहार की व्याख्या करता है जो पूर्ण रूप से मानसिक अवस्थाओं एवं यांत्रिकता की उपेक्षा करता है । "
इस सिद्धान्त की प्रमुख आलोचना इस प्रकार है
  • 1. पूर्णाकारवाद मनाविज्ञान तथा शिक्षा दर्शन का सम्मिलित रूप है ।
  • 2. पूर्णाकारवाद के नियमों के अनुसार प्रत्येक प्रकार का अधिगम नहीं किया जा सकता , जैसे लिखना , पढ़ना , बोलना आदि ।
  • 3. कुछ विद्वानों का विचार है कि पूर्णाकारवाद में निहित अन्तर्दृष्टि पशुओं तथा बच्चों पर लागू नहीं होती क्योंकि उनमें चिन्तन का अभाव रहता है । पर दैनिक व्यवहार में यह देखने में आता है कि छोटे - छोटे बालक भी अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करते हैं ।
  • 4. पूर्णाकारवाद में अन्वीक्षा तथा विभ्रम किसी न किसी स्तर पर आवश्यक है ।

पूर्णाकारवादः शिक्षा 
( Gestalt Theory and Education )

     जैसा कि कहा जा चुका है कि पूर्णाकारवाद अनुभवों की सम्पूर्णता पर बल देता है । इस सिद्धान्त में व्यर्थ के प्रयत्नों का निरूत्साहित किया जाता है । व्यक्ति के समक्ष समस्या तथा उसके समाधान के सभी उत्पादन प्रस्तुत कर दिये जाते हैं । अन्तर्दृष्टि की सहायता से व्यक्ति की समस्या का समाधान करता है । शिक्षक पूर्णाकारवाद का उपयोग शिक्षा में इस प्रकार कर सकता है
( 1 ) वातावरण ( Environment ) शिक्षक को चाहिए कि वह बालक के समक्ष इस प्रकार का वातावरण प्रस्तुत करे कि बच्चे अधिगम के लिए प्रेरित हों । अधिगम की क्रिया का विकास स्वयं होना चाहिये ।
( 2 ) पूर्ण समस्या ( Complete Problem ) शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को समस्या का पूरा ज्ञान कराये । यदि समस्या के प्रति ज्ञान अपूर्ण है तो अन्तर्दृष्टि नहीं होगी । किसी भी समस्या में उस समय तक सूझ उत्पन्न नहीं होती , जब तक उसका पूर्ण रूप से ज्ञान न हो जाये । अत : यह आवश्यक है कि सार्थक पाठ पढ़ाये जाएँ । इसीलिए अब अक्षर नहीं शब्द पर बल दिया जाता है ।
( 3 ) उत्पादन क्रियाएँ ( Productive Activities ) शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसी क्रियाएँ कराये जिनका सम्बन्ध उत्पादन से हो । ऐसा करने के क्रियाएँ एक सम्पूर्ण रूप धारण कर लेती है ।
( 4 ) विषय संगठन ( Subject Organisation ) शिक्षक को पाठ का संगठन इस प्रकार करना चाहिए कि वह सम्पूर्णता प्राप्त कर ले और अन्तर्दृष्टि उत्पन्न करने योग्य बन जाय ।
( 5 ) सामान्यीकरण ( Generalisation ) शिक्षक को चाहिए कि वह पढ़ायी गई समाग्री का सामान्यीकरण कर ले । ऐसा करने से विषय स्पष्ट हो जाता है ।
( 6 ) आकांक्षा का स्तर ( Level of Aspiration ) शिक्षक नवीन ज्ञान देते समय देखे ले कि छात्रों का मानसिक तथा शारीरिक स्तर इस योग्य भी है कि वे नवीन ज्ञान को ग्रहण कर सकते हैं । यदि उनकी आकाँक्षा ( Aspiration ) का स्तर सामान्य है तो वे सामान्य ज्ञान को ही भली - भाँति ग्रहण कर सकते हैं ।
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